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Pradosh Kal


प्रदोष काल अर्थात सूर्यास्त के पश्चात् का काल जो भगवान शिव की साधना के लिये सर्वोत्तम माना गया है|
प्रदोष काल निर्धारित करने की कई मान्यताये प्रचलन में है
१) एक मान्यता के अनुसार प्रदोष काल सूर्यास्त के समय से आगे चार घटी अर्थात 96 मिनिट का होता है
२) दुसरी मान्यता के अनुसार सूर्यास्त के समय से अगले सूर्योदय तक के काल (रात्रि मान) को पांच भागों में विभाजित करे तो रात्रि मान का पहला भाग प्रदोष काल माना जायेगा सामान्यत: यह समय सूर्यास्त के समय से 144 मिनिट तक रहेगा ..
एक अन्य मान्यतानुसार सूर्यास्त से 90 मिनट पहले और सूर्यास्त के 90 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल कहलाता है


प्रदोष काल और प्रदोष तिथि मे अंतर
प्रदोष काल प्रतिदिन सूर्यास्त से ९० मिनट तक होता है
और प्रदोष तिथि अर्थात दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि (जो उस दिन के सूर्यास्त के समय विद्यमान हो)  प्रदोष तिथि में उदया त्रयोदशी से ज्यादा महत्त्व सूर्यास्त के समय विद्यमान त्रयोदशी का होता है पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में दो प्रदोष तिथियां अंकित की जाती हैं 
प्रदोष का संबंध पुरातन काल से भगवान शिव से जोडा गया है| प्रदोष काल मे सुषुम्ना नाडी कुछ खुल जाती है इसलिए इस पर्व काल मे साधना ध्यान कर सुषुम्ना मे प्राण प्रवाहित करना आसान होता है

पौराणिक मान्यतानुसार महादेव ने समुद्र मंथन से उत्त्पन्न विष का पान भी प्रदोष काल मे ही किया था .. भगवती पार्वती ने अपने सामर्थ्य से उस विष को शिवजी के कंठ तक ही रोक दिया इसलिये भगवान शिव "नीलकंठ" कहलाये 
भगवान शिव ने प्रदोष काल में ही समस्त सृष्टि को इस भयंकर विष के प्रभाव से बचाया था इसीलिए इसे शिव उपासना के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है प्रदोष के दिन सूर्यास्त के समय प्रदोष काल मे भगवान शिव की उपासना कर उन्हे प्रसन्न किया जा सकता है शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है
प्रदोष यानी सभी दोषो से मुक्ति दिलाने वाला पुण्यकाल मनुष्य के जीवन मे रोग, कर्ज, शत्रु, ग्रहबाधा, संकट, पूर्वजन्म के पाप आदि यह सब एक प्रकार का विष ही है और प्रदोष काल के शिव पूजन से भगवान भोलेनाथ की कृपा से हम इस विष के प्रभाव से मुक्त हो सकते है.
इसलिए कहा गया है कि प्रदोष के दिन आप अगर संभव हो तो दिन भर उपवास रखे और शाम को प्रदोष काल मे शिवपूजन, रुद्राभिषेक, शिवस्तोत्रों का पाठ, शिव मंत्र का जाप, बिल्वार्चन, ध्यानादि  साधना कर सकते है प्रदोष काल के शिवपूजन से दरिद्रता दूर होती और आर्थिक उन्नती होती है
मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है।
प्रदोष व्रत के विषय में गया है कि अगर
रविवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भानुप्रदोष कहते है यह आरोग्य प्राप्ति के लिये लाभदायी और परम कल्याण कारी होता है  रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा नीरोग रहेंगे।

सोमवार को अगर प्रदोष हो तो उसे सोम प्रदोष कहते है यह सर्व प्रकारके पापो का शमन करनेवाला होता है सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलितहोती है।

मंगलवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भौम प्रदोष कहते है . यह दरिद्रता दूर करनेवाला, ऋणमुक्ती के लिये और आर्थिक उन्नती के लिये लाभदायी है मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।

 बुधवार को अगर प्रदोष हो तो उसे बुध प्रदोष या सौम्य प्रदोष कहते है .. संतान सुख प्राप्ति और विद्याप्राप्ती के लिये लाभदायी बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होतीहै।

गुरुवार को अगर प्रदोष हो तो यह आध्यात्मिक उन्नती एवं पितृ दोष निवारण के लिये लाभदायी ..

बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्र प्रदोष व्रत सेसौभाग्य की वृद्धि होती है।

शुक्रवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भृगु प्रदोष कहते है .. शत्रू बाधा निवारण के लिये लाभदायी ..

शनिवार को प्रदोष हो तो उसे शनि प्रदोष कहते है .. यह अत्यंत दुर्लभ और लाभदायी होता है .. शनि बाधा , साढ़ेसाती , धनप्राप्ति , ऋणमुक्ति , राज्यपद आदि के लिये लाभदायी शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है।

इनमे से सौमप्रदोष, भौम प्रदोष और शनि प्रदोष यह तीन प्रदोष आध्यात्मिक दृष्टीकोण से महत्त्वपूर्ण है .. और इन तीनो मे शनि प्रदोष अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ..

स्कंद पुराण मे वर्णित प्रदोष स्तोत्र का पाठ प्रदोष काल मे कर सकते है 

" ये वै प्रदोष समये परमेश्वरस्य
कुर्वंति अनन्य मनसोsन्गि सरोजपूजाम
नित्यं प्रबद्ध धन धान्य कलत्र पुत्र
सौभाग्य संपद अधिकारस्त इहैव लोके "
------ जो लोग प्रदोष काल मे अनन्य भक्ति से महादेव के चरण कमलों का पूजन करते है उन्हे इस लोक मे धन धान्य कलत्र पुत्र सौभाग्य एवं संपत्ती की प्राप्ति होती है ..

" अत: प्रदोषे शिव एक एव पूज्योsथ नान्ये हरिपद्मजाद्या:
तस्मिन महेशे विधिज्यमाने सर्वे प्रसीदंति सुराधिनाथा: "

प्रदोष काल मे विष्णु एवं ब्रम्हा का पूजन न करे और केवल एक शिवजी का पूजन करे .. प्रदोष काल मे महादेव के पूजन से ईतर सभी देवता प्रसन्न हो जाते है .

वैसे तो प्रतिमाह दोनों पक्षों में प्रदोष तिथि आती है परन्तु माघ मास के कृष्ण पक्ष मे महा शिवरात्रि के समय आने वाला प्रदोष  महाप्रदोष कहलाता है 

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