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Donations for Different Sankrantis

वर्ष की बारह संक्रांतियों के लिए दान की वस्तुयें

पञ्चसिद्धान्तिका (3|23-24, पृष्ठ 9) के अनुसार

मेषतुलादौ विषुवत् षडशीतिमुखं तुलादिभागेषु।
षडशीतिमुखेषु रवे: पितृदिवसा येऽवशेषा: स्यु:।।
षडशीतिमुखं कन्याचतुर्दशेऽष्टादशे च मिथुनस्य।
मीनस्य द्वार्विशे षडविशे कार्मुकस्यांशे।।



तुला आदिर्यस्या: सा तुलादि: कन्या।
द्वादशैव भवन्त्येषां द्विज नामानि मे श्रृणु।
एकं विष्णुपदं नाम षडशीतिमुखं तथा।।
विषुवं च तृतीयं च अन्ये द्वे दक्षिणोत्तरे।।

कुम्भालिगोहरिषु विष्णुपदं वदन्ति स्त्रीचापमीनमिथुने षडशीतिवक्त्रम्।
अर्कस्य सौम्यमयनं शशिधाम्नि याम्यमृक्षे झषे विषुवति त्वजतौलिनो: स्यात्।। ब्रह्मवैवर्त

कुछ शब्दों की व्याख्या आवश्यक है- अलि वृश्चिक, गो वृषभ, हरि सिंह, स्त्री कन्या, चाप धनु:, शशिधाम्नि शशिगृह कर्कटक, सौम्यायन उत्तरायण, याम्य दक्षिणायन (यम दक्षिण का अधिपति है), झष मकर, अज मेष, तौली (जो तराजू पकड़े रहता है) तुला।'

मेष में भेड़, वृषभ में गायें, मिथुन में वस्त्र, भोजन एवं पेय पदार्थ, कर्कट में घृतधेनु, सिंह में सोने के साथ वाहन, कन्या में वस्त्र एवं गौएँ, नाना प्रकार के अन्न एवं बीज, तुला-वृश्चिक में वस्त्र एवं घर, धनु में वस्त्र एवं वाहन, मकर में इन्घन एवं अग्नि, कुम्भ में गौएँ जल एवं घास, मीन में नये पुष्प।

अन्य विशेष प्रकार के दानों के विषय में देखिए स्कन्दपुराण , विष्णुधर्मोत्तर, कालिका आदि।

स्कन्दे-धेनुं तिलमयीं राजन् दद्याद्यश्चोत्तरायणे।
सर्वान् कामानवाप्नोति विन्दते परमं सुखम।।

विष्णुधर्मोत्तरे-उत्तरे त्वयने विप्रा वस्त्रदनं महाफलम्।

तिलपूर्वमनड्वाहं दत्त्व। रोगै: प्रमुच्यते।। शिवरहस्ये।

पुरा मकरसंक्रान्तौ शंकरो गोसवे कृते।
तिलानुत्पादयामास तृप्तये सर्वदेहिनाम्।

तस्मात्तस्यां तिलै: स्नानं कार्य चोद्वर्तनं बुधै:।
देवतानां विपृणां च सोदकैस्तर्पणं तिलै:।

तिला देयाश्च विप्रेभ्य: सर्वदैवोत्तरायणे।
तिलांश्च भक्षयेत्पुण्यान् होतव्याश्च तथा तिला:।

तस्यां तथौ तिलैर्हुत्वा येऽर्चयन्ति द्विजोत्तमान्।

त्रिदिवे ते विराजन्ते गोसहस्त्रप्रदायिन:।
तिलतैलेन दीपाश्च देया: शिवगृहे शुभा:।
सतिलैस्तण्डुलैर्देवं पूजयेद्विधिवद् द्विजम्।। हेमाद्रि (काल, पृष्ठ 415-416);



निर्णय सिंधु (पृष्ठ 218) के अनुसार गोसहस्त्र 16 महादानों में एक है।

'त्रिदिवे ते विराजन्ते'

 'उच्चा दिवि दक्षिणावन्तो अस्थुर्ये अश्वदा स्रह ते सूर्येण।'

राजमार्तण्ड में संक्रान्ति पर किये गये दानों के पुण्य-लाभ पर दो श्लोक हैं-

 'अयन संक्रान्ति पर किये गये दानों का फल सामान्य दिन के दान के फल का कोटि गुना होता है

और

विष्णुपदी पर वह लक्ष गुना होता है;

षडशीति पर यह 86000 गुना घोषित है |

चंद्र ग्रहण पर दान सौ गुना

एवं

सूर्य ग्रहण पर सहस्त्र गुना,

विषुव पर शतसहस्त्र गुना

तथा

आकामावै (आ-आषाढ़, का-कार्तिक, मा-माघ, वै-वैशाख) की पूर्णिमा पर अनन्त फलों को देने वाला है।

भविष्यपुराण ने अयन एवं विषुव संक्रान्तियों पर गंगा-यमुना की प्रभूत महत्ता गायी है।

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