अमा
का अर्थ
है एकत्र
करना और
वस्या
वास को कहा गया है यानि
जिसमें सब एक साथ वास करते
हों। --- ( शिव महापुराण
में इस संधि विच्छेद
को भगवान
शिव ने माता पार्वती
को समझाया
था।)
इसलिए
सोमवती अमावस्या
और भी सार्थक हो जाती है क्योंकि सोम को अमृत
भी कहा जाता है इसलिए इस अमावस्या में अमृत की प्राप्ति होती
है| सोमवार के दिन पर भगवान शिव और
चंद्रमा का अधिपत्य माना जाता है इसलिए सोमवार को आने वाली अमावस्या पूर्ण रूप से
भगवान शिव जी को समर्पित होती है। चंद्रमा मनुष्य के मन और जल का कारक होने के
कारण
अमावस्या पर स्नान, ध्यान
को पुण्य कारक माना गया है।अमावस्या में चन्द्रमा सूरज के सामने निस्तेज हो जाता है अर्थात चंन्द्र की किरणें नष्ट प्राय हो जाती हैं। अन्धकार छा जाता है। तंत्र शास्त्र के मतानुसार अमावस्या के दिन किए गए उपाय, जाप, दान और पूजा अर्चना अत्यन्त प्रभावशाली होती है और इसका फल भी शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है।
वेदों के मतानुसार,
दर्षपौर्णमास्यायां यजेत्
अर्थात अमावस्या और पूर्णमासी को निश्चित ही यज्ञ करें।
धर्मग्रंथों में चन्द्रमा की 16वीं कला को 'अमा' कहा गया है। चन्द्रमंडल की 'अमा' नाम की महाकला है जिसमें चन्द्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चन्द्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी। अमावस्या के दिन चन्द्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, तब इसे 'कुहू अमावस्या' भी कहा जाता है।
अमावस्या सूर्य और चन्द्र के मिलन का काल है। और माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है।
अमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राषि में रहे, तब तब कोई भी
सांसरिक कार्य जैसे-हल चलाना, कसी चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करने चाहिए।
चन्द्रमा का वास अमावास्या के दिन औषधियों में रहता है, अतः जल और औषधियों में प्रविष्ट उस अमृत का ग्रहण गाय, बैल, भैंस आदि पशु चारे एवं पानी के द्वारा करते हैं, जिससे वहीं अमृत हमें दूध, घी आदि के रूप में प्राप्त होता है और उसी घृत की आहुति ऋषिगण यज्ञ के माध्यम से पुनः चन्द्रादि देवताओं तक पहुँचाते हैं। वही अमृत फिर बढ़कर पूर्णिमा को चरम सीमा पर पहुँचता है;
जैसा कि कथन है-
चन्द्रमा का वास अमावास्या के दिन औषधियों में रहता है, अतः जल और औषधियों में प्रविष्ट उस अमृत का ग्रहण गाय, बैल, भैंस आदि पशु चारे एवं पानी के द्वारा करते हैं, जिससे वहीं अमृत हमें दूध, घी आदि के रूप में प्राप्त होता है और उसी घृत की आहुति ऋषिगण यज्ञ के माध्यम से पुनः चन्द्रादि देवताओं तक पहुँचाते हैं। वही अमृत फिर बढ़कर पूर्णिमा को चरम सीमा पर पहुँचता है;
जैसा कि कथन है-
कला षोडशिका या तु अपः प्रविशते सदा।
अमायां तु सदा सोमः औषधिः प्रतिपद्यते।।
तमोषधिगतं गावः पिबन्त्यम्बुगतं च यत्।
तत्क्षीरममृतं भुत्वा मन्त्रपूतं द्विजातिभिः।
हुतमग्निषु यज्ञेशु पुनराप्यायते शशी।।
दिने दिने कला वृद्धिः पौर्णमास्यां तु पूर्यते
अमावस्या
के दिन मौन का भी बहुत
बड़ा महत्व
माना गया है कहते
हैं कि इस दिन मौन धारण
करने से सहस्त्र गौओं
के दान के बराबर
पुण्य मिलता
है।
इस
दिन मौन रह कर अपने इष्ट
देव के मंत्रों का जाप करने
और नदी या नदियों
के संगम
पर स्नान
करने से पुण्य मिलता
है और जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान होता
है। महाभारत
में भी भीष्म पितामह
युधिष्ठिर को इस दिन के महत्व
के बारे
में बताते
हुए कहते
हैं कि इस दिन जो मनुष्य
किसी नदी में स्नान
करेगा, उसे समस्त
कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
शास्त्रों
में वर्णित
है कि नदी, सरोवर के जल में स्नान कर सूर्य को गायत्री मंत्र
उच्चारण करते
हुए अर्घ्य
देना चाहिए।
लेकिन
जो लोग घर पर स्नान करके
अनुष्ठान करना
चाहते हैं,
उन्हें पानी
में थोड़ा-सा गंगाजल
मिलाकर नीचे
लिखे मंत्र
से तीर्थों
का आह्वान
करते हुए स्नान करना
चाहिए।
निर्णय सिन्धु के अनुसार ‘अश्वत्थ’ अर्थात पीपल के पेड़ की पूजा करने से पति के स्वास्थ्य में सुधार, न्यायिक समस्याओं से मुक्ति, आर्थिक परेशानियों और अन्य कई समस्याओं का समाधान होता है।
पीपल
की प्रदक्षिणा से पूर्व प्रार्थना
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।
