दीपावली के पावन पंचदिवसीय पर्व में धनवन्तरी, यम, लक्ष्मी, और कुबेर का पूजन मुख्य रूप से किया जाता है।
देवताओं के कोषाध्यक्ष, विश्रवस् ऋषि और उनकी पत्नी इळविळा के पुत्र, और "वयं यक्षाम:" का मंत्र देने वाले यक्षराज कुबेर उत्तर दिशा के दिक्पाल भी हैं और भारत में हर पूजा से पहले दिक्पालों की पूजा का विधान है। गहन तपस्या के बाद मरुद्गणों ने उन्हें यक्षों का अध्यक्ष बनाया और पुष्पक विमान भेंट किया। यक्ष समुदाय जलस्रोतों और धन संपत्ति का संरक्षक है।
कुबेर संसार की समस्त धनसंपदा के संरक्षक हैं, इसलिए धनतेरस पर लक्ष्मी जी के साथ साथ कुबेर पूजन की भी विशेष महत्ता है।
धनतेरस पर कुबेर यंत्र की विधि पूर्वक स्थापना करने से और कुबेर के कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से माँ लक्ष्मी की कृपा आप पर लम्बे समय तक बनी रहती है
आह्वान मंत्र:
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वर्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
ॐ कुबेराय नम:
कुबेर मंत्र:
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
अष्टाक्षर कुबेर मंत्र:
ॐ वैश्रवणाय स्वाहा।
षोडशाक्षर कुबेर मंत्र:
ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:
पंच्चात्रिशदक्षर कुबेर मंत्र –
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।
कुबेर, कनकधारा और श्री यंत्र तीनों त्रिगुणात्मक शक्ति के पुंज हैं। दीपावली के पांच दिनों में यदि तीनों की एक साथ पूजा की जाए तो १०० गुणा फल प्राप्त होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने कुबेर ने शिव की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें उत्तर दिशा का स्वामी बना दिया और कहा कि अब से जो भी उत्तर दिशा में तुमको नमस्कार करके जायेगा उसका कार्य तत्काल सम्पन्न होगा। तब से कुबरे उत्तर दिशा का स्वामी होकर शक्तिशाली लोकपाल के रूप में प्रतिष्ठित हो गया तब से उत्तर दिशा का एक नाम कौबेरी भी हो गया।
कुबेर उत्तर दिशा का स्वामी बनने के बाद भी तपस्या करते रहे। तब शिव ने पुनः प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तब कुबेर ने कहा कि मुझे ऐसी अक्षय एवं विस्तृत सम्पत्ति दीजिए, जिसको मुझसे कोई छीन नहीं सके। इतना ही नहीं मैं जिस पर कृपा करूं वह अथाह सम्पत्ति का स्वामी बन जाये। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें समस्त देवताओं, दानवों व मानवों की अक्षय सम्पत्ति एवं नव निधियों व अष्ट सिद्धियों का स्वामी बना दिया। और वरदान दिया कि जो भी विधि विधान से तुम्हारी पूजा करेगा, तुम्हारी कृपा से वह अक्षय सम्पत्ति का स्वामी बनेगा। तब से कुबेर धनाधिपति, यक्षाधिपति, धनेश, निधिनाथ, शिवसखा, देवताओं के कोषाध्यक्ष, धनाध्यक्ष होकर संसार के समस्त चर-अचर सम्पत्तियों के स्वामी बन गया। पदम् पुराण के अनुसार गंधमादन पर्वत पर गिरिहार में इनका विशेष प्रकोष्ठ है जहां से यह अक्षय सम्पत्ति का संचालन करते हैं। तीन अक्षय सम्पत्ति का मात्र सोलहवां हिस्सा ही इन्होंने भूतल वासियों को वितरित किया।
कुबेर के सोलह स्वरूप हैः-
१ कुबेर २. त्र्यम्बक सुख ३. यक्षराज ४. गुह्मकेश्वर ५. धनद ६.राज राज ७. धनाधिप ८. किन्नदेश ९. वैश्रवण १०. पौलस्त्य ११. नरवाहन १२. सक्ष १३. एकपिंग १४. ऐलविल १५. श्रीद १६. पुण्यजनेश्वर।
कुबेर के पूजन से जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता है। ऐसा माना जाता है कि जहां धन प्राप्ति हेतु अन्य प्रयत्न व उपासनाएं विफल हो जाती ळैं। वहां कुबेर की उपासना शीघ्र फलदायी है। धन तेरस को कुबेर की पूजा का दिन माना जाता है। इस दिन कुबेर यंत्र का कुबेर की पूजा का दिन माना जाता है उस दिन कुबेर यंत्र का निर्माण कर पूजन करें। इसके पश्चात् सवा लाख कुबेर मंत्र के जाप करें।
मन्त्र :
ऊं यक्षराज कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्यपत्यै।
धन धान्य समृद्धि में उ देहि दापय स्वाहा
षोडशाक्षर कुबेरमन्त्र "श्री ह्नीं श्रीं ह्नीं क्लीं वित्तश्रवराय नमः" किसी एक मंत्र के जाप कर जाप का दसवां भाग हवन करें।
शिव रात्रि धन त्रयोदशी एवं विशिष्ट अवसर पर दस हजार कुबेर जाप करने से मन्त्र सिद्ध प्राप्त हो जाता है।
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