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रक्षाबंधन में वैदिक रक्षा सूत्र

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प्राचीन काल में त्यौहारों का महत्व वर्ण व्यवस्था से सम्बन्धित था जैसे रक्षाबंधन मुख्यतः: ब्राह्मणों का, विजयादशमी (दशहरा)  क्षत्रियों, दीपावली वैश्यों और होली शूद्रों का त्यौहार माना जाता था। श्रावण मास की पूर्णिमा को ब्राह्मण अपने यजमानों के दाहिने हाथ पर एक कलावा (रक्षासूत्र) बांधते थे, जिसका प्रतिदान यजमान उन्हें सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा देकर करते थे | इसे ही आगे चलकर राखी जाने लगा।
कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के वामनावतार ने भी राजा बलि के रक्षासूत्र बांधा था और उसके बाद ही उन्हें पाताल जाने का आदेश दिया था। आज भी रक्षासूत्र बांधते समय एक मंत्र बोला जाता है उसमें इसी घटना का जिक्र होता है।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।


इस मंत्र का सामान्यतः: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे ! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महा पराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।
इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।

भविष्योत्तर पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार देव गुरु बृहस्पति ने राक्षसों से इंद्रलोक को बचाने के लिए इंद्राणी को एक उपाय बतलाया था जिसमें श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्राणी ने इंद्र के तिलक लगाकर उसके रक्षासूत्र बांधा था जिससे इंद्र विजयी हुए।

शास्त्रों में कहा गया है - इस दिन अपरान्ह में रक्षासूत्र का पूजन करे और उसके उपरांत रक्षाबंधन का विधान है। यह रक्षाबंधन राजा को पुरोहित द्वारा यजमान को ब्राह्मण द्वारा, भाई को बहन द्वारा  दाहिनी कलाई पर किया जाता है।

संस्कृत की उक्ति के अनुसार
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत।
स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।

अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है। रक्षाबंधन में मूलतः: दो भावनाएं काम करती रही हैं। प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना। इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह, शांति और रक्षा का बंधन है। इसमें सब के सुख और कल्याण की भावना निहित है।
सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी। पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा केवल उसका प्रतीक है।
रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-

ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:।
तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

7 अगस्त 2017 सोमवार 
भद्रा - सुबह 11:04 मिनट तक 
शुभ मुहूर्त - 11:04 मिनट से दोपहर 01 बजकर 50 मिनट तक


वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि


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