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Diwali 2014

गोवत्स द्वादशी - 
                        दीपावली के इस पञ्च दिवसीय उत्सव का शुभारम्भ कार्तिक के कृष्ण पक्ष की द्वादशी के साथ ही हो जाता है| कार्तिक मास की द्वादशी को गोवत्सद्वादशी कहते हैं । इस दिन दूध देने वाली गाय को उसके बछड़े सहित स्नान कराकरवस्त्र ओढाना चाहिये, गले में पुष्पमाला पहनाना , सींग मढ़ना, चन्दन का तिलक करना तथा ताम्बे के पात्र में सुगन्ध, अक्षत, पुष्प,तिल, और जल का मिश्रण बनाकर निम्न मंत्र से गौ के चरणों का प्रक्षालन करना चाहिये।
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते ।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नमः ॥
(समुद्र मंथनके समय क्षीरसागर से उत्पन्न देवताओं तथा दानवों द्वारा नमस्कृत, सर्वदेवस्वरूपिणी माता तुम्हे बार बार नमस्कार है।)
पूजा के बाद गौ को उड़द के बड़े खिलाकर यह प्रार्थना करनी चाहिए-
“सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता ।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ॥
ततः सर्वमये देवि सर्वदेवलङ्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरू नन्दिनी ॥“



(हेजगदम्बे ! हे स्वर्गवसिनी देवी ! हे सर्वदेवमयि ! मेरे द्वारा अर्पित इस ग्रास का भक्षण करो ।हे समस्त देवताओं द्वारा अलंकृत माता ! नन्दिनी ! मेरा मनोरथ पुर्ण करो।) इसके बादरात्रि में इष्ट , ब्राम्हण , गौ तथा अपने घरके वृद्धजनों की आरती उतारनी चाहिए।
गाय के शरीर पर 33 कोटि देवताओं का वास है तथा गाय की पूजा करने पर सभी देवताओं की पूजा हो जाती है। कार्तिक मास में तो गाय की सबसे अधिक पूजा की जाती है। गाय की सेवा करने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति हो जाती है। अग्नि पुराण के अनुसार गाय के पूजन से दरिद्रता मिटती है। जो मनुष्य किसी दूसरे की गाय को गो ग्रास देता है उसे परम पद मिलता है। जो नित्य गाय की सेवा करता है उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। गाय का दूध, मूत्र और गोबर हमारे लिए एक बहुमूल्य उपहार हैं। जिसका गुणगान वेद और पुराणों में भी है तथा आधुनिक विज्ञान भी इसकी गुणवत्ता का लोहा मान रहा है। 
क्या न करें- गोवत्स द्वादशी को भोजन में गाय के दूध अथवा उससे तैयार किए गए किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे दही, मक्खन, लस्सी अथवा घी आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा न ही तेल में पके हुए भुजिया, नमकीन एवं पकौड़ी आदि पदार्थों का सेवन करना चाहिए। 


दूसरे दिन कार्तिककृष्ण त्रयोदशी के दिन को धनतेरस कहते हैं । भगवान धनवंतरी ने दुखी जनों के रोगनिवारणार्थ इसी दिन आयुर्वेद का प्राकट्य किया था ।
इस दिन घर के टूटे-फूटे पुराने बर्तनों के बदले नये बर्तन खरीदे जाते हैं। इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इन्हीं बर्तनों में भगवान गणेश और देवी लक्ष्मीजी की मूर्तियों को रखकर पूजा की जाती है। इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा करते समय
 ''यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये |
धन-धान्य समृद्ध में देहि दापय स्वाहा || ''
का स्मरण करके फूल चढ़ाये। इसके पश्चात कपूर से आरती करें। इस समय देवी लक्ष्मीजी, भगवान गणेशजी और जगदीश भगवान की आरती करे। 
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्नहुए हैं। भगवान धनवंतरी नेदुखी जनों के रोग निवारणार्थ इसी दिन आयुर्वेद का प्राकट्य किया था । देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकीकृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण हैदीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवानधन्वन्तरी चुकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने कीपरम्परा है। इस दिन चांदी के बर्तन खरीदना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इन्हीं बर्तनों में भगवान गणेश और देवी लक्ष्मीजी की मूर्तियों को रखकर पूजा की जाती है। इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा करते समय
 ''यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये |
धन-धान्य समृद्ध में देहि दापय स्वाहा || ''
का स्मरण करके फूल चढ़ाये। इसके पश्चात कपूर से आरती करें। इस समय देवी लक्ष्मीजी, भगवान गणेशजी और जगदीश भगवान की आरती करे
कहींकहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणावृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावलीके बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचोंमें या खेतों में बोते हैं।


