भारत में प्रचलित सम्वत - एक रोचक जानकारी
शक सम्वत और विक्रम सम्वत
भारत में सम्वत का उपयोग लगभग 2000 वर्ष से ही होना शुरू हुआ है। इससे पहले समय की गणना के लिए ‘शासन वर्ष’ का किया जाता था। महान शासक अशोक, कौटिल्य, कुषाण और सातवाहन तक यह गणना चलती रही। जबकि हिंदूओं का सबसे प्राचीन सम्वत ‘सप्तऋषि सम्वत ’ माना जाता है ।
वर्तमान में भारत में दो सम्वत प्रचलित हैं, विक्रम सम्वत (57 ई.पू.) और शक सम्वत (78 ई.) ।
1)शक सम्वत - (2022 – 78
= 1944)
2)विक्रम सम्वत - (2022 + 57 = 2079)
शक सम्वत - (2022 – 78 = 1944)
राष्ट्रीय
शाके अथवा शक सम्वत भारत का राष्ट्रीय कलैण्डर है। यह 78 ईसवी से प्रारम्भ हुआ था। चैत्र 1, 1879 शक सम्वत को इसे अधिकारिक रूप से विधिवत अपनाया गया। 500 ई. के उपरान्त संस्कृत में लिखित सभी ज्योतिःशास्त्रीय ग्रन्थ शक सम्वत का प्रयोग करने लगे। इसके वर्ष चान्द्र-सौर-गणना के लिए चैत्र से एवं सौर गणना के लिए मेष से आरम्भ होते थे। इसके वर्ष सामान्यतः बीते हुए हैं और सन 78 ई. के 'वासन्तिक विषुव' से यह आरम्भ किया गया है। सबसे प्राचीन शिलालेख, जिसमें स्पष्ट रूप से शक सम्वत का उल्लेख है, 'चालुक्य वल्लभेश्वर' का है, जिसकी तिथि 465 शक सम्वत अर्थात 543 ई. है।
प्राचीन लेखो, शिला लेखो में शक सम्वत का वर्णन देखा गया है। इसके अतिरिक्त यह सम्वत विक्रम सम्वत के बाद शुरू हुआ। यह अंग्रेजी कैलेंडर से 78 वर्ष पीछे है, 2022 – 78
= 1944. इस प्रकार अभी 1944 शक सम्वत चल रहा है।
विक्रम सम्वत : (2022 + 57 = 2079)
विक्रम सम्वत
राजा विक्रम के द्वारा प्रारंभ किया गया सम्वत है। उनके समय में सबसे बड़े खगोल शास्त्री वराहमिहिर थे। जिनके सहायता से इस सम्वत के प्रसार में मदद मिली। वराह मिहिर की मान्यता काफी अधिक थी। इसलिए इस सम्वत के प्रसार में कठिनाई नही आई।
इस सम्वत की मान्यता होने का दूसरा प्रमुख कारण है कि यह सम्वत उज्जैन से शुरू हुआ है। उज्जैन में आप जानते होंगे कि वह ऐसी जगह है, जहाँ से कर्क रेखा गुजरती है, वहां से समय गणना, घड़ी आदि कई महत्वपूर्ण घटनाये जुडी हुई है। जिसके कारण उस जगह की मान्यता है। यह अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे है, 2022 + 57
= 2079.
इस संवत् का आरम्भ गुजरात में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से और उत्तरी भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। पूर्णिमा के दिन, चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है।
इस प्रकार अभी 1944 शक सम्वत चल रहा है। तथा 2022 अप्रैल से विक्रम सम्वत 2079 चल रहा है।
विक्रम सम्वत और शक सम्वत में अंतर - वैसे तो शक सम्वत और विक्रम सम्वत के महीनों के नाम एक ही हैं और दोनों संवतों में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष भी हैं। अंतर सिर्फ दोनों पक्षों के शुरू होने में है। विक्रम सम्वत में नया महीना पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष से होता है जबकि शक सम्वत में नया महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। इसी कारण इन संवतों के शुरू होने वाली तारीखों में भी अंतर आ जाता है। शक सम्वत में चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, उस महीने की पहली तारीख है जबकि विक्रम सम्वत में यह सोलहवीं तारीख है। विक्रम सम्वत व शक सम्वत में आपस में अंतर 57 + 78 = 135 वर्ष का अंतर है। वि.सं. 2079 – श. सं. 1944 = 135 वर्ष ।
इसके अतिरिक अन्य सवत है, जो कम प्रचलित है।
सप्तऋषि
सम्वत -प्राचीन सप्तर्षि भारत का प्राचीन सम्वत है जो 6676 ई.पू से आरम्भ होता हैं। महाभारत काल तक इस संवत् का प्रयोग हुआ था। बाद में यह धीरे-धीरे विस्मृत हो गया। कश्मीर में सप्तर्षि संवत् को 'लौकिक संवत्' कहते हैं और हिमाचल प्रदेश में 'शास्त्र संवत्'। इस संवत् में कालगणना सप्तर्षि तारों की गति के आधार पर की गई। इस पर आधारित गणना का सिद्धांत था कि सप्तर्षि अपना एक चक्र करीब 2700 वर्ष में पूर्ण करते हैं यदि इसमें 18 वर्ष जुड़ जाऐ तो यह सौर वर्ष से गणना योग्य हो जाता है। इस तरह से लगभग 18 वर्ष के कालक्रम को एकत्रित कर गिना जाता था।.
