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Ekadshi Upwas rules


एकादशी शंका समाधान- 


श्री हरि को प्रिय एकादशी आदि व्रतों को बेध रहित तिथियों में ही करना चाहिए अर्थात शुद्ध एकादशी में ही व्रत करना चाहिए।
एकादशी दो प्रकार की होती है सम्पूर्णा तथा विद्धा इसमे विद्धा भी दो प्रकार की होती है पूर्व विद्धा और पर विद्धा पूर्व विद्धा अर्थात दशमी मिश्रित एकादशी परित्यज्य है।



सम्पूर्णा एवं विशेष रूप से पर विद्धा (द्वादशी युक्त एकादशी) शुद्ध होने के कारण उपवास योग्य है किन्तु दशमी युक्त एकादशी में कभी भी उपवास नहीं करना चाहिए। - सौरधर्मोत्तर

अरुणोदय काल मई अर्थात सूर्योदय से पहले चार दण्ड-काल (सूर्योदय से 1 घण्टा 36 मिंट्स पहले) में यदि दशमी नाममात्र भी रहे तो उक्त एकादशी पूर्व विद्धा दोष से दोषयुक्त होने के कारण सर्वथा वर्जनीय है।  -भविष्य पुराण

द्वादशी मिश्रित एकादशी सर्वदा ही ग्रहण योग्य है - "द्वादशी मिश्रित ग्राह्या सर्वत्रैकादशी तिथि:" -पद्मपुराण

नारद पुराण मे वर्णित है कि जिस समय बहुवाक्य-विरोध के कारण संदेह उपस्थित हो उस समय द्वादशी में उपवास करते हुए त्रयोदशी में पारण करना चाहिए किन्तु "जिस शास्त्र में दशमी विद्धा एकादशी पालन कि बात कही गयी है वह स्वयं ब्रह्मा जी द्वारा कहे होने पर भी शास्त्र रूप मे गण्य नहीं है"। -नारद पुराण

धर्मसिंधु के अनुसार एकादशी दो प्रकार की होती है- विद्धा और शुद्धा यदि एकादशी तिथि दशमी तिथि से युक्त हो तो वह विद्धा एकादशी कही जाती है। और यदि तथा सूर्योदय काल में एकादशी द्वादशी तिथि से युक्त होती है तब वह शुद्धा एकादशी कही जाती है अर्थात अरुणोदयकाल में दशमी के वेध से रहित एकादशी हो तब उसे शुद्धा एकादशी माना जाता है। - धर्मसिंधु

अग्नि पुराण के अनुसार द्वादशी – विद्धा एकादशी में स्वयं श्रीहरि स्थित होते हैं, इसलिये द्वादशी – विद्धा एकादशी के व्रत का त्रयोदशी को पारण करनेसे मनुष्य सौ यज्ञों का पुण्यफल प्राप्त करता हैं। जिस दिन के पूर्वभाग में एकादशी क्लामात्र अविशिष्ट हो और शेषभाग में द्वादशी व्याप्त हो, उस दिन एकादशी का व्रत करके त्रयोदशी में पारण करनेसे सौ यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है। दशमी- विद्धा एकादशी को कभी उपवास नहीं करना चाहिये; क्योंकि वह नरक की प्राप्ति करानेवाली है।  अग्नि पुराण

पद्मपुराण मे भगवन एवं ब्रह्मा जी के संवाद मे वर्णित है - के दशमी विद्धा एकादशी दैत्यों कि पुष्टिवर्द्धिनी है इसमें कोई संदेह नहीं।

ब्रह्म पुराण मे धृतराष्ट्र के प्रति मैत्रेय मुनि कि उक्ति मैदेखा जाता है कि पहले पत्नी के साथ उन्होंने दशमी युक्त एकादशी में व्रतोपवास किया था जिसके नारं उनके 100 पुत्रों का विनाश हुआ था। 

स्कंदपुराण मे स्पष्ट वर्णित है कि जो लोग दशमी द्वारा दूषित हरिवासर मे उपवास करने के लिए उपदेश करते हैं वह सब पाप पुरुष निश्चय ही शुक्र माया द्वारा मोहित हुए हैं ऐसा जानना होगा।

उक्त पुराण मे ही उमा महेश्वर संवाद मे देखा जाता है जो लोग दशमी विद्धा एकादशी का अनुष्ठान करते हैं वह निश्चय ही नरकवास कि इच्छा करते हैं।

प्राय: सभी शास्त्रों में दशमी से युक्त एकादशी व्रत करने का निषेध माना गया है। यदि शुद्धा एकादशी दो घड़ी तक भी हो और वह द्वादशी तिथि से युक्त हो तब उसे ही व्रत के लिए ग्रहण करना चाहिए। दशमी से युक्त एकादशी का व्रत नहीं रखना चाहिए।

सामान्य जन साधारण को शुद्धा एकादशी का व्रत रखना ही पुण्यदायक माना गया है।

गरूण पुराण के अध्याय 125 वें में कहा गया है कि गांधारी ने दशमी से युक्त एकादशी (विद्धा एकादशी) का व्रत रखा था ऐसा करने पर उसने अपने सभी पुत्रों का वध अपने जीवनकाल में ही देख लिया। इसलिए दशमी से युक्त एकादशी का व्रत नहीं रखना चाहिए। अगर कभी ऐसा होता है कि किसी महीने में दशमी से युक्त एकादशी पड़ती है तो मन में संदेह न रखें बल्कि द्वादशी का व्रत रखकर त्रयोदशी में पारण कर दें।

शुक्लपक्ष की एकादशी में पुनर्वसु, श्रवण, रोहिणी और पुष्य नक्षत्र हो, तो वह बहुत शुभ फल प्रदान करने वाली होती है।

त्रिस्पृशा, जिसमें एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि भी हो, वह बड़ी शुभ मानी जाती है। कोई ऐसी तिथि एक बार भी कर ले, तो उसे एक सौ एकादशी करने का फल मिलता है।

जो लोग एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं, उन्हें इस दिन सात्विक रहना चाहिए। एकादशी के दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा आदि मांसाहार भोजन नहीं करना चाहिए। छल-कपट और मैथुन आदि का त्याग भी जरूरी है। एकादशी को चावल नहीं खाना चाहिए।

1 comment:

  1. एकादशी व्रत के बारे में आपके द्वारा प्रदत्त जानकारी प्रशंसनीय होने के साथ-साथ शेयर करने योग्य हैं। एकादशी व्रत के महत्व की जानकारी सभी को होनी चाहिए। आपकी इस पहल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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