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शनि अमावस्या


हिन्दू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है और अमावस्या तिथि यदि शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। शास्त्रों में इसे बहुत ही दुर्लभ योग कहा गया है | अमावस्या और शनिवार दोनों ही शनि के प्रभाव में होते हैं। इसलिए यह प्रबल शनि योग बनाता है।
'भविष्यपुराण' के अनुसार 'शनि अमावस्या' शनि देव को अधिक प्रिय रहती है। यह 'पितृकार्येषु अमावस्या' और 'शनिश्चरी अमावस्या' के रूप में भी जानी जाती है।
आरोग्य लाभ, पुष्टि और वंश वृद्धि के लिए पितरों का अनुग्रह जरूरी है। 'शनि अमावस्या' के दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृदोष या जो भी कोई पितृ दोष की पीड़ा को भोग रहे होते हैं,
उन्हें इस दिन दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए। यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनि देव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बड़ी सहजता से हो जाता है।
'कालसर्प योग', 'ढैय्या' तथा 'साढ़ेसाती' सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए 'शनि अमावस्या' एक दुर्लभ दिन व महत्त्वपूर्ण समय होता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं में 'शनि अमावस्या' की काफ़ी महत्ता बतलाई गई है। इस दिन व्रत, उपवास, और दान आदि करने का बड़ा पुण्य मिलता है।
जिन जातकों की कुण्डली में शनि की स्थिति प्रतिकूल होती है उन्हें शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या के दौरान काफी संघर्ष करना पड़ता है। इन दिनों तुला, वृश्चिक और धनु राशि वाले व्यक्ति साढ़ेसाती के प्रभाव में चल रहे हैं। जबकि कुम्भ और मिथुन राशि के जातक ढ़ैय्या के प्रभाव में है इसलिए उन्हें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए और शनिदेव को प्रसन्न करके उनको अनुकूल बनाना चाहिए
शनि अमावस्या के दिन शनि दोष, काल सर्प दोष, पित्र दोष, ग्रहण दोष एवं चाण्डाल दोष से प्रभावित लोग पूजन एवं दान कर परेशानियों से राहत प्राप्त कर सकते हैं।
इस दिन महाराज दशरथकृत 'शनि स्तोत्र' का पाठ करके शनि की कोई भी वस्तु जैसे- काला तिल, लोहे की वस्तु, काला चना, उड़द दाल, कंबल, नीला फूल, चमड़े का जूते या चप्पल, नमक, सरसो का तेल या अनाज दान करने से शनि साल भर कष्टों से बचाए रखते हैं। शनि से शुभ फल पाने के लिए काली गाय का दान करना चाहिए।(किसी भी वस्तु का दान अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार किया जाना चाहिए।) वैशाख में छाता,जूता,जल से भरा घड़ा और ककड़ी के दान का विशेष विधान है। यह सब अमावस्या को करने से शनि प्रसन्न होंते हैं।
जो लोग इस दिन यात्रा में जा रहे हैं और उनके पास समय की कमी है, वह सफर में 'शनि नवाक्षरी मंत्र' अथवा
'कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम: ।
सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत:।।'    मंत्र का जप करने का प्रयास करते हैं तो शनि देव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।

इस दिन जल में चीनी एवं काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करके तीन परिक्रमा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। शनिवार के दिन उड़द दाल की खिचड़ी खाने से भी शनि दोष के कारण प्राप्त होने वाले कष्ट में कमी आती है।
शनि को खुश करने के लिए ज्योतिषशास्त्र में कुछ मंत्रों का भी उल्लेख किया गया है।
'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: ।'
 'ॐ शं शनये नम: ।'

जैसे शनि वैदिक मंत्र
'ओम शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न: ।'
शनि का पौराणिक मंत्र
 'ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसंभुतं नमामि शनैश्चरम।'

इन मंत्रों का नियमित कम से कम 108 बार जप करने से शनि के प्रकोप में कमी आती है।

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