वैशाख शुक्ल
तृतीया
तिथि
वैदिक
कलैण्डर
के
चार
सर्वाधिक
शुभ
दिनों
में
से
एक
स्वयंसिद्ध
मुहूर्त
है
- अक्षय
तृतीया
|
अक्षय
तृतीया
को
सामान्यतया
'अखतीज',
'अक्खा
तीज'
या
'युगादितीज'
के
नाम
से
भी
पुकारा
जाता
है।
'अक्षय'
यानि
'जिसका
कभी
क्षय
न
हो'
अर्थात
जो
कभी
नष्ट
नहीं
होता।
'न क्षयः इति अक्षयः'
अर्थात-
जिसका
क्षय
नहीं
होता
वह
अक्षय।
मुहूर्त
ज्योतिष
के
अनुसार
चंद्रमास
और
सौरमास
के
अनुसार
तिथियों
का
घटना-बढ़ना,
क्षय
होना
तय
होता
है,
लेकिन
'अक्षय'
तृतीया
का
कभी
भी
क्षय
नहीं
होता।
अक्षय
तृतीया
को
अनंत
अक्षय
अक्षुण्य
फलदायक
कहा
जाता
है।
इस
तिथि
की
अधिष्ठात्री
देवी
पार्वती
हैं।
वैशाख
मास
को
भगवान
विष्णु
के
नाम
पर
'माधव
मास'
कहा
जाता
है।
इस
मास
के
शुक्लपक्ष
की
तृतीया
को
सनातन
ग्रंथों
में
अक्षय-फलदायी
बताया
गया
है।
इसी
कारण
इस
तिथि
का
नाम
'अक्षय
तृतीया'
पड़
गया।
भविष्य
पुराण
में
कहा
गया
है-
'यत् किंचिद् दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु।
तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता।।'
अर्थात
इस
तिथि
में
थोड़ा
या
बहुत,
जितना
और
जो
कुछ
भी
दान
दिया
जाता
है,
उसका
फल
अक्षय
हो
जाता
है। हिन्दू
धर्म
की
मान्यताओं
के
अनुसार
यह
दिन
सौभाग्य
और
सफलता
का
सूचक
है।
इस
दिन
को
'सर्वसिद्धि मुहूर्त
दिन'
भी
कहते
है,
क्योंकि
इस
दिन
शुभ
काम
के
लिये
पंचांग
देखने
की
ज़रूरत
नहीं
होती।
ऐसा
माना
जाता
है
कि
आज
के
दिन
मनुष्य
अपने
या
स्वजनों
द्वारा
किये
गये
जाने-अनजाने
अपराधों
की
सच्चे
मन
से
ईश्वर
से
क्षमा
प्रार्थना
करे
तो
भगवान
उसके
अपराधों
को
क्षमा
कर
देते
हैं
और
उसे
सदगुण
प्रदान
करते
हैं,
अतः
आज
के
दिन
अपने
दुर्गुणों
को
भगवान
के
चरणों
में
सदा
के
लिये
अर्पित
कर
उनसे
सदगुणों
का
वरदान
मांगना
चाहिए।
यह तिथि
यदि
सोमवार
तथा
रोहिणी
नक्षत्र
के
दिन
आए
तो
इस
दिन
किए
गए
दान,
जप-तप
का
फल
बहुत
अधिक
बढ़
जाता
हैं।
इसके
अतिरिक्त
यदि
यह
तृतीया
मध्याह्न
से
पहले
शुरू
होकर
प्रदोष
काल
तक
रहे
तो
बहुत
ही
श्रेष्ठ
मानी
जाती
है।
पुराणों
में
उल्लेख
मिलता
है
कि
इसी
दिन
से
त्रेता
युग
का
आरंभ
हुआ
था।
शास्त्रों
में
वर्णन
के
अनुसार
वैशाख
शुक्ल
तृतीया
सोमवार
द्वितीय
पहर
रोहिणी
नक्षत्र
, शोभन
योग
में
त्रेता
युग
की
शुरुआत
हुई
थी।
नर नारायण
ने
भी
इसी
दिन
अवतार
लिया
था।
स्कंद
पुराण
और
भविष्य
पुराण
में
उल्लेख
है
कि
वैशाख
शुक्ल
पक्ष
की
तृतीया
को
रेणुका
के
गर्भ
से
भगवान
विष्णु
ने
परशुराम
रूप
में
जन्म
लिया।
इसी विलक्षण
योग
में
प्रसिद्ध
तीर्थस्थल
बद्रीनारायण
के
कपाट
भी
पुनः
