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शनि जयंती




शास्त्रों के अनुसार शनि देव जी का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को रात के समय हुआ था।  शनिदेव को अंधकार का देवता माना जाता है। अमावस्या तिथि जिस दिन रात्रि को स्पर्श करती है, उसी दिन शनि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 18मई, 2015 को अमावस्या तिथि सोमवार (सोमवती अमावस्या) को होने के कारण शनि जयंती का महत्व और भी बढ़ गया है। अमावस्या तिथि रविवार दोपहर 11.48 बजे लगेगी जो सोमवार सुबह 9.43 बजे तक रहेगी। इसके चलते स्मार्त मत वाले 17 को और वैष्णव मत वाले 18 को जयंती मनाएंगे।  शनिदेव का जन्म दोपहर 12 बजे माना जाता है। अमावस्या भी 17 मई को दोपहर 12 बजे रहेगी। इसलिए इस दिन शनि जयंती मनाना श्रेष्ठ है। 18 को अमावस्या सुबह 9.43 बजे समाप्त हो जाएगी।
सोमवती अमावस्या पितृ दोष, कालसर्प दोष के निवारण
की श्रेष्ठ तिथि मानी गई है और इस बार तो सोमवती अमावस्या का संयोग शनि जयंती के साथ हो रहा है। शनिदेव स्वयं पितृ दोष, रोग दोष से मुक्ति प्रदान करने वाले हैं, कालसर्प दोष निवारण की पूजा के लिए सोमवती अमावस्या और नागपंचमी के दिन का तो ज्योतिषीय शास्त्रों में स्पष्ट वर्णन है|  देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में मौन रहकर स्नान-ध्यान-दान और साधना द्वारा कालसर्प दोष का निवारण किया जाता है।
शनिदेव भगवान शिव द्वारा पृथ्वी लोक के न्यायाधीश नियुक्त किये गये हैं जो कि जीव को उसके शुभ-अशुभ कर्मों का न्यायोचित फल प्रदान करेते हैं।
पूर्व जन्म कृतं पापं व्याधि रूपेणा बाध्यते॥
तत शान्तमं औषधं, रत्नधारणम, होम च शुरार्चनै:॥
अर्थात :- पूर्व जन्मों में किये पाप कर्मों के कारण मनुष्य नाना प्रकार के रोग व कष्ट भोगता है। कष्टों की निवृत्ति के लिए औषधि, रत्नधारण, हवन व प्रभु-भक्ति उपरोक्त श्रेष्ठ उपाय सिद्ध है।
शनि को स्वभाव से क्रूर, पानी अभाव तथा दुख का कारक माना जाता है। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है, तभी तो महृषि देवव्यास जी ने भी कहा है
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वंयं।
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडऩं।।
अर्थात 18 पुराणों में महृषि वेदव्यास जी के  दो ही वचन हैं— परोपकार से बढक़र कोई पुण्य नहीं तथा दूसरों को पीड़ा देने से बढक़र कोई पाप नहीं है। इसी कारण परपीडक़ों के प्रति हिंसक शनिदेव अति क्रूर व निष्ठुर हैं। परंतु चरित्रवान, परोपकारी, दयावान, मातृ-पितृ भक्त तथा दान-पुण्य करने वाले आस्तिकों के परम मित्र, सहायक, दया के सागर एवं साक्षात आर्शीवाद हैं।

शनि पक्षरहित होकर पाप कर्म की सजा देते हैं इसलिए शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है यह जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं। शनि जयंती के अवसर पर शनिदेव के निमित्त विधि-विधान से पूजा पाठ तथा व्रत किया जाता है। शनि जयंती के दिन किया गया दान पुण्य एवं पूजा पाठ शनि संबंधि सभी कष्टों दूर कर देने में सहायक होता है।
'शनि जयंती' पर भगवान शनि देव से अपने समस्त बुरे कर्मों के लिए माफ़ी मांग लेनी चाहिए और निम्न मंत्रों का जाप करना चाहिए:
शनि गायत्री
 "ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि, तन्नो शनि: प्रचोदयात्।"
 प्रतिदिन श्रध्दानुसार 'शनि गायत्री' का जाप करने से घर में सदैव मंगलमय वातावरण बना रहता है।
वैदिक शनि मंत्र
    "ॐ शन्नोदेवीरमिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्रवन्तुन:।"
    यह शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे पवित्र और अनुकूल मंत्र है। इसकी दो माला सुबह शाम करने से शनि देव की भक्ति व प्रीति मिलती है।
कष्ट निवारण शनि मंत्र नीलाम्बर-
    "शूलधर: किरीटी गृघ्रस्थितस्त्रसकरो धनुष्मान्।
    चर्तुभुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाऽस्तुं मह्यं वरंदोऽल्पगामी॥"
इस मंत्र से अनावश्यक समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रतिदिन एक माला सुबह शाम करने से शत्रु चाह कर भी नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा।
सुख-समृद्धि दायक शनि मंत्र-
    "कोणस्थ:पिंगलो वभ्रु: कृष्णौ रौद्रान्त को यम:।
    सौरि: शनैश्चरौ मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:॥"
    इस शनि स्तुति का प्रात:काल पाठ करने से शनि जनित कष्ट नहीं व्यापते और सारा दिन सुख पूर्वक बीतता है।
शनि पत्नी नाम स्तुति-
    "ॐ शं शनैश्चराय नम: ध्वजनि धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
    कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा॥
    ॐ शं शनैश्चराय नम:"
यह बहुत ही अद्भुत और रहस्यमय स्तुति है। यदि कारोबारी, पारिवारिक या शारीरिक समस्या हो, तब इस मंत्र का विधिविधान से जाप और अनुष्ठान किया जाये तो कष्ट कोसों दूर रहेंगे।
भगवान शिव शनिदेव के गुरु हैं इसलिए शनिजयन्ती पर रुद्राभिषेक करना परम लाभदायक है।  रुद्राभिषेक के बाद महामृत्युंजय मंत्र का यथाशक्ति जप करें।
            "ॐ त्र्यम्बकम्‌ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌।"

आज के दिन तुलसी की 108 बार प्रदक्षिणा करने से घर से दरिद्रता दूर हो जाती है|   

शनिवार को सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करके इसके साथ ही इस दिन शनि चालीसा का पाठ विशेष फल प्रदान कराता हैं।

शनिदेव का सरसों के तेल से अभिषेक करें और शनि के मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नम का निरंतर जप करते रहे, उसके बाद 8 वस्तुओं  - काली उड़द, काले तिल, कोयला, प्रयोग किये हुए वस्त्र का टुकड़ा, काले चने, 8 दाने काली मिर्च, काले-नीले पुष्प, लोहे की वस्तु -इन सब को काले रंग के कपड़े में बाँध कर पोटली बना लें इस पोटली को अपने ऊपर से 7 बार उतारकर शनि देव के चरणों में रख दीजिए। सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा कस्तूरी अथवा चन्दन की धूप अर्पित करें|
    शनि के वैदिक मंत्र का उच्चारण करें

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्
छायामार्तण्ड संभूतम् तम नमामि शनैश्चरम्॥"

 दशरथ कृत शनि स्त्रोत्र का पाठ करें

नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोऽस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरुपाय कृष्णाय नमोऽस्तुते॥

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकायच।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥

नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोऽस्तुते।
प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥

शाम को पीपल के वृक्ष के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाएं।

शनिदेव प्रार्थना करें कि आपकी सभी समस्याएं दूर हो और बुरे समय से पीछा छूट जाए। इसके बाद पीपल की सात परिक्रमा करें।

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