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शनि का राशि परिवर्तन- 2014

‘‘तुष्टो ददासि वै राज्यं, रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।’’
 महर्षि कश्यप द्वारा रचित शनि स्तोत्र के अनुसार- ‘‘शनिदेव’’ संतुष्ट या प्रसन्न होने पर भिखारी को भी राजा के समान सुख दे देते हैं और रुष्ट होने पर राजाओं के राज्य छीनकर उन्हें क्षण भर में भिखारी बना देते हैं।
इसलिए शनि चालीसा में कहा गया है
‘‘जा पर प्रभु प्रसन्न हुई जाहीं। रंकहुं राव करे क्षण माही।।’’
शनिदेव अपनी उच्च या मूल त्रिकोण राशि में,
जातक की जन्मकालीन लग्न या चन्द्र राशि से 3, 6, 11वें भाव में भ्रमण करते समय शुभ फल प्रदान करते हैं ।
अष्टकवर्ग के फलानुसार जब शनि जातक की अधिक रेखायुक्त राशि में प्रवेश करते हैं । तब उस जातक को शनि संबंधी शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तथा लग्न से जिस भाव में वह राशि हो उस भाव से संबंधित शुभ फलों की वृद्धि का लाभ मिलेगा। उदाहरणार्थ, जिस व्यक्ति के शन्याष्टक वर्ग कुंडली के वृश्चिक राशि में शनि की 4 या 4 से अधिक शुभाष्टक रेखाएं हों। उस व्यक्ति को वृश्चिक के गोचरीय शनि का शुभफल अवश्य प्राप्त होगा। फिर चाहे भले ही शनि जन्म राशि से अशुभ (12, 1, 2, 4, 8) स्थानों में गोचर कर रहा हो। क्योंकि उपरोक्त स्थिति में उसे शनि का शुभ रेखाष्टक बल प्राप्त हो जाएगा।
यदि जन्मराशि से शुभ (3, 6, 11) स्थान में शनि का गोचर हो और वृश्चिक राशि में शन्याष्टक की 4 या 4 से अधिक रेखाएं हों, तो सर्वाधिक शुभ फल प्राप्त होगा। इसके विपरीत जितनी कम रेखाएं होंगी उतना ही ज्यादा अशुभ फल प्राप्त होगा।

जन्मराशि से 1, 2, 4, 5, 7, 8, 9, 12वें स्थान में शनि का भ्रमण पीड़ा दायक होता है। जन्मराशि से जब शनि 12, 1, 2 स्थानों में होता है, तब उन राशि के जातकों को शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहता है। गोचर का शनि जन्मराशि से जब चतुर्थ या अष्टम स्थान में रहता है, तब शनि की ढैय्या होती है।
महादेव के शिष्य सूर्यपुत्र ''शनिदेव'' अपनी उच्च राशि तुला में से निकल कर शत्रु राशि वृश्चिक में प्रवेश करेंगे । शनि के राशि परिवर्तन के साथ ही कन्या राशि के जातकों की साढ़े साती पूर्ण होगी एवं तुला राशि के जातकों के लिए साढ़े साती का अंतिम जबकि वृश्चिक राशि के जातकों के लिए दूसरा चरण शुरू होगा। इसके अलावा धनु राशि के जातकों के लिए साढ़े साती का प्रारंभ समय है। सिंह व मेष राशि के जातकों के लिए शनि की छोटी पनौती/ढैय्या (कंटक व् अर्धकंटक शनि) रहेगी।
आम तौर पर शनि को पापी ग्रह कहा जाता है, लेकिन शनि एक न्यायाधीश ग्रह है, जो आपको अपने पुराने कर्मों का फल प्रदान करता है, यदि आप अपने पुण्य किए हैं तो अच्छे फल, यदि आप ने पाप किए हैं तो बुरे परिणाम मिलेंगे।
मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी शनि सूर्य पुत्र हो कर भी सूर्य का प्रबल शत्रु है | उत्तर कालामृत के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह मुख्यतः आयु,  बीमारी,  मृत्यु का कारण, भय,  दुख,  विपत्ति,  दासता,  आलस्य, नौकरी,  मेहनत,  दरिद्रता, दांतों पैरों के रोग,  कृषि साधन,  लौह-उपकरण आदि से संबंध रखता है। कंगनी, कौवों, उड़द, काले तिल, नमक, तथा सभी काली वस्तुओं पर उसका आधिपत्य है। साथ ही गुप्त-विद्या, अध्यात्म और मोक्ष दिलाने वाला ग्रह भी शनि ही है। भारतीय ज्योतिष में शनि ग्रह को नैसर्गिक अशुभ और कष्टकारी माना गया है।
वह वृष, तुला, मकर और कुंभ लग्न में जन्मे जातकों के लिए परम शुभ फलदायक (योग कारक) होता है। शनि एक निष्पक्ष न्यायकर्ता ग्रह है। जो लोग अनाचार और अधार्मिक कार्यों में लिप्त रहते हैं, केवल उन्हीं को शनि प्रताड़ित करता है। मनुष्यों के प्रारब्ध (पिछले जन्मों के कर्मफल) अनुसार ही शनि की जन्म-कुंडली में स्थिति होती है।
वृषभ और तुला लग्न वालों के लिए शनि योगकारक’ (परम शुभ) होता है। मकर और कुंभ लग्न वाले जातकों का लग्नेश होकर हितकारी होता है।
कुंडली में शनि अशुभ, नीच, अथवा अस्त होने पर कष्टकारी होता है। बलवान शनि परम सहायक शुभ फलदायक होता है।
शनि ग्रह का गोचर सबसे धीमा है। अतः उसे शनैः शनैः शनैश्चरायसे संबोधित किया जाता है। उसका एक और नाम मंदःहै। वह एक राशि (30°) का गोचर पूर्ण करने में सर्वाधिक ढाई वर्ष लेता है और मानव जीवन पर दीर्घकालीन प्रभाव डालता है। जब शनि जन्म कालीन चन्द्र से द्वादश, प्रथम तथा द्वितीय भाव भाव में गोचर करता है, इस समय को  साढ़े-साती से संबोधित किया जाता है। यह क्रम हर व्यक्ति के जीवन में 30 वर्ष के अंतराल से आता रहता है।
शनि का चंद्र राशि से चतुर्थ सप्तम  और अष्टम भाव से गोचर ‘‘अशुभ ढैय्याकहलाता है।
शनि का चंद्रमा से तृतीय षष्ट और एकादश भाव से गोचर शुभ फल दायक होता है।
अन्य भावों में शनि का गोचर फल मिश्रित होता है।
2 नवंबर, 2014 को शाम 4 बजकर 8 मिनट पर शनि वृश्चिकराशि मे प्रवेश कर रहे हैं, जहां वह 26 जनवरी, 2017 तक रहेंगे |
इस दौरान 14 मार्च, 2015 से 2 अगस्त, 2015 तक तथा 25 मार्च, 2016 से 13 अगस्त2016 तक 2 बार शनि वक्री होंगे तथा 31 अक्तूबर, 2014 से 6 दिसंबर, 2014 तक, 12 नवंबर, 2015 से 17 दिसंबर, 2015 तक तथा 22 नवंबर, 2016 से 28 दिसंबर, 2016 तक 3 बार शनि इसी वृश्चिक राशि मे अस्त भी होंगे |
जन्मकुंडली में शनि की अशुभ स्थिति होने पर उसकी दशा-भुक्ति, ढैय्या और साढ़ेसाती के समय जातक को सांसारिक दृष्टि से कई प्रकार के कष्टों-असफलता, दुख, धन तथा मानहानि, शारीरिक व्याधि, चिंता, परिवार के महत्वपूर्ण व्यक्ति का निधन आदि का सामना करना पड़ सकता है। जब किसी परिवार के कई सदस्यों की एक साथ शनि दशा, ढैय्या या साढ़ेसाती चलती है तब उस समय वह परिवार अधिक विपत्तियां झेलता है। शुभ ग्रहों की दशा-भुक्ति होने तथा बृहस्पति का शुभ गोचर होने पर समय कम कष्टकारी होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार शनि देवाधिदेव महादेव के परम शिष्य हैं। उनकी धर्म अनुरक्ति और निष्पक्षता से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें मनुष्यों के शुभ-अशुभ कर्मफल प्रदान करने का अधिकार दिया था। साथ ही शिवजी ने शनि को सावधान किया था कि जो भी प्राणी उनकी (शिवजी की) शरण में आयेगा उस व्यक्ति को शनि और प्रताड़ित नहीं करेगा। अतः सुबह नहाकर शिवलिंग का जलाभिषेक -जल, गंगाजल, काले तिल के कुछ दाने व तिल के तेल की कुछ बूंद मिलाकर करना चाहिए। वहीं बैठकर ऊँ नमः शिवायऊँ शं शनैश्चराय नमःकी एक-एक माला जप शनि प्रदत्त कष्टों को कम करता है।
