#लोहड़ी, #माघ संक्रांति, #मकर राशि, #उत्तरायण
लोहड़ी का त्यौहार पश्चिमी पंचांग के अनुसार यह प्रायः 12 / 13 जनवरी को तथा #हिंदू #पंचांग के अनुसार यह पर्व पौष / माघ माह में आता है | नए साल का यह पहला त्यौहार लोगों के दिलों को खुशियों से भर देता है। सूर्यदेव के #मकर राशि में प्रवेश से ठीक पहले, पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) इस पर्व को मनाया जाता है। जो माघ महीने के शुभारम्भ व #उत्तरायण काल के शुभ आगमन को दर्शाता है और साथ शीत लहर से ठिठुरते लोगों को मौसम के बदलाव का संकेत देता है। (सूर्य के #उत्तरायण होने की अवधि 14 जनवरी से 14 जुलाई की होती है|)
लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर अर्थात मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है यह उत्तर भारत विशेषतः पंजाब का प्रमुख त्यौहार है | इस समय धरती सूर्य से अपने सुदूर बिन्दु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारम्भ कर देती है।
श्रीमद्भागवदगीता के अनुसार, श्रीकृष्ण ने अपना विराट व अत्यन्त ओजस्वी स्वरूप इसी काल में प्रकट किया था। हिन्दू इस अवसर पर गंगा में स्नान कर अपने सभी पाप त्यागते हैं। गंगासागर में इन दिनों स्नानार्थियों की अपार भीड़ उमड़ती है। उत्तरायणकाल की महत्ता का वर्णन हमारे शास्त्रकारों ने अनेक ग्रन्थों में किया है।
लोहड़ी का त्यौहार नए साल की शुरूआत में फसल की कटाई और बुवाई के उपलक्ष में मनाया जाता है साथ ही मलमास की समाप्ति का द्योतक भी है सूर्य देव देव गुरु की राशि में एक माह बिता कर अपने पुत्र से मिलने निकलते हैं | हिन्दू खगोलविद्दा के अनुसार मकर संक्रांति वह दिन है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के उत्तरायण होने से पहले विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ के तौर पर लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है। लोहड़ी नई ऊर्जा और संकल्पों का उत्सव भी है।
नई फसल के आगमन के उपलक्ष में तिल, ज्वार, मक्का आदि के दानों की आहुति देकर रेवड़ी, खील, गजक और मूंगफली आदि खाते हुए परिवार और रिश्तेदारों के साथ मनाया जाने वाला मन्नतों और सौगातों का यह त्योहार भारत की उल्लास पूर्ण संस्कृति को अभिव्यक्त करता है।
लोहड़ी का त्यौहार सर्दियों के जाने और बंसत के आने का संकेत है। लोहड़ी के दिन लकड़ियों या उपलों ढ़ेर बनाकर आग जलाई जाती है। लोहड़ी के पावन मौके के दिन पवित्र अग्नि में लोग रबी फसलों को अर्पित करते हैं। हिंदू परंपरा में ऐसा विश्वास है कि अग्नि में जो भी डाला जाता है वह उनके पितरों तक पहुंच जाता है। इसी विश्वास के कारण ही अग्निदेव को हवन देने की परंपरा है। इसी विश्वास के कारण लोहड़ी वाले दिन पूरे परिवार के लोग जलती हुई लोहड़ी की परिक्रमा करते हैं और नई फसल की बालियों से उसकी पूजा करते हैं और अग्नि में भी इसके कुछ दाने डाले जाते हैं।
लोहड़ी के त्योहार में अग्नि देव की पूजा की जाती है। ऋग्वेद की ऋचा में भी अग्नि देव के द्वारा देवताओं तक आहुति पहुँचाने की प्रार्थना की जाती है
"यो अग्निं देववीतये हविष्माँ आविवासति । तस्मै पावक मृळय"॥९॥- ऋग्वेद
हे शोधक अग्निदेव! देवो के लिए हवि प्रदान करने वाले जो यजमान आपकी प्रार्थना करते है, आप उन्हे सुखी बनाये॥९॥
लोहड़ी की पवित्र अग्नि में रेवड़ी, तिल, मूँगफली, गुड़ और गजक भी अर्पित किए जाते हैं। ऐसा करके सूर्य देव और अग्नि के प्रति आभार प्रकट किया जाता हैं ताकि उनकी कृपा से कृषि में उन्नति हो। इसके अलावा लोग इस पवित्र अग्नि के चारों तरफ चक्कर काटकर नाचते और गाते हैं।
