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Lakshmi pujan on Dipawali

दीपावली 07 नवम्बर 2018 

अमावस्या तिथि प्रारम्भ  - 6 नवम्बर 2018 को 22:27 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त  - 7 नवम्बर 2018 को 21:31 बजे

दिन बुधवार

सूर्य राशि - तुला

चंद्र राशि - तुला

तिथि - अमावस्या

नक्षत्र- स्वाति

करण - चतुष्पद

योग - आयुष्मान

लक्ष्मी पूजन के लिए स्थिर लग्न

वृषभ-लग्न -17:54 से 19:49

लक्ष्मी पूजन का सर्वश्रेष्ठ समय 13 मिनट: 18:08 से 18:20 बजे

सिंह लग्न - 00:27 से 02:46 (मध्य रात्रि)

वृश्चिक-लग्न- 07:21से 09:27

कुंभ-लग्न-  13:29 से 15:02

प्रदोष काल -17:26 से 20:06

लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2घण्टे 24 मिनट तक रहता है।

कार्तिके प्रदोषेतु विशेषेण अमावस्या निषाबर्धके।
तस्यां सम्पूज्येत देवी भोग मोक्ष प्रदायिनीम।।
अर्थात लक्ष्मी पूजा दीपदान के लिए प्रदोष काल (रात्रि का पंचमांश प्रदोष काल कहलाता है) ही विशेषतया प्रशस्त माना जाता है।

महानिशीथ काल मुहूर्त: कोई नहीं

महानिशीथ काल 23:40 से 00:33 तक

महानिशिथकाल मुहूर्त: हालांकि इस बार अमावस्या तिथि महानिशिथकाल के पहले ही रात 21:31 पर समाप्त हो जायेगी, लेकिन विशेष कार्यों की सिद्धि के लिये आप रात महानिशीथ काल पूजा कर सकते हैं ।




लक्ष्मी पूजन सामग्री - इस पूजन में रोली, मौली, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, धूप, कपूर, अगरबत्ती, गुड़, धनिया, अक्षत, फल-फूल, जौं, गेहुँ, दूर्वा, श्वेतार्क के फूल, चंदन, सिंदूर, दीपक, घृत, पंचामृत, गंगाजल, नारियल, एकाक्षी नारियल, पंचरत्न, यज्ञोपवित, मजीठ, श्वेत वस्त्र, इत्र, फुलेल, पान का पत्ता, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, कुबेर यंत्र, श्री यंत्र, लक्ष्मी व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, मिष्ठान इत्यादि वस्तुओं को पूजन समय रखना चाहिए।

लक्ष्मी पूजन विधि व नियम - -पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र करके शुद्ध कर लेना चाहिए, कक्ष में रंगोली को बनाना चाहिए, सांयकल में लक्ष्मी पूजन समय स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना चाहिए विनियोग द्वारा पूजन क्रम आरंभ करें।

अपसर्पन्त्विति मन्त्रस्य वामदेव ऋषि:, शिवो देवता, अनुष्टुप छन्द:, भूतादिविघ्नोत्सादने विनियोग:।

मंत्र :- अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूतले स्थिता:। ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ||

लक्ष्मी व गणेश के चित्र, श्रीयंत्र को लाल वस्त्र बिछाकर चौकी पर स्थापित करें. आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर बैठे तथा यह मंत्र बोल कर अपने उपर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कना चाहिए।

मंत्र:-
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।।

उसके बाद जल-अक्षत लेकर पूजन का संकल्प करें- 

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञप्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोSह्नि द्वितीयपराधें श्रीश्वेतवाराहकल्पे वीवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथि, वार और गोत्र के नाम का उच्चारण करना चाहिए,

अहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। 
तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

अब संकल्प का जल भूमि पर छोड़ दें. सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए. इसके बाद गंध, अक्षत, पुष्प इत्यादि से कलश पूजन तथा उसमें स्थित देवों का षोडशपूजन करें. तत्पश्चात प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें. पूजन पूर्व श्री यंत्र, शंख, सिक्कों आदि की मंत्र द्वारा पूजा करनी चाहिए. लाल कमल पुष्प लेकर मंत्र से देवी का ध्यान करना चाहिए,

अंग-न्यास 
ॐ हिरण्मय्यै नमः हृदयाय नमः। ॐ चन्द्रायै नमः शिरसे स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै नमः शिखायै वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै नमः कवचाय हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै नमः अस्त्राय फट्।

ध्यान 
ॐ अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-
भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः।।

महामन्त्र 
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।

विधिवत रुप से श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए। इस दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है। इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका 
स्वागत किया जाता है।





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