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Paush Mas / Khar Mas


खर मास - वैज्ञानिक एवं पौराणिक रहस्य

सम्वतसर के 12  मासों में से दो मासों को खरमास की संज्ञा दी गयी है जब सूर्यदेव बृहस्पति की राशियों धनु एवं मीन से विचरण करते हैं तो उसे खरमास या मल मास कहा जाता है उत्तराखण्ड में इसे काला महीना भी कहते हैं 
जिस प्रकार धनु मीन में सूर्य के विचरण को खरमास कहा जाता है उसी प्रकार देवगुरु बृहस्पति के सिंह राशि में विचरण को सिंहस्थ दोष माना गया है धनु व मीन राशि के सूर्य को खरमास/मलमास की संज्ञा देकर शुभ कार्य जैसे शादी, नूतन गृह प्रवेश, घर की नींव, नया वाहन, भवन क्रय करना तथा सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों की मनाही की गयी है व सिंह राशि के बृहस्पति में सिंहस्थ दोष दर्शाकर भारतीय भूमंडल के विशेष क्षेत्र गंगा और गोदावरी के मध्य (धरती के कंठ प्रदेश से हृदय व नाभि को छूते हुए) गुह्य तक उत्तर भारत के उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, राज्यों में मंगल कर्म व यज्ञ करने का निषेध किया गया है, जबकि पूर्वी व दक्षिण प्रदेशों में इस तरह का दोष नहीं माना गया है। 

संस्कृत भाषा में खर का अर्थ है गधा । मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य देव सात अश्वों से सुसज्जित रथ में बैठकर बिना एक पल भी विश्राम किये ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। वर्ष पर्यन्त भागते भागते सूर्यदेव के रथ में जुटे हुए अश्व थकने लगे तो सूर्यदेव ने उन्हें बारी बारी विश्राम देने का सोचा तो उन्होंने धनु संक्रांति के समय होने रथ में खर अर्थात गधे को अपने रथ में जोत लिया इस कारण से पौष मास में सूर्यदेव के रथ की गति धीमी रहती हैं ।

खर मास में सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है।
अर्थात चाहे व्यक्ति अल्पायु हो या दीर्घायु अगर वह पौष के अन्तर्गत खर मास यानी खर मास की अवधि में अपने प्राण त्याग रहा है तो निश्चित रूप से उसका इहलोक और परलोक नर्क के द्वार की तरफ खुलता है।
महाभारत में जब अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था। तब खर मास पौष चल रहा था। सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। और पूरे खर मास वह अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैय्या पर लेटे रहे और जब सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया।

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