कहा जाता है कि इसकी जड़ें पाताल लोक तक
जाती हैं और अमृत खींचती हैं। जिस प्रकार यह स्वयं बढ़ती है उसी प्रकार
यह वंश वृद्धि की भी संकेतक है।
गणपति
अथर्वशीर्ष के अनुसार
यो दूर्वांकरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
अर्थात- जो
दुर्वा की कोपलों से (गणपति की)
उपासना करते
हैं उन्हें
कुबेर के समान धन की प्राप्ति
होती है।
गौरी पूजन, गणेश पूजन में दुर्वा दल से आचमन अत्यंत शुभ माना गया है। बलवर्धक दुर्वा कालनेमि राक्षस का प्राकृतिक भोजन
थी। इसके सेवन से वह अति बलशाली हो गया था।
तुलसीदास ने इसे अन्य मांगलिक पदार्थों के समकक्ष माना।
दधि दुर्वा रोचन फल-फूला, नव तुलसीदल मंगल मूला
वाल्मीकि ऋषि ने भी भगवान राम के वर्ण की तुलना दुर्वा से कर इसको कितना सम्मान दिया है-
रामदुर्वा दल श्यामे, पद्याक्षं पीतवाससा।
महर्षि दुर्वासा को भी दुर्वा रस अत्यंत प्रिय था।
पौराणिक संदर्भों से ज्ञान होता है कि
क्षीर सागर से उत्पन्न होने के कारण भगवान विष्णु को यह अत्यंत प्रिय रही और क्षीर
सागर से जन्म लेने के कारण लक्ष्मी की छोटी बहन कहलाई।विष्च्यवादि सर्व देवानां, दुर्वे त्वं प्रीतिदायदा। क्षीरसागर सम्भूते, वंशवृद्धिकारी भव।।
पुराणों
में कथा है कि पृथ्वी पर अनलासुर राक्षस
के उत्पात
से त्रस्त
ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र भी उसे परास्त
न कर सके। तब
सभी देवतागण एकत्रित होकर भगवान शिव के पास गए तथा अनलासुर का वध करने का अनुरोध
किया। तब शिव ने कहा इसका नाश सिर्फ श्रीगणेश ही कर सकते हैं। सभी देवताओं ने
भगवान गणेश की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया।
अनलासुर
को निगलने
के कारण
गणेशजी के पेट में जलन होने
लगी तब ऋषि कश्यप
ने 21 दुर्वा की गांठ उन्हें खिलाई और इससे उनकी पेट की
ज्वाला शांत हुई। इसी मान्यता के चलते श्रीगणेश को दुर्वा अर्पित की जाती है। इनके
अनेक प्रयोग में उनको प्रिय दूर्वा के चढ़ाने की पूजा शीघ्र फलदायी और सरलतम है।
विनायक
को 21 दूर्वा
चढ़ाते वक्त
नीचे लिखे
10 मंत्रों को बोलें यानी
हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाएं और आखिरी बची
दूर्वा चढ़ाते वक्त सभी मंत्र बोलें। ये मंत्र हैं -
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ विघ्ननाशनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ कुमारगुरवे नमः
मंत्रों
के साथ पूजा के बाद 21 मोदक
का भोग लगाएं। अंत में श्री गणेश आरती कर क्षमा प्रार्थना करें।
कार्य में विघ्न बाधाओं से रक्षा की कामना करें।
गणेश
कृपा हेतु
गुड़ में दूर्वा लगाकर
नंदी (सांड) को खिलाने से रुका हुआ धन प्राप्त होता है।
दूर्वा के गणेश बनाकर दूर्वा से पूजा करना महान पुण्यप्रद माना जाता है।
श्री गणेश की प्रसन्नता के लिए गणेश को दूर्वा, मोदक, गुड़ फल,
मावा-मिष्ठान आदि अर्पण करें।
ऐसा करने
से भगवान
गणेश सभी मनोकामनाएं
पूरी करते हैं।
कुंवारी कन्या या अविवाहित युवक अपने विवाह की कामना से गणेश को मालपुए
अर्पण करते हैं तो उनका शीघ्र विवाह होता है।
गणेश चतुर्थी को कार्य सिद्धि हेतु ब्राह्मण पूजा करके गुड़-लवण-घी आदि दान करने से धन प्राप्ति होती है।
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