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मकर संक्रांति



शिशिर ऋतु की विदाई और बसंत का अभिवादन तथा अगहनी फ़सल के कट कर घर में आने का उत्सव है - मकर संक्रांति
 भारत में माघ महीने में सबसे अधिक सर्दी पड़ती है, अत: शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए  तिल,  चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन किया जाता है। मकर संक्रांति में इन खाद्य पदार्थों के सेवन का यह भौतिक आधार है। इन खाद्यों के सेवन का धार्मिक आधार भी है। शास्त्रों में लिखा है

कि माघ मास में जो व्यक्ति प्रतिदिन विष्णु भगवान की पूजा तिल से करता है और तिल का सेवन करता है, उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। केवल तिल-तिल जप करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। तिल का महत्व मकर संक्रांति में इस कारण भी है कि सूर्य देवता धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अत: शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है।

चावल, गुड़ एवं उड़द खाने का धार्मिक आधार यह है कि इस समय ये फ़सलें तैयार होकर घर में आती हैं। इन फ़सलों को सूर्य देवता को अर्पित करके उन्हें धन्यवाद दिया जाता है कि "हे देव! आपकी कृपा से यह फ़सल प्राप्त हुई है। अत: पहले आप इसे ग्रहण करें तत्पश्चात प्रसाद स्वरूप में हमें प्रदान करें, जो हमारे शरीर को उष्मा, बल और पुष्टता प्रदान करे।"

यदि दीपावली ज्योति का पर्व है तो मकर संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है।

तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि –
माघ मकर रबिगत जब होई। तीरथपति आवहिं सब कोई।।
देव दनुज किन्नर नर श्रेंणी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेंणी।।

माघ माह में सूर्यदेव जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो कहा जाता है कि सभी देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, नाग, किन्नर आदि इस अवधि के मध्य तीर्थराज प्रयाग में एकत्रित होकर संगम तट पर स्नान करते हैं।

इस माह अपने पितरों को अर्घ्य देने और श्राद्ध-तर्पण करने से पितृश्राप से भी मुक्ति मिल जाती है। मत्स्य पुराण के अनुसार प्रयाग तीर्थ में आठ हजार श्रेष्ठ धनुर्धारी, माँ गंगा की रक्षा करते हैं। इसी तरह सूर्यदेव पुत्री यमुना की, देवराज इंद्र प्रयाग की, शिव अक्षय वट की और विष्णु मंडल की रक्षा करते हैं।

जो मनुष्य प्रातःकाल स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देता है उसे किसी भी प्रकार का ग्रहदोष नहीं लगता। क्योंकि इनकी सहस्रों किरणों में से प्रमुख सातों किरणें सुषुम्णा, हरिकेश, विश्वकर्मा, सूर्य, रश्मि, विष्णु और सर्वबंधु, (जिनका रंग बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल है) हमारे शरीर को नई उर्जा और आत्मबल प्रदान करते हुए हमारे पापों का शमन कर देती हैं।

कर्मविपाक संहिता में भी कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति, देवता, योगी ऋषि आदि भगवान् सूर्य का ही ध्यान करते हैं। सूर्यदेव केवल जल अर्घ्य देने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अकेले सूर्य ही बलवान हों तो सात ग्रहों का दोष शमन कर देते हैं।


प्रातःकालीन लाल सूर्य का दर्शन करते हुए
ॐ सूर्यदेव महाभाग त्र्यलोक्य तिमिरापः मम् पूर्वकृतं पापं क्षम्यतां परमेश्वरः
यह मंत्र बोलते हुए सूर्य नमस्कार करने से जीव को पूर्वजन्म में किए हुए पापों से मुक्ति मिलती है।

मकर संक्रांति का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व के साथ साथ समाजिक उत्सव के रूप में बड़ा ही महत्व पूर्ण स्थान है। सृष्टि के आरम्भ में परम पुरुष नारायण ने अपनी योगमाया से अपनी प्रकृति में प्रवेश कर सर्वप्रथम जल में अपना आधान किया। इस कारण से इन्हें हिरण्यगर्भ भी कहा जाता है। सर्वप्रथम होने कारण ये आदित्य देव भी कहलाते हैं। सूर्य से ही सोम यानी चन्द्रमा की उतपत्ति कारण ये आदित्य देव भी कहलाते हैं।
१४ जनवरी को सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करेगा। वैसे तो बारह राशि के बारह संक्रांति होते हैं लेकिन धनु से मकर में संक्रमण (मकर संक्रांति) का महत्व भारतीय संस्कृति में आदि काल से महत्वपूर्ण रहा है।
मकर संक्रांति के दिन लोग तिल का तेल लगाकर नदियों में स्नान करते हैं एवं तिल गुड चावल आदि का भोजन एवं दान करते हैं इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है जो लोग आज के दिन स्नान नही करते हैं उन्हें सात जन्मों तक रोगी रहना पड़ता है।  

लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थस्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं। मकर संक्रांति सामाजिक समरसता का पर्व है। मान्यता है कि तिल घी गुड़ और काली उड़द की खिचड़ी का दान और उसका सेवन करने से शीत का प्रकोप शांत होता है। 

दक्षिण भारत में बालकों के विद्याध्ययन का पहला दिन मकर संक्रांति से शुरू कराया जाता है। प्राचीन रोम में इस दिन खजूर, अंजीर और शहद बांटने का उल्लेख मिलता है। ग्रीक के लोग वर.वधू को संतान.वृद्धि के लिए तिल से बने पकवान बांटते थे।


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