लोहड़ी का त्यौहार मुख्य रूप से सूर्य देवता और अग्नि को समर्पित है। यह वह समय होता है जब सूर्य मकर राशि से गुजर कर उतर की ओर रूख करता है। ज्योतिष के अनुसार इस समय सूर्य उत्तरायण बनाता है। वहीं आग को जीवन और स्वास्थ्य से जोड़कर देखने की अवधारणा है।
अग्नि में तिल डालते हुए 'ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए' बोलते हुए अच्छे स्वास्थ्य व समृद्धि की कामना करते हैं। ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए अर्थात् गरीबी दूर हो और घर मे बहुत सारी समृद्धि आये। वे बहुतायत भूमि और समृद्धि के लिए अपने भगवान अग्नि और सूर्य से प्रार्थना करते हैं।
पंजाब में लोहड़ी के त्यौहार की एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है। इस त्यौहार के पंजाब में किया जाने वाला भागंडा और गिद्दा काफी मशहूर है। लोहड़ी में मिलने वाला प्रसाद तिल, गजक, गुड़, मूंगफली तथा मक्के के दानों का एक-दूसरे को बांटते हैं। आधुनिक समय में लोहड़ी का पर्व लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। इस त्यौहार के रंग में रंगकर लोग अपना सुख-दु:ख बांटते हैं। यही इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भी है। शाम को एक जगह एकत्र होते हैं. पूजा कर लोहड़ी जलाई जाती है और इसके आसपास सात चक्कर लगाते समय आग में तिल डालते हुए, ईश्वर से धनधान्य भरपूर होने का आशीर्वाद मांगा जाता है. ऐसा माना जाता है कि जिसके घर पर भी खुशियों का मौका आया, चाहे विवाह के रूप में हो या संतान के जन्म के रूप में, लोहड़ी उसके घर जलाई जाएगी और लोग वहीं एकत्र हों |
लोहड़ी के दिन लकडिय़ों व उपलों का जो अलाव जलाया जाता है उसकी राख अगले दिन मोहल्ले के सभी लोग सूर्योदय से पहले ही अपने-अपने घर ले जाते हैं क्योंकि इस राख को ईश्वर का आशीर्वाद माना जाता है।
अंजु आनंद
लोहड़ी का त्यौहार पश्चिमी पंचांग के अनुसार यह प्रायः 12 / 13 जनवरी को तथा #हिंदू #पंचांग के अनुसार यह पर्व पौष / माघ माह में आता है | नए साल का यह पहला त्यौहार लोगों के दिलों को खुशियों से भर देता है। सूर्यदेव के #मकर राशि में प्रवेश से ठीक पहले, पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) इस पर्व को मनाया जाता है। जो माघ महीने के शुभारम्भ व #उत्तरायण काल के शुभ आगमन को दर्शाता है और साथ शीत लहर से ठिठुरते लोगों को मौसम के बदलाव का संकेत देता है। (सूर्य के #उत्तरायण होने की अवधि 14 जनवरी से 14 जुलाई की होती है|)
लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर अर्थात मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है यह उत्तर भारत विशेषतः पंजाब का प्रमुख त्यौहार है | इस समय धरती सूर्य से अपने सुदूर बिन्दु से फिर दोबारा सूर्य की ओर मुख करना प्रारम्भ कर देती है।
श्रीमद्भागवदगीता के अनुसार, श्रीकृष्ण ने अपना विराट व अत्यन्त ओजस्वी स्वरूप इसी काल में प्रकट किया था। हिन्दू इस अवसर पर गंगा में स्नान कर अपने सभी पाप त्यागते हैं। गंगासागर में इन दिनों स्नानार्थियों की अपार भीड़ उमड़ती है। उत्तरायणकाल की महत्ता का वर्णन हमारे शास्त्रकारों ने अनेक ग्रन्थों में किया है।
लोहड़ी का त्यौहार नए साल की शुरूआत में फसल की कटाई और बुवाई के उपलक्ष में मनाया जाता है साथ ही मलमास की समाप्ति का द्योतक भी है सूर्य देव देव गुरु की राशि में एक माह बिता कर अपने पुत्र से मिलने निकलते हैं | हिन्दू खगोलविद्दा के अनुसार मकर संक्रांति वह दिन है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के उत्तरायण होने से पहले विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ के तौर पर लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है। लोहड़ी नई ऊर्जा और संकल्पों का उत्सव भी है।