खुलते
हैं।
वृन्दावन
स्थित
श्री
बांके
बिहारी
जी
के
मन्दिर
में
भी
केवल
इसी
दिन
श्री
विग्रह
के
चरण
दर्शन
होते
हैं,
अन्यथा
वे
पूरे
वर्ष
वस्त्रों
से
ढके
रहते
हैं।
पाण्डुलिपियों
और
शास्त्रों
में
उल्लेख
है
कि
पर्व
के
दिन
भगवान
श्रीकृष्ण
चरण
दर्शन
करने
से
बद्रीनाथ
धाम
के
दर्शनों
का
पूरा
फल
श्रद्धालु
को
मिलता
है।
जैन धर्मावलम्बियों
का
विश्वास
है
कि
इस
दिन
जैन
धर्म
के
प्रथम
तीर्थंकर
श्री
आदिनाथ
भगवान
ने
एक
वर्ष
से
अधिक
समय
की
पूर्ण
तपस्या
करने
के
पश्चात
इक्षु
(शोरडी-गन्ने)
रस
से
पारायण
किया
था।
इस दिन
पूर्ण
बलि
स्वार्थ
सिद्ध
योग
रहता
है।
इस
दिन
सोने-
चांदी
की
खरीद
और
दान-
पुण्य
सबसे
अधिक
शुभ
फल
देने
वाला
होता
है।
अक्षय
तृतीया
को
व्रत
रखने
और
अधिकाधिक
दान
देने
का
बड़ा
ही
महात्म्य
है।
अक्षय
तृतीया
में
सतयुग,
किंतु
कल्पभेद
से
त्रेतायुग
की
शुरुआत
होने
से
इसे
युगादि
तिथि
भी
कहा
जाता
है।
वैशाख
मास
में
भगवान
भास्कर
की
तेज
धूप
तथा
लहलहाती
गर्मी
से
प्रत्येक
जीवधारी
क्षुधा
पिपासा
से
व्याकुल
हो
उठता
है।
यह
तिथि
वसंत
ऋतु
के
अंत
और
ग्रीष्म
ऋतु
का
प्रारंभ
का
दिन
भी
है
इसलिए
इस
तिथि
में
शीतल
जल,
कलश,
चावल,
चना,
दूध,
दही
आदि
खाद्य
व
पेय
पदार्थों
सहित
वस्त्राभूषणों
का
दान
अक्षय
व
अमिट
पुण्यकारी
माना
गया
है।
इस
दान
के
पीछे
यह
लोक
विश्वास
है
कि
इस
दिन
जिन-जिन
वस्तुओं
का
दान
किया
जाएगा,
वे
समस्त
वस्तुएँ
स्वर्ग
या
अगले
जन्म
में
प्राप्त
होगी।
सुख शांति
की
कामना
से
व
सौभाग्य
तथा
समृद्धि
हेतु
इस
दिन
शिव-पार्वती
और
नर
नारायण
की
पूजा
का
विधान
है।
इस
दिन
श्रद्धा
विश्वास
के
साथ
व्रत
रखकर
जो
प्राणी
गंगा-जमुनादि
तीर्थों
में
स्नान
कर
अपनी
शक्तिनुसार
देव
स्थल
व
घर
में
ब्राह्मणों
द्वारा
यज्ञ,
होम,
देव-पितृ
तर्पण,
जप,
दानादि
शुभ
कर्म
करते
हैं,
उन्हें
उन्नत
व
अक्षय
फल
की
प्राप्ति
होती
है।
इस
दिन
लक्ष्मी
नारायण
की
पूजा
सफेद
कमल
अथवा
सफेद
गुलाब
या
पीले
गुलाब
से
करना
चाहिये।
“सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।
दानकाले च सर्वत्र मंत्र मेत मुदीरयेत्॥"
ऐसी मान्यता
है
कि
इस
दिन
से
प्रारम्भ
किए
गए
कार्य
अथवा
इस
दिन
को
किए
गए
दान
का
कभी
भी
क्षय
नहीं
होता।
मदनरत्न
के
अनुसार:
"अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥"
तृतीया
तिथि
माँ
गौरी
की
तिथि
है,
जो
बल-बुद्धि
वर्धक
मानी
गई
हैं।
अत:
सुखद
गृहस्थ
की
कामना
से
जो
भी
विवाहित
स्त्री-पुरुष
इस
दिन
माँ
गौरी
व
सम्पूर्ण
शिव
परिवार
की
पूजा
करते
हैं,
उनके
सौभाग्य
में
वृद्धि
होती
है।
यदि
अविवाहित
स्त्री-पुरुष
