कार्तिक
मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (धन तेरस) से ही दीपावली का पांच दिवसीय पर्व आरम्भ होता है इस
दिन मृत्यु के देवता यम और भगवान धनवन्तरी की
पूजा की जाती है | ब्रह्मवैवर्त पुराण में उन्हें गरुड़ का शिष्य कहा गया
है और उन्हें आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देव कहा जाता हैं।
ऐसा माना जाता है कि
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी पर ही समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का
स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए।
भगवान
धन्वंतरि को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:
ॐ धन्वंतराये नमः॥
आरोग्य प्राप्ति हेतु
धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र
ॐ नमो
भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व
भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय
त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप
श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
अर्थात्
परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धनवन्तरी कहते हैं, जो अमृत
कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं,
सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों
लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि
को सादर नमन है।
इन्हें
भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में
शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध
तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धनवन्तरी
ने अमृत प्रदान किया ।
इनका प्रिय धातु पीतल
माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।
शास्त्रों
के अनुसार इस दिन इनकी विधिवत पूजा, आराधना करने से उस घर पर किसी भी प्रकार के रोग की
छाया भी नहीं पड़ती है।
शुभ मुहूर्त में पूजा करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है
प्रदोष काल - सांयकाल 5 बजकर 43 मिनट से 8 बजकर 17 मिनट तक।
अवधि - 2 घंटे 24 मिनट
वृषभ काल = 19:07 से 21:03
शुभ मुहूर्त में पूजा करने से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है
प्रदोष काल - सांयकाल 5 बजकर 43 मिनट से 8 बजकर 17 मिनट तक।
अवधि - 2 घंटे 24 मिनट
वृषभ काल = 19:07 से 21:03
पूजन विधि
प्रातः काल स्नानादि दैनिक क्रियाआें से निवृत्त होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजन स्थल पर भगवान धनवन्तरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके पश्चात इस मंत्र के साथ भगवान धनवन्तरी का आह्वान करना चाहिए-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
भगवान धनवन्तरी को चावल, रोली, पुष्प, गंध, जल चढ़ाएं आैर खीर का भोग अर्पित करें।
-ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:।
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय।
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप।
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
रोगनाश के लिए -
ऊं रं रूद्र रोग नाशाय धनवंतर्ये फट्।। मन्त्र का जप करें
पूजा में फल, दक्षिणा आदि चढ़ाने के बाद धूप, दीप आैर कपूर प्रज्वलित कर भगवान की आरती करें।
ऊं रं रूद्र रोग नाशाय धनवंतर्ये फट्।। मन्त्र का जप करें
पूजा में फल, दक्षिणा आदि चढ़ाने के बाद धूप, दीप आैर कपूर प्रज्वलित कर भगवान की आरती करें।
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