कार्तिक शुद्ध प्रतिपदा:
यह प्रतिपदा बलि प्रतिपदा, वीर प्रतिपदा (वामन पुराण) और ध्यूत प्रतिपदा (कृत तत्त्व) भी कही जाती है पुराणों के अनुसार इस दिन देवी पार्वती ने भगवान शंकर को ध्यूत क्रीड़ा में हराया था।
उत्तर भारत में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। लेकिन दक्षिण भारत में बलि और मार्गपाली पूजा का प्रचलन है।
यह प्रतिपदा "कौमुदी महोत्सव" का भी अंग है क्योंकि वर्ष के तीन शुभ दिनों में कौमुदी महोत्सव होता है इस पर्व को बलि कौमुदी भी कहते हैं।
बलि प्रतिपदा -
राजा बलि के द्वार पर पधारने वाले अतिथि/ याचक को उनसे मनोइच्छित दान मिलता था। दान देना गुण तो है; परंतु गुणों का अतिरेक भी अंततः दोष ही सिद्ध होता है। सत्पात्र को ही दान देना चाहिए, अपात्र को दिया गया दान कष्ट/विपदा का कारण बनता है। दैत्यराज बलि से कोई, कभी भी, कुछ भी मांगता, उसे वह देते थे। बलि राजा की अति उदारता के परिणाम स्वरूप संपत्ति अपात्र लोगों के हाथों में जाने से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । तब भगवान श्रीविष्णु ने बलि की अतिदान शीलता के कारण होने वाली सृष्टि की हानि रोकने के लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन ‘वामन’ (छोटे ब्रह्मचारी बालक) अवतार लिया और छोटे बालक ब्राह्मण का रूप ले कर बलि के द्वार पर भिक्षा में त्रिपाद भूमिदान मांगा। बलि राजा ने इस वामन को त्रिपाद भूमि दान कर दी । इसके साथ ही वामन ने विराट रूप धारण कर एक पैर से समस्त पृथ्वी नाप ली, दूसरे पैर से अंतरिक्ष एवं फिर बलिराजा से पूछा ‘‘तीसरा पैर कहां रखूं ?’’ उसने उत्तर दिया ‘‘तीसरा पैर मेरे मस्तक पर रखें’’। तब तीसरा पैर उसके मस्तक पर रख, उसे पाताल में भेजने का निश्चय कर वामन ने बलिराजा से कहा, ‘‘तुम्हें कोई वर मांगना हो, तो मांगो (वरं ब्रूहि) ।’’
उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होनेका वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या एवं बलि प्रतिपदा । तब से इन तीन दिनों को ‘बलिराज्य’ कहते हैं।
इस अवसर पर जो भी दान किया जाता है वो अक्षय होता है
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