इस
दिन
श्रद्धा
विश्वास
से
माँ
गौरी
सहित
अनंत
प्रभु
शिव
को
परिवार
सहित
शास्त्रीय
विधि
से
पूजते
हैं
तो
उन्हें
सफल
व
सुखद
वैवाहिक
सूत्र
में
अविलम्ब
व
निर्बाध
रूप
से
जुड़ने
का
पवित्र
अवसर
अति
शीघ्र
मिलता
है।
पृथ्वीचंद्रोदय
नामक
ग्रंथ
में
सौर
पुराण
का
यह
कथन
दिया
गया
है-
'युगादौ तु नर: स्नात्वा विधिवल्लवणोदधौ।
गोसहस्र प्रदानस्य फलं प्राप्नोति मानव:।।'
अर्थात
युगादि
तिथि
के
दिन
किसी
तीर्थ,
पवित्र
नदी
अथवा
सरोवर
में
स्नान
कर
दान
करने
से
एक
सहश्च
गायों
के
दान
(गोदान)
का
पुण्यफल
मिलता
है।
ऋषि-मुनियों
का
निर्देश
है
कि
अक्षय
तृतीया
के
दिन
हर
व्यक्ति
को
अपनी
सामर्थ्य
के
अनुसार
दान
अवश्य
करना
चाहिए।
भविष्योत्तर
पुराण
में
जौ-चने
का
सत्तू,
दही-चावल,
गन्ने
का
रस,
दूध
से
बनी
मिठाई,
शक्कर,
जल
से
भरे
घड़े,
अन्न
तथा
ग्रीष्म
ऋतु
में
उपयोगी
वस्तुओं
के
दान
की
बात
कही
गई
है।
सामान्यत:
सत्तू,
पानी
से
भरी
सुराही
अथवा
घड़े
के
साथ
ताड़
के
पंखे
का
दान
किए
जाने
का
प्रचलन
है।
यह
समाज
सेवा
है,
जो
सबसे
बड़ा
धार्मिक
कार्य
है। बृहत्पाराशर
संहिता
में
कहा
गया
है-
'दानमेकं कलौ युगे'
अर्थात
कलियुग
में
दान
अकेले
ही
सारा
पुण्य
दे
देता
है।
भगवान
कृष्ण
का
गीता
में
उपदेश
है-
'यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्'
अर्थात
यज्ञ,
दान
और
तप
मनीषियों
को
पावन
करने
वाले
हैं।
श्रीमद्भागवत
महापुराण
के
अनुसार,
-
'शुध्यंति दानै: संतुष्ट्या द्रव्याणि'
अर्थात
धन
दान
और
संतोष
से
शुद्ध
होता
है।
इससे
अभिप्राय
यह
है
कि
धन
होने
पर
दान
जरूर
करें,
इससे
मन
को
संतोष
मिलता
है
और
चित्त
शुद्ध
हो
जाता
है।
'अक्षय
तृतीया'
के
दिन
ख़रीदे
गये
वेशक़ीमती
आभूषण
एवं
सामान
शाश्वत
समृद्धि
के
प्रतीक
हैं।
इस
दिन
ख़रीदा
व
धारण
किया
गया
सोना
अखण्ड
सौभाग्य
का
प्रतीक
माना
गया
है।
इस
दिन
शुरू
किये
गए
किसी
भी
नये
काम
या
किसी
भी
काम
में
लगायी
गई
पूँजी
में
सदा
सफलता
मिलती
है
और
वह
फलता-फूलता
है।
यह
माना
जाता
है
कि
इस
दिन
ख़रीदा
गया
सोना
कभी
समाप्त
नहीं
होता,
क्योंकि
भगवान
विष्णु
एवं
माता
लक्ष्मी
स्वयं
उसकी
रक्षा
करते
हैं।
अक्षय तृतीया पर करें ये उपाय
अपने सामने
सात
गोमती
चक्र
और
महालक्ष्मी
यंत्र
को
स्थापित
करें
और
सात
तेल
के
दीपक
लगाएं।
यह
सब
एक
ही
थाली
में
करें
और
यह
थाली
अपने
सामने
रखें
और
शंख
माला
से
इस
मंत्र
की
51 माला
जप
करें-
मंत्र
हुं हुं हुं श्रीं श्रीं ब्रं ब्रं फट्
अक्षय
तृतीया
के
दिन
इस
प्रकार
साधना
करने
से
सभी
सुख
प्राप्त
होते
हैं।
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