एक अन्य कथा अनुसार हनुमान जी से हारने के बाद शनि ने अपना दिन (शनिवार) भी उनकी पूजा के लिए अर्पित कर दिया था, और हनुमान जी के भक्तों को कष्ट न देने का वचन भी दिया था। अतः शनि-प्रदत्त कष्टों से निवारण के लिए हनुमानजी की पूजा आराधना का शास्त्रोक्त विधान है। शनि उपासनाके लिए पद्मपुराणमें वर्णित राजा दशरथ द्वारा की गई स्तुति (दशरथ स्तोत्र) का प्रातः काल पाठ करना उत्तम फलदायक माना गया है। स्तोत्र के अंत में की गई प्रार्थना इस प्रकार है:-
ज्ञानचक्षर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरसि तत्क्षणात।।
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्या धरोनगाः।
त्वयां विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः।।
प्रसादं कुरू में देव वरार्हो ज्हमुपागतः। (34, 34-35)
अर्थात् हे ज्ञान नेत्र ! आपको नमस्कार है। कश्यपनन्दन सूर्य के पुत्र! आपको नमस्कार है। आप संतुष्ट होने पर राज्य देते हैं और रूष्ट होने पर तत्क्षण हर लेते हैं। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग, ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं। हे देव ! मुझ पर प्रसन्न होईये। मैं वर पाने के लिए आपकी शरण में आया हूं।’’
शनि पीड़ा होने पर निम्न किसी भी मंत्र का 23 हजार संख्या का जप अनुष्ठान किसी शनिवार और विशेषकर शनि अमावस्याको शनि की प्रतिमा का तेलाभिषेक करने के बाद सुबह से रुद्राक्ष की माला पर करना चाहिए। उसके बाद काले तिल से दशांश हवन व आरती के बाद उरद की दल को बड़े का प्रसाद बांटना चाहिए।
1. ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
2. ऊँ शं शनैश्चराय नमः
ध्यान रहे कि शनि एक निर्णायक ग्रह है। अतः शनि-प्रदत्त् कष्टों को सहनशील ही बनाया जा सकता है, पूर्णतया मिटाया नहीं जा सकता। शनि पीड़ित व्यक्ति को शनि उपासना के साथ ही धर्मानुकूल आचरण भी करना चाहिए। मांस-मदिरा का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए तभी शनि साधना फलीभूत होगी। जिनका शनि शुभ है, एवं शनि दशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती, ढैय्या, आदि नहीं चल रही है, उन्हें भी सुनहरे भविष्य हेतु शनि उपासना तथा मंत्र जप अवश्य करते रहना चाहिए। शनि आराधना मनुष्यों के लिए परम कल्याणकारी है। इससे जीवन में सात्विकता आती है, और मानव जीवन के लक्ष्य का ज्ञान देकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है।
नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजं।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम् नमामि शनैश्चरम्।।

ऊँ शं शनैश्चराय नमः।

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