अग्रतः शिवरूपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।
यं दृष्ट्वा मुच्यते रोगैः स्पृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते।
यदाश्रयाच्चिरंजीवी तमश्वत्थं नमाम्यहम् ।।
अर्थात हे वृक्षराज! आप जड से ब्रह्मास्वरूप, मध्य से विष्णुस्वरूप और मस्तक से शिवस्वरूप
हो। आपको मेरा नमस्कार है । (आप मेरे द्वारा की हुई पूजा को स्वीकार करें और मेरे
पापों का हरण करें ।)
जिन्हें
देखने से रोग नष्ट होते हैं व स्पर्शमात्र से पाप तथा जिनके आश्रय में आ जाने
मात्र से व्यक्ति चिरंजीवी हो जाता है, ऐसे पीपल को मेरा नमस्कार है ।
इसीलिए
विवाहित स्त्रियाँ
इस दिन अपने पतियों
के दीर्घायु
कामना के लिए व्रत
करती हैं इसे अश्वत्थ
प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा
दी गयी है।
पीपल
के वृक्ष
की दूध,
जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि
से पूजा
और वृक्ष
के चारों
ओर १०८ बार धागा
लपेट कर परिक्रमा की जाती है और कुछ अन्य परम्पराओं
में भँवरी
देने का भी विधान
होता है। धान, पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ को चढाया जाता
है।
तुलसी नामाष्टक
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी ।
तुलसी नामाष्टक
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी ।
पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी ।।
एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् ।
यः पठेत् तां च सम्पूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ।।
भगवान नारायण देवर्षि नारद से कहते हैं : ‘वृंदा, वृंदावनी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी - ये देवी तुलसी के आठ नाम हैं।
यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है। जो
पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त हो
जाता है| (ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड : २२.३३-३४)
अभी
शनिदेव अपनी
उच्च राशि
में विराजमान
हैं इसलिए
शनिदेव को प्रसन्न करने
कि लिए यह महत्वपूर्ण
समय है,
जिन जातकों
की कुंडली
में शनि नीच राशि
में है और जीवन
में व्यावसायिक
परेशानियों से जूझ रहे हैं, वह आज के दिन पीपल के पेड़ पर तिल के तेल का दीपक जला कर रखें
और पेड़ के नीचे ही बैठ कर ‘ ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ’ मंत्र
का 108 बार
जाप करें
तो लाभ होगा।
यदि
पति का स्वास्थ्य ठीक नहीं है व घर में मांगलिक
कार्य भी नहीं हो रहे हों तो पीपल
के पेड़
की 108 परिक्रमा
या शारीरिक
योग्यता के अनुसार परिक्रमा
करते हुए सूत का धागा लपेटें
और ‘ नारायणाय नम: ’ मंत्र
का जाप करें।
असाध्य बीमारी, पारिवारिक
विवाद एवं पितृ
दोष की शांत हेतु
से
पीपल के पेड़ की 108 प्रदक्षिणा लगाये और प्रत्येक प्रदक्षिणा के पश्चात कोई भी एक मिठाई
या मेवा रखे। केवल एक सोमवती अमावस्या को ही इस प्रक्रिया को करने से लाभ होता है।
शास्त्रों में अमवस्या तिथि का स्वामी पितृदेव लो माना जाता है । इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण दान पुण्य का महत्व है | पितृ दोष का भी समाधान के लिए अमावस्या
के दिन अपने पितरों
का ध्यान
करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी,
थोड़ा गंगाजल, काले
तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित
करें और “ऊँ पितृभ्य: नम:”
मंत्र का जाप करें.
उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना
शुभ फल प्रदान करता
है।
सोमवती अमावस्या
को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने
से भी इस दोष में कमी होती है |
सोमवती अमावस्या के सम्बन्ध में
शास्त्रों में एक कथा भी मिलती है, जिसके अनुसार एक कन्या
की कुंडली मे विवाह योग नहीं होता। एक संत उसे धोबी के घर में जाकर सेवा करने से
विवाह हो जाने की बात कहते हैं। वह कन्या ऐसा ही करती है और उसका विवाह हो जाता
है। इस कथा के कारण ही यहां विधान भी है कि सोमवती अमावस्या के दिन अपने मनोरथों
की पूर्ति के लिये लोग धोबी परिवार को भेंट इत्यादि देते हैं।
चूंकि सोमवार, शिव जी को समर्पित दिन है अत: सोमवती अमावस्या को रुद्राभिषेक करने से पारिवारिक शांति मिलती है।
#सोमवती_अमावस्या, #मौनी_अमावस्या
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