#गुरु_पूर्णिमा / #व्यास_पूर्णिमा -अंजु आनंद
सनातन धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना गया है।
गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पाय
बलिहारी गुर आपने जो गोविन्द दियो मिलाय
******
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर.
कबीर ने तो कहा है गुरु और गोविन्द कभी दोनों सामने आ जाएँ तो प्रथम गुरु वंदना ही उचित है क्योंकि अगर प्रभु किसी कारणवश रूठ जाएँ तो उनसे मिलने का रास्ता गुरु सहज ही दिखा सकते हैं परन्तु गुरु अगर रूठ जाएँ तो उनसे मिलने का कोई भी रास्ता नहीं दिखा सकता | सनातन परंपरा में गुरू को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्राप्त है
पौराणिक कथाओं के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा को चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी। महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु माना जाता है| हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी को आदिगुरु कहा गया है। इसीलिए आषाढ़ पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो आषाढ़ पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था |
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर,
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:
अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
गुरुकुल की इसी परम्परा को सनातन धर्म में आज भी पूर्ण निष्ठा के साथ निभाया जाता है आज का दिन गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है |
नारदपुराण के अनुसार यह पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान पाने के अपने कर्तव्य की याद दिलाने और गुरु के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करने का दिन है।
‘अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥’
--अज्ञानरूपी अंधकार से अंधे हुए जीव की आँखें जिसने ज्ञानरूपी काजल की शलाका से खोली है, ऐसे श्रीगुरु को प्रणाम है।
इस दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए। 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प ले कर, श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद लेना चाहिए । गुरु के आशीर्वाद से ही विद्या प्राप्ति होती है, अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से सहज ही प्राप्त हो जाती हैं और गुरु के आशीर्वाद से मिली हुई विद्या ही सिद्ध और सफल होती है।गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए। इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए, अंधविश्वासों के आधार पर नहीं।
गुरु पूजन का मन्त्र है-
'गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।'
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
गुरु पूर्णिमा पर "ॐ बृं बृहस्पतये नमः" का जाप करें। ये मंत्र सिद्घ करने के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन उत्तम है।
गुरु प्राप्ति इतनी सहज नहीं है। गुरु मंत्रों में से किसी एक का लगातार जप गुरु प्राप्ति करा सकता है, जो निम्नलिखित है -
1. ॐ गुरुभ्यों नम:।
2. ॐ गुं गुरुभ्यो नम:।
3. ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।
4. ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।
यदि गुरु प्राप्ति हो जाए तो उनसे श्री गुरु पादुका मंत्र लेने की यथाशक्ति कोशिश करें। यही वह मंत्र है जिससे पूर्णता प्राप्त होगी।
इस दिन गुरु पादुका पूजन करें। गुरु दर्शन करें। नेवैद्य, वस्त्रादि भेंट प्रदान कर दक्षिणादि देकर उनकी आरती करें तथा उनके चरणों में बैठकर उनकी कृपा प्राप्त करें। यदि गुरु के समीप जाने का अवसर न मिले तो उनके चित्र, पादुकादि प्राप्त कर उनका पूजन करें।
इति:।
No comments:
Post a Comment
We appreciate your comments.