1

भाई दूज - भाई बहन के पावन प्रेम का अदभुत प्रतीक

भाई दूज या यम द्वितीया दिवाली के दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व भाई बहन के अदभुत स्नेह का प्रतीक है | यह  पांच दिवसीय दीपोत्सव का समापन दिवस भी है  दीपावली महापर्व के अंतिम दिन का पर्व है भाईदूज’दीवाली का त्योहार भाईदूज के बिना अधूरा है।   
इस दिन प्रातःकाल चंद्र-दर्शन की परंपरा है और जिसके लिए भी संभव होता है वो यमुना नदी के जल में स्नान करते हैं।
स्नानादि से निवृत्त होकर दोपहर में बहन के घर जाकर वस्त्र और द्रव्य आदि द्वारा बहन का सम्मान किया जाता है और वहीं भोजन किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से कल्याण या समृद्धि प्राप्त होती है। बदलते हुए समय को देखें तो यह व्यस्त जीवन में दो परिवारों को मिलने और साथ समय बिताने का सर्वोत्तम उपाय है। ऐसा कहा गया है कि यदि अपनी सगी बहन न हो तो पिता के भाई की कन्या, मामा की पुत्री, मौसी अथवा बुआ की बेटी ये भी बहन के समान हैं, इनके हाथ का बना भोजन करें। जो पुरुष यम द्वितीया को बहन के हाथ का भोजन करता है, उसे धन, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है। यम द्वितीय के दिन सायंकाल घर में बत्ती जलाने से पूर्व, घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान करने का नियम भी है। परंपरा के अनुसार इसी दिन शीतकाल के लिए यमुनोत्री धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। यह ऐसा दिन है जब यमुना स्नान करने से शनि दोष और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। 

भाईदूज में हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं और अपने भाई के कल्याण व दीर्घायु, यशस्वी और सर्वगुण संपन्न होने की प्रार्थना करती हैं। भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देता है |

सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे।

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर माँगने को कहा।

तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए।

ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता। जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज पर अवश्य जाते हैं और उनसे टीका कराकर उपहार आदि देते हैं।

बहनें पीढियों पर चावल के घोल से चौक बनाती हैं। इस चौक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं। इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं जैसे
 "गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को,
गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े"
बहनों को इस दिन नित्य कृत्य से निवृत्त हो अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष हेतु तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए अक्षत (चावल) कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात यमभगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए। तदंतर भाई के तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिए। इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिए।
इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा। यमराज इस दिन वह यमलोक छोड़कर बहन यमुना से मिलने यमनोत्री पहुंचते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस पावन मौके पर यमलोक के द्वार बंद रहते हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन चित्रगुप्त की पूजा से पितृ दोष, केतु ग्रह दोष की बाधा दूर होती है। ज्योतिष की दृष्टि से केतु के प्रसन्न होने से राहु स्वत: ठीक हो जाते हैं इस कारण चित्रगुप्त को प्रधान देवता मानते हुए पूजा करने से दैहिक भौतिक तापों से भी मुक्ति मिलती है।
भाईदूज की एक पौराणिक कथा यह भी है कि इस दिन भगवान कृष्ण नरकासुर को मारने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे। तब सुभद्रा ने अपने भाई कृष्ण का पारंपरिक रूप से स्वागत किया और उनकी पूजा आरती की।

भाई दूज के लिए ऎसा भी प्रचलित है कि महावीर भगवान ने इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया था जिससे उनके भाई राजा नंदीवर्घन महावीर को खोने से बहुत व्यथित हुए। तब उस दिन उनकी बहन सुदर्शना ने अपने भाई को काफी दिलासा दी और फिर उनकी सुख शांति के लिए हमेशा उनका साथ निभाया और उनकी रक्षा के लिए पूजा अर्चना की। तभी से सभी महिलाएं भइया दूज मनाकर भाई बहन के प्रेम का सम्मान करते आए हैं।

पूजा विधान इस दिन बहने अपने भाई की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती हैं। सुबह सुबह स्त्रानध्यान करने के बाद पूजा की थाली सजाकर भाई का तिलक करती हैं और उन्हें बुरी नजरों से बचाने के लिए उनकी आरती उतारती हैं। बदले में भाई भी बहनों के इस अटूट प्यार को देखकर उन्हें उपहार देते हैं। 
वस्तुतः इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन के मध्य सौमनस्य और सद्भावना का पावन प्रवाह अनवरत प्रवाहित रखना तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। इस प्रकार 'दीपोत्सव-पर्व' का धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय महत्व अनुपम है।

No comments:

Post a Comment

We appreciate your comments.

Lunar Eclipse 2017