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Diwali Pujan 2017


महालक्ष्मी पूजन में अमावस्या तिथि, प्रदोषकाल, स्थिर लग्न विशेष महत्व रखते हैं। महालक्ष्मी पूजन सायंकाल प्रदोषकाल में करना चाहिए।
ब्रह्मपुराण में कहा गया है:
कार्तिके प्रदोषेतु विशेषेण अमावस्या निषाबर्धके।
तस्यां सम्पूज्येत देवी भोग मोक्ष प्रदायिनीम।

अर्थात लक्ष्मी पूजा दीपदान के लिए प्रदोष काल (रात्रि का पंचमांश प्रदोष काल कहलाता है) ही विशेषतया प्रशस्त माना जाता है। माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है।
प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 02 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है। स्थिर लग्न वृषभ दीवाली के त्यौहार के दिन अधिकतर प्रदोष काल के साथ ही अधिव्याप्त होता है।

अमावस्या तिथि प्रारम्भ = 19/अक्टूबर/2017 को 00:13बजे
अमावस्या तिथि समाप्त = 20/अक्टूबर/2017को 00:41 बजे


सूर्य राशि: तुला
चंद्र राशि: कन्या
नक्षत्र: हस्त - 07:27 तक
तत्पश्चात -चित्रा
योग:वैधृति - 16:00 तक
प्रदोष काल
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त = 19:09 से 20:17
अवधि = 01घण्टा 07 मिनट्स
प्रदोष काल = 17:43 से 20:17
वृषभ काल = 19:07 से 21:03

महानिशिथ  काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त = 23:42  से 00:33 मध्यरात्रि *(स्थिर लग्न के बिना)
अवधि = 0 घण्टे 51 मिनट्स
महानिशिता काल = 23:42 से 0033
सिंह काल = 03:40 से 04:00 प्रातः 20 /अक्टूबर/2017

शास्त्रों में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की सम्पूर्ण रात्रि को काल रात्रि माना गया है। अत: सम्पूर्ण रात्रि में पूजा की जा सकती है।

पूजन सामग्री
कलावा, रोली, सिंदूर, नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फल फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, आम का पल्लव, चौकी, कमल गट्टे, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली। कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन।

दीवाली की पूजन विधि
माता लक्ष्मी को पुष्पों में कमल व गुलाब के पुष्प, फलों में श्रीफल, सीताफल,अनार व सिंघाड़े और सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन विशेष प्रिय है। अतः यह सब पूजा में अवश्य प्रयोग करें।
सर्वप्रथम चौकी पर सफेद वस्त्र बिछा कर उस पर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा को इस प्रकार विराजमान करें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें।

पवित्रीकरण
हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए छिड़कें।
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्यभ्यन्तर: शुचि:।।
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दःकूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
बाद में इसी तरह से स्वयं को तथा अपने पूजा के आसन को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।

इसके बाद आसन ग्रहण कर पृथ्वी को प्रणाम करके निम्न मंत्र बोलें तथा उनसे क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने आसन पर विराजमान हों

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

आचमन अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः

फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए  हाथों को धो लें
हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंगन्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।

ध्यान व संकल्प विधि

अब शांत मन से आंखें बंद करके मां को प्रणाम करें और हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प और जल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर सपरिवार मां लक्ष्मी, सरस्वती तथा गणेशजी की पूजा करने जा रहा हूँ, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों।

सबसे पहले विघ्नहर्ता भगवान गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। तत्पश्चात कलश पूजन करें फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। इन सभी के पूजन के बाद 16 मातृकाओं को गंध, अक्षत व पुष्प प्रदान करते हुए पूजन करें। पूरी प्रक्रिया मौलि लेकर गणपति, माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण कर और स्वयं के हाथ पर भी बंधवा लें। अब सभी देवी-देवताओं के तिलक लगाकर स्वयं को भी तिलक लगवाएं। इसके बाद मां महालक्ष्मी की पूजा आरंभ करें।

मां को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ अवश्य करें

दीपावली के दिन पारिवारिक परंपराओं के अनुसार तिल के तेल के सात, ग्यारह, इक्कीस अथवा इनसे अधिक दीपक प्रज्वलित करके एक थाली में रखकर कर पूजन करने का विधान है। इस तरह से आपकी पूजा पूर्ण होती है।

क्षमा-प्रार्थना करें

पूजा पूर्ण होने के बाद मां से जाने-अनजाने हुए सभी भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। उन्हें कहें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।

मां न मैं आह्वान करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे आप भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।

दीपावली की रात्रि को कुंकुम, अक्षत एवं पुष्पों से एक-एक नाम मंत्र पढ़ते हुए अष्ट लक्ष्मियों का पूजन करें-
ऊं आद्यलक्ष्म्यै नम:,
ऊं विद्यालक्ष्म्यै नम:,
ऊं  सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:,
ऊं कामलक्ष्म्यै नम:,
ऊं सत्यलक्ष्म्यै नम:,
ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:,
ऊं योगलक्ष्म्यै नम:।
वर्ष भर प्रतिदिन कमलगट्टे की माला से किसी भी लक्ष्मी मंत्र का एक माला जप करते रहें। इससे धन आगमन बना रहता है और स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।


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