कृष्ण सम्वत - इसे युगाब्द संवत् या कलियुग सम्वत बह९ कहा जाता है यह भारत का प्राचीन सम्वत है जो ३१०२ ईपू से आरम्भ होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का इस धरती से निर्वाण हुआ था दूसरी ओर पांडवों द्वारा राजा परीक्षित को राजपाट सौंपने और राजा परीक्षित द्वारा जा करने का काल भी इसी संवत् के अंतर्गत माना जाता है।
युधिष्ठिर संवत्-. युधिष्ठिर संवत् का काल 2448 ईपू माना जाता है। यह हिंदू वैदिक पद्धति पर आधारित संवत् है। इसे महाभारत संवत् भी कहा जाता है। कई ज्योतिष ग्रन्थों में इस संवत् का उल्लेख मिलता है। कई एतिहासिक शिलालेखों में इसका उल्लेख मिलता है।
गुप्त संवत् - इस संवत् का प्रारंभ गुप्त शासक चंद्रगुप्त प्रथम ने लगभग 319 ई में किया था। यह बंगाल, सौराष्ट्र, नेपाल आदि क्षेत्रों में अधिक प्रचलित रहा।
चालुक्य विक्रम संवत् - इसका प्रारंभ लगभग 1076 ई में सोलंकी राजा विक्रमादित्य ने किया था। यह भारत के दक्षिणी व पश्चिमी क्षेत्र में अधिक प्रचलित रहा।
हिजरी संवत् - यह संवत् चंद्रमा पर आधारित संवत् है। इसका उपयोग विश्वभर के मुसलमान धर्मावलंबी करते हैं। यह संवत् में कालगणना 354 व 355 दिवस और बारह मास पर आधारित होती है। इस संवत् का प्रारंभ इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हजरत मुहम्मद के काल से माना गया है। इसका पहला वर्ष हजरत मुहम्मद की मक्का से मदीना की ओर की गई यात्रा से जुड़ा है।
ईस्वी संवत् - ईस्वी संवत् का प्रारंभ ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इस कैलेंडर की शुरूआत पोप ग्रेगोरी अष्ट द्वारा की गई मानी जाती है। इसमें लीप ईयर का प्रावधान है अर्थात् फरवरी मास में 28 अथवा 29 फरवरी की तारीख तक ही मास रहता है। इस कैलेंडर के अनुसार समय की गणना मध्यरात्रि 12 बजे से आरंभ मानी गई है। इसका अर्थ यह है कि, अंग्रेजी नया दिन रात्रि बारह बजे से प्रारंभ होता है।
माया कैलेंडर - इस कैलेंडर का प्रारंभ माया सभ्यता में हुआ। लगभग 300 से 900 ईस्वी में मैक्सिको में यह सभ्यता अस्तित्व में थी। इस सभ्यता के लोगों ने जब कालगणना की तो इसे माया कैलेंडर कहा गया। यह गणितीय और खगोलीय आधार पर आधारित कालगणना थी। इस सभ्यता को इसलिए जाना जाता है क्योंकि इसमें 21 दिसंबर 2012 के बाद की तिथि नहीं दी गई है। ऐसे में इसका अर्थ लगाया जाता रहा है कि, माया कैलेंडर इस दिन के बाद दुनिया की तबाही की ओर संकेत करता है।
सृष्टि संवत् - यह संवत् भारतीय पद्धति पर आधारित है। इसका उल्लेख आर्यसमाज के ग्रंथों में मिलता है। इस संवत् की मान्यता है कि 14 मन्वन्तरों की एक सृष्टि होती है, इस मानव सृष्टि के बाद प्रलयकाल होता है। अभी तक 1960853118 वर्ष व्यतीत हुए हैं और लगभग 2333226882 वर्ष तक यह सृष्टि रहेगी।