कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाने वाला करकचतुर्थी या करवाचौथ का व्रत
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु की कामना हेतु कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (श्री करक चतुर्थी व्रत करवा चौथ के नाम से प्रसिध्द है) को करवाचौथ का व्रत रखती हैं।
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु की कामना हेतु कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (श्री करक चतुर्थी व्रत करवा चौथ के नाम से प्रसिध्द है) को करवाचौथ का व्रत रखती हैं।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाने वाला करक चतुर्थी या करवाचौथ का व्रत चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है।
छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार करवा चौथ के दिन व्रत रखने से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। इससे आयु में वृद्धि होती है और इस दिन गणेश तथा शिव-पार्वती और चंद्रमा की पूजा की जाती है।
छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार करवा चौथ के दिन व्रत रखने से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। इससे आयु में वृद्धि होती है और इस दिन गणेश तथा शिव-पार्वती और चंद्रमा की पूजा की जाती है।
वामन पुराण में करवा चौथ व्रत का वर्णन आता है। करवा चौथ व्रत को रखने वाली स्त्रियों को प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर इस व्रत को करना चाहिए।
इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, श्री गणेश, श्री कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा का विधान है। गोधूलि की बेला यानी चन्द्रोदय के एक घण्टे पूर्व श्री गणपति एवं अम्बिका गौर, श्री नन्दीश्वर, श्री कार्तिकेयजी, श्री शिवजी , पार्वतीजी और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है
पति के सुख-सौभाग्य के लिए रखा जाने वाला यह व्रत उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मुख्य रूप से मनाए जाने के साथ ही भारत के अन्य कई राज्यों में भी मनाया जाता है।
व्रत करने की विधि :
सूर्योदय से पूर्व :
सुबह सूर्योदय से पूर्व अर्थात तारों की छांव में सुहागिनें स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर इस व्रत को करती हैं।
संकल्प मंत्र - "मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।"
व्रत का संकल्प लेकर सरगी खाती हैं जो उन्हें उनकी सास द्वारा भेंट की जाती हैं। सरगी में मिठाई, फल व सेवइयों के साथ श्रृंगार का सामान भी होता है।
सुबह सूर्योदय से पूर्व अर्थात तारों की छांव में सुहागिनें स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर इस व्रत को करती हैं।
संकल्प मंत्र - "मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।"
व्रत का संकल्प लेकर सरगी खाती हैं जो उन्हें उनकी सास द्वारा भेंट की जाती हैं। सरगी में मिठाई, फल व सेवइयों के साथ श्रृंगार का सामान भी होता है।
सरगी खाने के बाद करवाचौथ का निर्जल व्रत आरंभ होता है।
करवा चौथ की पूजा सामग्री:
कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मिठाई, गंगाजल, चंदन, अक्षत, (चावल) सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा,बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलवा, दक्षिणा के लिए पैसे करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें।
गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं।
भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें।
मां पार्वती को श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं या उनका श्रृंगार करें.
श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री और पेड़े का भोग लगाएं। उनके सामने मोगरा या चन्दन की अगरबत्ती और घी का दीपक जलाएं।
मिटटी के कर्वे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं। कर्वे में दूध, जल और गुलाब जल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार जरूर करें, इससे सौंदर्य बढ़ता है।
इस दिन करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिए। कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों का चरण स्पर्श करना चाहिए।
गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं।
भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें।
मां पार्वती को श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं या उनका श्रृंगार करें.
मिटटी के कर्वे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं। कर्वे में दूध, जल और गुलाब जल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार जरूर करें, इससे सौंदर्य बढ़ता है।
इस दिन करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी चाहिए। कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों का चरण स्पर्श करना चाहिए।
सायंकाल को कथावाचन और थाली बंटाना :
देवताओं की प्रतिमा अथवा चित्र का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिये . पूजन के लिये स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिये क्योंकि ज्ञान, कर्म, तेज और शक्ति का स्वामी सूर्य पूर्व से उदित होता है
'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का,
'ॐ नमः शिवाय' से शिव का,
'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का,
'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा
'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।
रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएँ।
गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
शाम को एक नियत समय पर सभी स्त्रियां सोलह शृंगार कर एक खुले स्थान पर एकत्रित होती हैं। उनके हाथों में सजी थाली में मीठी व फीकी मट्ठियां, नारियल, फल, कपड़े व शगुन रखा होता है और साथ में पानी से भरी एक गड़वी होती है जिसमें थोड़े से कच्चे चावल व चीनी के दाने होते हैं। पीली मिट्टी से गौरी बनाकर और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाती हैं।सभी सुहागिनों को कोई बड़ी-बूढ़ी महिला या मंदिर का पुजारी करवा चौथ व्रत की कथा सुनाता है। इसके बाद थालियां बंटाने की रस्म शुरू हो जाती है। इसे करवा खेलना भी कहते हैं।
सभी स्त्रियां गोल दायरे में बैठ जाती हैं और अपनी थाली में शुद्ध घी की जोत जलाकर अपनी-अपनी थाली पंक्ति में एक-दूसरे को पकड़ाती जाती हैं और जब उनकी थाली उनके हाथों में आ जाती है तो एक चक्कर पूरा होता है। इस तरह से सभी सात बार थाली बंटाते हुए यह गीत गाती हैं-
ले वीरो कुडि़ए करवड़ा, ले सर्व सुहागन करवड़ा,
ले कटी न अटेरीं न, खुंब चरखड़ा फेरीं ना,
ग्वांड पैर पाईं ना, सुई च धागा फेरीं ना,
रुठड़ा मनाईं ना, सुतड़ा जगाईं ना,
बहन प्यारी वीरां, चंद चढ़े ते पानी पीना,
लै वीरां कुडि़ए करवड़ा, लै सर्व सुहागिन करवड़ा।
इसके बाद वे थाली में रखा सामान जिसे ‘बया’ कहते हैं अपनी सास को दे देती हैं व चरण छूकर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
चंद्रोदय के समय : रात को जब चांद निकलता है तो वे भगवान शिव-पार्वती व श्री गणेश का ध्यान करते हुए चंद्रमा को छलनी की ओट से देख कर फिर पति का चेहरा देखती हैं। तब वे चंद्रमा को अघ्र्य देती हैं और पति उन्हें पानी पिलाकर उनका व्रत सम्पूर्ण करते हैं। चंद्रमा को अघ्र्य देते समय वे यह मंत्र बोलती हैं-
पीर धड़ी पेर कड़ी, अर्क देंदी सर्व सुहागिन चौबारे खड़ी।
या
"करकं क्षीरसम्पूर्णा तोयपूर्णमथापि वा।
ददामि रत्नसंयुक्तं चिरञ्जीवतु मे पतिः॥"
या
"करकं क्षीरसम्पूर्णा तोयपूर्णमथापि वा।
ददामि रत्नसंयुक्तं चिरञ्जीवतु मे पतिः॥"
तत्पश्चात सुहागिनें भोजन ग्रहण करती हैं। इस तरह करवा चौथ का व्रत पूर्ण होता है।
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