इस दिन सन्ध्या के समय घर के बाहर हाथ में जलता हुआदीप लेकर भगवान यमराज की प्रसन्नता हेतु उन्हे इस मंत्र के साथ दीप दान करनाचाहिये-
मृत्युना पाशदण्डाभ्याम्  कालेन श्यामया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ॥
(Mrityunaa Paashah Hastena Kalena bhaaryaapaa Saha
Trayodasham Deepdaanam Suryajah Pritaamivee)

(त्रयोदशीके इस दीपदान के पाश और दण्डधारी मृत्यु तथा काल के अधिष्ठाता देव भगवान देव यम, देवी श्यामला सहित मुझ पर प्रसन्न हो।)






नरक चतुर्दशी केदिन चतुर्मुखी दीप का दान करने से नरक भय से मुक्ति मिलती है । एक चार मुख ( चारलौ ) वाला दीप जलाकर इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिये –
” दत्तो दीपश्वचतुर्देश्यां नरकप्रीतये मया ।
चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये  ॥“

(आज नरकचतुर्दशी के दिन नरक के अभिमानी देवता की प्रसन्नता के लिये तथा समस्त पापों केविनाश के लिये मै चार बत्तियों वाला चौमुखा दीप अर्पित करता हूँ।)
यद्यपि कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए, फिर भी नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-मालिश (तैलाभ्यंग)करके स्नान करने का विधान है। 'सन्नतकुमार संहिता' एवं धर्मसिन्धु ग्रन्थ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षाहोती है। जो इस दिन सूर्योदय के बाद स्नान करता है उसके शुभकर्मों का नाश हो जाताहै। -

दीपावली - 
अगले दिन कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनायाजाता है । इस दिन प्रातः उठकर स्नानादि करके जप तप करने से अन्य दिनों की अपेक्षाविशेष लाभ होता है । इस दिन पहले से ही स्वच्छ किये गृह को सजाना चाहिये । भगवाननारायण सहित भगवान लक्ष्मी जी की मुर्ती अथवा चित्र की स्थापना करनी चाहिये तत्पश्चात धूप दीप व स्वस्तिवाचन आदि वैदिक मंत्रो के साथ या आरती के साथ पुजाअर्चना करनी चाहिये । इस रात्रि को लक्ष्मी भक्तों के घर पधारती है 






अन्नकूट दिवस / गोवर्धन-पूजा -
पांचवे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट दिवस कह्ते है । धर्मसिन्धु आदि शास्त्रों के अनुसार गोवर्धन-पूजा के दिनगायों कोसजाकर, उनकी पूजा करके उन्हें भोज्य पदार्थ आदिअर्पित करने का विधान है। इस दिन गौओ को सजाकर उनकी पूजा करके यह मंत्रकरना चाहिये,गौ-पूजन का मंत्र –
लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।
घृतं वहति यज्ञार्थ मम पापं त्यपोहतु ॥
(धेनुरूप में स्थित जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी है तथा जो यज्ञ के लिए घी देती है , वह गौ माता मेरे पापों का नाश करे । रात्री को गरीबों को यथा सम्भव अन्नदान करना चाहिये । इस प्रकार पांच दिनों का यह दीपोत्सव सम्पन्न होता है ।

भाई दूज -- यम द्वितीया --
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जानेवाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भाईदूज में हर बहनरोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं।भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देता है।
"गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को,
सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे
मेरे भाई की आयु बढ़े"
इस त्योहार के पीछे एक किंवदंती यह है कि यम देवता ने अपनी बहन यमी (यमुना) को इसी दिन दर्शन दिया था, जो बहुत समय से उससे मिलने के लिए व्याकुल थी। अपने घर में भाई यम के आगमन पर यमुना ने प्रफुल्लित मन से उसकी आवभगत की।यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी।

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