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अक्षय तृतीया - अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक


तृतीया तिथि शुरू = 10:29  28 अप्रैल 2017
तृतीया तिथि समापन = 06:55  29 अप्रैल 2017
रोहिणी नक्षत्र - 28 अप्रैल 2017 - 13:39 से 29 अप्रैल 2017 प्रातः 10:59 तक



“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गङग्या समम्।।”

 वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। वैशाख मास की विशिष्टता इसमें प़डने वाली अक्षय तृतीय के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। तृतीया तिथि की अधिष्ठात्री माता गौरी है। उनकी साक्षी में किया गया धर्म-कर्म व दिया गया दान अक्षय हो जाता है, इसलिए इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा गया है।
ऐसी मान्यता है के इस दिन परिणय सूत्र में बांधने वाले दम्पति युगल का सौभाग्य अखंड रहता है


शास्त्रीय मान्यता के अनुसार मुहूर्त गणना में वर्ष का दोष श्रेष्ठ माह समाप्त कर देता है और माह में दोष हो तो श्रेष्ठ दिन उस दोष को समाप्त कर देता है। इसी तरह किसी दिन में कोई दोष हो तो श्रेष्ठ लग्न और लग्न के दोष को श्रेष्ठ मुहूर्त समाप्त कर देता है। इस तरह देखा जाए तो मुहूर्त श्रेष्ठ होने पर वर्ष, मास, दिन व लग्न के सभी दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
वैदिक कलैण्डर के साढ़े तीन अबूझ मुहूर्तों में एक है अक्षय तृतीया | 'अक्षय' यानि 'जिसका कभी क्षय न हो' अर्थात जो कभी नष्ट नहीं होता।
'न क्षयः इति अक्षयः' अर्थात- जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय।
मुहूर्त ज्योतिष के अनुसार चंद्रमास और सौरमास में सूर्य और चंद्र की गति के अनुसार तिथियों का क्षय /वृद्धि होती रहती है, लेकिन 'अक्षय' तृतीया का कभी भी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया को वर्ष के चार सर्वाधिक शुभ एवं स्वयंसिद्ध /सर्वसिद्धि मुहूर्त माना जाता है क्योंकि इस दिन किसी भी शुभ और मांगलिक कार्यों के लिये पंचांग देखने की ज़रूरत नहीं होती | शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य बिना पंचांग देखे किए जा सकते हैं।
नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है।

 ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।  इस दिन दान करना आपको मृत्यु के भय से काफी दूर रखता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है।
'यत् किंचिद् दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु।
तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता।।' - भविष्य पुराण
अर्थात इस तिथि में जितना भी थोड़ा या बहुत,और जो कुछ भी दान दिया जाता है, उस सब का फल अक्षय हो जाता है।

कहते हैं इस दिन गरीब बच्चों को दूध, दही, मक्खन, छेना, पनीर आदि का दान करते हैं तो मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ का संकेत है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है।
इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी।
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥ -मदनरत्न

चारो धाम की यात्रा भी इसी तिथि से शुरू हो रही है।



 अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद शांत चित्त होकर भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है।  गंगा स्नान के बाद सत्तू खाने तथा जौ और सत्तू दान करने से आप अपने बुरे कर्मों के पाप से मुक्त होते हैं। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।
 सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।
दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदीरयेत्॥  

अर्थात सभी महीनों की तृतीया में सफेद पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है।

तिथियों का मान नियत होता है अर्थात् सब तिथियाँ बराबर दंडों की नहीं होती । तृतीया तिथि का मान 41 घटी 29 पल होती है तथा धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया 6 घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराण केअनुसार इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए।

 व्रतराज के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) के दिन रोहिणी नक्षत्र का स्थित होना अत्यंत उत्तम माना गया है
किसानों में भी यह लोक विश्वास है कि यदि इस तिथि को चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए अच्छा होगा और यदि पीछे होगी तो उपज अच्छी नहीं होगी। अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तीनों का सुयोग बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। इस संबंध में भड्डरी की कहावतें भी लोक में प्रचलित है।

अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निपट कर तांबे के बर्तन में शुद्ध जल लेकर भगवान सूर्य को पूर्व की ओर मुख करके चढ़ाएं तथा इस मंत्र का जप करें-

“ऊँ भास्कराय विग्रहे महातेजाय धीमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ।”

भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है
भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।
ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था।
इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।

अक्षय तृतीया से ही चारों धामों में प्रमुख श्री बद्रीनारायण जी के पट खुलते हैं. इसलिए इस दिन सभी भक्तों को श्री बद्रीनारायण जी के चित्र को सिंहासन पर रखकर मिश्री तथा भीगी हुई चने की दाल का भोग लगाना चाहिए. इसी के साथ तुलसीदल चढ़ाकर पूरी श्रद्धा के लिए पूजा व आरती करनी चाहिए. इसी दिन से जगन्नाथ यात्रा के लिए रथ का निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया जाता है.
वृंदावन में साल में केवल इसी दिन श्री बिहारी जी के चरण पादुका के दर्शन भक्तों को मिलते हैं. अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।
'अक्षय तृतीया' के दिन ख़रीदे गये वेशक़ीमती आभूषण एवं सामान शाश्वत समृद्धि के प्रतीक हैं। इस दिन ख़रीदा व धारण किया गया सोना अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। यह माना जाता है कि इस दिन ख़रीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं।
इस दिन शुरू किये गए किसी भी नये काम या किसी भी काम में लगायी गई पूँजी में सदा सफलता मिलती है और वह फलता-फूलता है।
एक पुरातन कथा तो यह भी है कि आज के ही दिन भगवान शिव से कुबेर को धन मिला था और इसी खास दिन भगवान शिव ने माता लक्ष्मी का धन की देवी का आशीर्वाद भी दिया था।

माना जाता है कि कोई व्यक्ति लंबे वक्त से बीमार चल रहा है, तो उसके तकिए के नीचे नीम की पत्तियां रखकर उन्हें इस दिन शिव मंदिर में चढ़ाने से लाभ मिलता है।




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