गोवत्स द्वादशी - कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण पहली बार वन में गौ चारण के लिए गए थे। माता यशोदा ने शृंगार करके गौचारण के लिए तैयार किया और पूजा-पाठ के बाद गोपाल ने बछड़े खोल दिए। गोपालों द्वारा गोवत्संचारण की पुण्यतिथि को इसीलिए पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पुत्र की मंगल-कामना के लिए किया जाता है। इसे पुत्रवती स्त्रियां करती हैं। इस पर्व पर गीली मिट्टी की गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाट पर रखी जाती हैं तब उनकी विधिवत पूजा की जाती है। गौ पृथ्वी का प्रतीक मानी जाती है तथा इन्हीं में तैंतीस कोटी देवी-देवता वास करते हैं।शास्त्रनुसार इस दिन गाय व बछड़े के पूजन का विधान है इसलिए इस रोज गाय के दूध और उस से बानी वस्तुए प्रयोग नहीं की जाती है।
यमदीपदानं - धनत्रयोदशीके दिन यमदीपदान करनेका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व.
दीपावली के काल में धनत्रयोदशी, नरकचतुर्दशी एवं यमद्वितीया, इन तीन दिनों पर यमदेव के लिए दीपदान करते हैं।
यमराज का कार्य है प्राण हरण करना । काल मृत्यु से बचना या उसे टालना असम्भव है परंतु ‘किसीको भी अकाल मृत्यु न आए’, इस हेतु धनत्रयोदशी पर यमधर्म के उद्देश्य से गेहूं के आटे से बने तेलयुक्त (तेरह) दीप संध्याकाल के समय घर के बाहर दक्षिणाभिमुख लगाएं।
सामान्यतः दीपोंको कभी दक्षिणाभिमुख नहीं रखते, केवल इसी दिन इस प्रकार रखते हैं ।
धनत्रयोदशी के दिन यमदीपदान का विशेष महत्त्व है। जो स्कंद-पुराणके इस श्लोकसे स्पष्ट होता है,
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।। – स्कंदपुराण
इसका अर्थ है, कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकालमें घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है ।
इस संदर्भ में एक कथा है, कि यमदेव ने अपने दूतों को आश्वासन दिया कि धनत्रयोदशी के दिन यमदेव के लिए दीपदान करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होगी ।
दीप प्राण शक्ति एवं तेजस्वरूप शक्ति प्रदान करता है। दीपदान करनेसे व्यक्ति को तेज की प्राप्ति होती है । इससे उसकी प्राण शक्ति में वृद्धि होती है तथा उसे दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है ।
यम दीपदान के लिए संकल्प
मम अपमृत्यु विनाशार्थम् यमदीपदानं करिष्ये ।
इसका अर्थ है, अपनी अपमृत्युके निवारण हेतु मैं यमदीपदान करता हूं ।
दीप को चंदन, हलदी, कुमकुम एवं अक्षतादि से पूजन करके पुष्पअर्पित कर नमस्कार किया जाता है ।
घर के मुख्य द्वार के बाहर दीपक को दक्षिण दिशा की ओर मुख कर रखा जाता है । यमदेवता को उद्देशित कर प्रार्थना की जाती है ।
मृत्युना पाशदंडाभ्यां कालेन श्यामयासह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतां मम ।। – स्कंदपुराण
इसका अर्थ है, धनत्रयोदशी पर यह दीप मैं सूर्यपुत्र को अर्थात् यमदेवता को अर्पित करता हूं । मृत्युके पाश से वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें ।
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