नई फसल के आगमन के उपलक्ष में तिल, ज्वार, मक्का आदि के दानों की आहुति देकर रेवड़ी, खील, गजक और मूंगफली आदि खाते हुए परिवार और रिश्तेदारों के साथ मनाया जाने वाला मन्नतों और सौगातों का यह त्योहार भारत की उल्लास पूर्ण संस्कृति को अभिव्यक्त करता है।
लोहड़ी का त्यौहार सर्दियों के जाने और बंसत के आने का संकेत है। लोहड़ी के दिन लकड़ियों या उपलों ढ़ेर बनाकर आग जलाई जाती है। लोहड़ी के पावन मौके के दिन पवित्र अग्नि में लोग रबी फसलों को अर्पित करते हैं। हिंदू परंपरा में ऐसा विश्वास है कि अग्नि में जो भी डाला जाता है वह उनके पितरों तक पहुंच जाता है। इसी विश्वास के कारण ही अग्निदेव को हवन देने की परंपरा है। इसी विश्वास के कारण लोहड़ी वाले दिन पूरे परिवार के लोग जलती हुई लोहड़ी की परिक्रमा करते हैं और नई फसल की बालियों से उसकी पूजा करते हैं और अग्नि में भी इसके कुछ दाने डाले जाते हैं।
लोहड़ी के त्योहार में अग्नि देव की पूजा की जाती है। ऋग्वेद की ऋचा में भी अग्नि देव के द्वारा देवताओं तक आहुति पहुँचाने की प्रार्थना की जाती है
"यो अग्निं देववीतये हविष्माँ आविवासति । तस्मै पावक मृळय"॥९॥- ऋग्वेद
हे शोधक अग्निदेव! देवो के लिए हवि प्रदान करने वाले जो यजमान आपकी प्रार्थना करते है, आप उन्हे सुखी बनाये॥९॥
लोहड़ी की पवित्र अग्नि में रेवड़ी, तिल, मूँगफली, गुड़ और गजक भी अर्पित किए जाते हैं। ऐसा करके सूर्य देव और अग्नि के प्रति आभार प्रकट किया जाता हैं ताकि उनकी कृपा से कृषि में उन्नति हो। इसके अलावा लोग इस पवित्र अग्नि के चारों तरफ चक्कर काटकर नाचते और गाते हैं।
लोहड़ी का त्यौहार मुख्य रूप से सूर्य देवता और अग्नि को समर्पित है। यह वह समय होता है जब सूर्य मकर राशि से गुजर कर उतर की ओर रूख करता है। ज्योतिष के अनुसार इस समय सूर्य उत्तरायण बनाता है। वहीं आग को जीवन और स्वास्थ्य से जोड़कर देखने की अवधारणा है।
अग्नि में तिल डालते हुए 'ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए' बोलते हुए अच्छे स्वास्थ्य व समृद्धि की कामना करते हैं। ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए अर्थात् गरीबी दूर हो और घर मे बहुत सारी समृद्धि आये। वे बहुतायत भूमि और समृद्धि के लिए अपने भगवान अग्नि और सूर्य से प्रार्थना करते हैं।
पंजाब में लोहड़ी के त्यौहार की एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है। इस त्यौहार के पंजाब में किया जाने वाला भागंडा और गिद्दा काफी मशहूर है। लोहड़ी में मिलने वाला प्रसाद तिल, गजक, गुड़, मूंगफली तथा मक्के के दानों का एक-दूसरे को बांटते हैं। आधुनिक समय में लोहड़ी का पर्व लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। इस त्यौहार के रंग में रंगकर लोग अपना सुख-दु:ख बांटते हैं। यही इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भी है। शाम को एक जगह एकत्र होते हैं. पूजा कर लोहड़ी जलाई जाती है और इसके आसपास सात चक्कर लगाते समय आग में तिल डालते हुए, ईश्वर से धनधान्य भरपूर होने का आशीर्वाद मांगा जाता है. ऐसा माना जाता है कि जिसके घर पर भी खुशियों का मौका आया, चाहे विवाह के रूप में हो या संतान के जन्म के रूप में, लोहड़ी उसके घर जलाई जाएगी और लोग वहीं एकत्र हों |
लोहड़ी के दिन लकडिय़ों व उपलों का जो अलाव जलाया जाता है उसकी राख अगले दिन मोहल्ले के सभी लोग सूर्योदय से पहले ही अपने-अपने घर ले जाते हैं क्योंकि इस राख को ईश्वर का आशीर्वाद माना जाता है।
अंजु आनंद
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