बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यत: विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को
पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी मधुर होती
है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है, विद्या में कुशलता प्राप्त होती है।
ऋग्वेद में भगवती
सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।
हमारी भारतीय परंपरा में शिक्षा मुहूर्त के लिए इस दिन को श्रेष्ठतम
माना गया है।
इस दिन छोटे बच्चों को माँ सरस्वती की पूजा करके अक्षर ज्ञान कराया जाता है। अपने अंदर गुणों का विकास और नवीन सृजनशक्ति के लिये उदय के लिये हिंदु धर्म शास्त्रों में मां को समर्पित ऐसे अनेक मंत्र उद्धृत किये गये है।
इस दिन छोटे बच्चों को माँ सरस्वती की पूजा करके अक्षर ज्ञान कराया जाता है। अपने अंदर गुणों का विकास और नवीन सृजनशक्ति के लिये उदय के लिये हिंदु धर्म शास्त्रों में मां को समर्पित ऐसे अनेक मंत्र उद्धृत किये गये है।
विशेष रूप से विद्यार्जन
करने वालों को मां की अर्चना सुबह 5 बजे करनी चाहिये। इसी प्रकार
गोधुली बेला में मां के समीप दीप प्रावलित कर सद्विचारों की उत्पत्ति के लिये
आराधना करनी चाहिये।
मां सरस्वती की आराधना
में सृष्टि रचयिता ब्रम्हा से लेकर विनाश करने वाले आदिदेव भगवान शंकर और विष्णु
भी पीछे नहीं रहे है। जब स्वयं सृष्टि का संचालन करने वाले देवों ने वीणावादिनी को
आदर और सम्मान दिया है, तब मृत्यु लोक में रहने वाले
प्राणियों में बुध्दि से संयोजित किये गये मानवीय समाज में मां की वंदना भला कैसे
भुल जा सकती है। हमारे शास्त्र कहते है कि विद्याभिलाषी लोगों को और से अलग स्थान
बनाने नियमित रूप से मां के इस मंत्र का उच्चारण स्नान और शुध्दता के साथ करना
चाहिये।
विद्या प्राप्ति के अचूक
सरस्वती मंत्र
सरस्वती मंत्र 1 :
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा
शुक्लां ब्रम्ह विचार सांर परमां आधां जगद्व्यापिनी।
वीणा पुस्तक धारिणी, अभयदां जाडयान्धाकारापाहा॥
हस्ते स्फटिक मालीनाम विदधंती पद्मासने संस्थितां।
वंदे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुध्दि प्रदां शारदा॥
अर्थात जो कुंद, फूल,
चंद्रमा और बर्फ के समान श्वेत है, जो
शुभ्र वस्त्रधारण करती है। जिनके हाथ श्रेष्ठ वीणा से सुशोभित है। जो श्वेत कमल पर
आसन ग्रहण करती है। ब्रम्हा, विष्णु और महेश आदि देव जिनकी
सदैव स्तुति करते है।
हे मां! सरस्वती आप मेरी सारी जड़ता को हरें।
सरस्वती मंत्र 3 :
"यथा वु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामहः।
त्वां परित्यज्य नो तिष्ठंन, तथा भव वरप्रदा।।
वेद शास्त्राणि सर्वाणि नृत्य गीतादिकं चरेत्।
वादितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तुसिद्धयः।।
लक्ष्मीर्वेदवरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभामतिः।
एताभिः परिहत्तनुरिष्टाभिर्मा सरस्वति।।
अर्थात् "देवि!
जिस प्रकार लोकपितामह ब्रह्मा आपका कभी परित्याग नहीं करते,
उसी प्रकार आप भी हमें वर दीजिए कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से वियोग न हो। हे देवि!
वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य गीतादि जो भी विद्याएँ हैं, वे सभी आपके अधिष्ठान में ही रहती हैं, वे सभी मुझे प्राप्त हों। हे भगवती सरस्वती देवि! आप अपनी- लक्ष्मी, मेधा, वरारिष्टि, गौरी,
तुष्टि, प्रभा तथा मति- इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें।"
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