गजचक्र / मातंगनायक
अब
मातंगनायक के चक्र को कहता हूं जिसके विचार करके यात्रा और युद्ध में विजय प्राप्ति होती
है । संपूर्ण अंगोंकर के संयुक्त हाथी के आकार चक्र लिखे । फिर सृष्टि मार्गकारके
अट्ठाईस नक्षत्र स्थापित करै ।
मुख में, शुंडाग्र में, आंखों में, कान में, मस्तक में,
अंघ्रि ( चरण ) में और पृछ में दो दो नक्षत्र स्थापित करें, पीठ और पेट में चार चार ।
पंडितजन अश्विनी आदि प्रथम बारह नक्षत्र मुख से गणना करें, जहां जिस नक्षत्र में शनि स्थित हो उसका शुभाशुभ फल कहे ॥१-४॥
मुख में,
शूंड के अगले भाग में, नेत्र में, मस्तक में तथा पेट में यदि शनि का नक्षत्र पड़ेगा
ऐसे समय युद्ध में उसकी जय होती है और पीठ में, पुच्छ में अथवा कान मे शनि का
नक्षत्र स्थित होवे तो ऐरावत के समान होने पर भी उसकी मृत्यु और रणमें भंग होवे ।
ये दुष्टभंग स्थान शनि स्थिति के मनुष्य पट्टबंध होने पर भी शीघ्र ही यत्न करके यात्रादि में वर्जित करे।
जिस प्रकार पृथ्वी का आभूषण सुमेरु पर्वत है, उसी प्रकार शर्वरी का आभूषण चन्द्रमा है, और मनुष्यों का आभूषण विद्या है, इसी प्रकार सेना का आभूषण हाथी है ॥५-८॥
ये दुष्टभंग स्थान शनि स्थिति के मनुष्य पट्टबंध होने पर भी शीघ्र ही यत्न करके यात्रादि में वर्जित करे।
जिस प्रकार पृथ्वी का आभूषण सुमेरु पर्वत है, उसी प्रकार शर्वरी का आभूषण चन्द्रमा है, और मनुष्यों का आभूषण विद्या है, इसी प्रकार सेना का आभूषण हाथी है ॥५-८॥
No comments:
Post a Comment
We appreciate your comments.