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अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया - पर नहीं बजेगी शहनाई (ज्योतिषचार्या अंजु आनंद  )

वैशाख शुक्ल तृतीया स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में से एक - वैदिक कलेंडर के चार अबूझ सर्वाधिक शुभ मुहूर्तों में से एक  इसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है
 'न क्षयः इति अक्षयः' अर्थात- जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय।
अक्षय यानि जो क्षय न हो सके मुहूर्त ज्योतिष के अनुसार चंद्रमास और सौरमास के अनुसार तिथियों का घटना-बढ़ना, क्षय होना तय होता है, लेकिन 'अक्षय' तृतीया का कभी भी क्षय नहीं होता।
यदि अक्षय तृतीया रोहिणी नक्षत्र के दिन पड़े तो इस दिन किए गए दान-पुण्य का फल बहुत अधिक बढ़ जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन आरम्भ किये जाने वाले कार्यो में काम प्रयास में अधिक सफलता मिलती है साथ ही इस दिन किये गया दान पुण्य का कभी क्षय नहीं होता, कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान कुबेर को संपत्ति और संपन्नता का आशीर्वाद मिला था।
इस तिथि की अधिष्ठात्री देवी पार्वती हैं।

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। 
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः।
 तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥ - (मदनरत्न )


तृतीया तिथि माँ गौरी की तिथि है, जो बल-बुद्धि वर्धक मानी गई हैं। अत: सुखद गृहस्थ की कामना से जो भी विवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन माँ गौरी व सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा करते हैं, उनके सौभाग्य में वृद्धि होती है। चंडीगढ़ की ज्योतिषाचार्या अंजु आनंद के अनुसार यदि अविवाहित स्त्री-पुरुष इस दिन श्रद्धा विश्वास से माँ गौरी सहित अनंत प्रभु शिव को परिवार सहित शास्त्रीय विधि से पूजते हैं तो उन्हें सफल व सुखद वैवाहिक सूत्र में अविलम्ब व निर्बाध रूप से जुड़ने का पवित्र अवसर अति शीघ्र मिलता है।

यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, इमली, सत्तू आदि गरमी के मौसम में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी।

इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।
सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।
दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदीरयेत्॥

अर्थात सभी महीनों की तृतीया में सफेद पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है।

साथ ही अक्षय तृतीया को विवाह ले लिए भी सर्वोत्तम मुहूर्त माना जाता है मान्यता है की इस दिन विवाह होने पर वर वधु पर भगवान की विशेष कृपा रहती है  लेकिन चंडीगढ़ की ज्योतिषाचार्या अंजु आनंद के अनुसार इस बार 2016 में अक्षय तृतीया पर विवाह का मुहूर्त नहीं है क्योंकि विवाह और सुख के कारक दो प्रमुख ग्रह शुक्र अस्त एवं देवगुरु वृहस्पति वक्री हैं | अगर दोनों में से कोई एक भी ग्रह अस्त हो तो विवाह कार्य वर्जित माने गए हैं, इस बार दो मई को बैसाख कृष्ण दशमी में शुक्र पूर्वास्त हो जाएगा। इसके कारण नौ मई को अक्षय तृतीया पर विवाह नहीं होंगे।

भविष्य पुराण के वर्णन के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। शास्त्रों में वर्णन के अनुसार वैशाख शुक्ल तृतीया सोमवार द्वितीय पहर रोहिणी नक्षत्र, शोभन योग में त्रेता युग की शुरुआत हुई थी इसीलिए माना जाता है कि यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है।

भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।

ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था |

इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं।

वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।

स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। इसीलिए  इस तिथि को परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।

इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (गन्ने) रस से पारायण किया था। इस कारण यह दिन को इक्षु तृतीया के नाम से भी जाना जाता है।

पाण्डवों के वनवास के दौरान पांचों पाण्डव वन-वन भटक रहे थे और उनके पास अन्न, धन-धान्य समाप्त हो गया। इस पर युधिष्ठर ने भगवान कृष्ण से इसका उपाय पूछा, भगवान कृष्ण ने कहा कि तुम सब पाण्डव धौम्य ॠषि के निर्देश में सूर्य साधना सम्पन्न करो। धौम्य ॠषि के निर्देशोनुसार पाण्डवों ने सूर्य साधना सम्पन्न की और सूर्य देव के द्वारा उन्हें अक्षय तृतीया के दिन अक्षय पात्र प्रदान किया गया ।
कहा जाता है कि उस अक्षय पात्र का भण्डार कभी खाली नहीं होता था और उस अक्षय पात्र के माध्यम से पाण्डवों को धन-धान्य की प्राप्ति हुई। उस धन-धान्य से वे पुनः अस्त्र-शस्त्र क्रय करने में समर्थ हो गये। इसी कारण अक्षय तृतीया के दिन अस्त्र-शस्त्र, वाहन क्रय किया जाता है।

अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान शिव ने देवी लक्ष्मी को जगत् की सम्पत्ति का संरक्षक नियुक्त किया था इसीलिये भगवती लक्ष्मी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिये इस दिन स्वर्ण आभूषण, भूमि, भवन इत्यादि क्रय करने का विशेष महत्व है।

धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया ६ घटी से अधिक होना चाहिए।
पद्म पुराण के अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए। इसी दिन महाभारत के युद्ध तथा द्वापर युग का समापन हुआ था।
निर्णय सिन्धु' में वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगा स्नान का महत्व बताया है -
बैशाखे शुक्लपक्षे तु तृतीयायां तथैव च।
गंगातोये नर: स्नात्वा मुच्यते सर्वकिल्विषै: ॥
ज्योतिषचार्या अंजु आनंद (चंडीगढ़ )

1 comment:

  1. जानकारी देने के लिये धन्यवाद

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