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Relation between Uttarayan and Makar Sankranti

उत्तरायण और मकर संक्रांति का सम्बन्ध - वैज्ञानिक पहलू

'उत्तरायण' दो शब्दों से मिल कर बना है उत्तर + अयन

जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'उत्तर दिशा में गमन'।

शीत अयनांत  अयनांत / अयनान्त (अंग्रेज़ी:सोलस्टिस) -

1. किसी अयन या गति का अंत
2. (ज्योतिष) दो अयनों के बीच का संधिकाल

जबकि संक्रांति दो राशियों के बीच का संधिकाल है


मकर संक्रांति उत्तरायण से भिन्न है वैदिक पञ्चाङ्गानुसार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहा जाता है। 

उत्तरायण का अर्थ है सूर्य का एक अयन से दूसरे अयन में प्रवेश जैसा की हम सभी जानते हैं पृथ्वी की आकृति अंडाकार है। घुमाव के कारण, पृथ्वी भौगोलिक अक्ष में चिपटा हुआ और भूमध्य रेखा के आसपास उभर लिया हुआ प्रतीत होता है। सूर्य की यही अयन गति मौसम को प्रभावित करती है सूर्य की गति के अनुसार ही मौसम बदलते हैं।

भूमध्य रेखा पृथ्वी की सतह पर उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव से सामान दूरी पर स्थित एक काल्पनिक रेखा है। यह पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में विभाजित करती है। इसे विषुवत रेखा भी कहा जाता है

21 मार्च (बसंत विषुव) को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत चमकता है और सम्पूर्ण विश्व में रात-दिन बराबर होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु होती है। भारत में इसे बसंत ऋतू के आगमन से जोड़ा जाता है

सूर्य लगभग 21 जून को उत्तरी अयनांत (कर्क रेखा) तथा लगभग 22 दिसम्बर को दक्षिणी अयनांत (मकर रेखा) पर पहुँचता है। इन्हीं अवधियों को उत्तरी गोलार्द्ध में क्रमश: ग्रीष्म तथा शीत अयनांत कहा जाता है।

21 दिसंबर को सूर्य की अयन गति ही बदलती है मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से मनाई जाती है इसलिए 21 दिसंबर को सूर्यदेव उत्तरायण तो हो गए लेकिन मकर संक्रांति का त्यौहार 14 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही मनाया जायेगा।

अयनांत वर्ष में होने वाली दो खगोलीय घटनायें है जब सूर्य खगोलीय गोले में खगोलीय मध्य रेखा के सापेक्ष अपनी उच्चतम अथवा निम्नतम अवस्था में भ्रमण करता है। विषुव और अयनान्त मिलकर एक ऋतु का निर्माण करते हैं।
सूर्य लगभग 21 जून को उत्तरी अयनांत (कर्क रेखा) तथा लगभग 21 दिसम्बर को दक्षिणी अयनांत (मकर रेखा) पर पहुँचता है. इन्हीं अवधियों को उत्तरी गोलार्द्ध में क्रमश: ग्रीष्म तथा शीत अयनांत कहा जाता है। दिसंबर वर्ष का सबसे छोटा दिन माना जाता है इस समय से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी।

दूसरे शब्दों में यह अयनांत उस समय घटित होता है जब उत्तरी ध्रुव सूर्य से सबसे अधिक दूरी पर झुका होता है और परिणामतः इस दिन पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश कुछ ही घंटों तक रह पाता है।
दिसम्बर के अयनांत के समय सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern hemisphere) में मकर रेखा (Tropic of Capricorn) के ठीक ऊपर स्थित होता है और इस समय क्षितिज से इतना निकट होता है जितना कि वर्ष भर कभी नहीं होता।


सैद्धांतिक ज्योतिष के प्रभाव में हम आकाश में निहारना भूल सा गए हैं  दक्षिण भारत में शीत अयनांत अर्थात 21 दिसंबर को अभिजीत के उदित होने के साथ जोड़ कर देखा जाता है शीत अयनांत की उषा काल में अभिजीत उदित होना प्रारम्भ करता है जिसका कि उस ऊंचाई से प्रेक्षण (Observation) आसान होता मकर संक्रांति आते आते रूद्र देवता (मृगव्याध) अर्थात लुब्धक नक्षत्र (सिरियस) ब्रह्म मुहूर्त में पश्चिम में अस्त होते और विष्णु स्वरूप अभिजीत नक्षत्र प्राची में उसी समय उदित होते इन दोनों के दर्शन को मकर-ज्योति का दर्शन कहा जाता है।

धर्मग्रंथों में उत्तरायण को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है।

दक्षिणायन में चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है और उत्तरायण में सूर्य का।

सृष्टि पर जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यकता सूर्य की है। इस प्रकार उत्तरायण पर्व सूर्य के महत्व को भी उजागर करता है। सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतना, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है।


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