हिन्दू धर्म में मुख्यतः छह
संप्रदाय माने गए हैं : -
1.
शैव
2.
वैष्णव
3.
शाक्त
4.
नाथ
5.
वैदिक और
6.
चर्वाक
इसमें
से चर्वाक संप्रदाय तो लुप्त हो गया लेकिन बाकी सभी संप्रदाय प्रचलन में हैं। सबसे
प्राचीन संप्रदाय शैव संप्रदाय को ही माना जाता है। शैव मत
का मूल रूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में है। रुद्र के भयंकर रूप की अभिव्यक्ति
वर्षा के पूर्व झंझावात के रूप में होती थी। रुद्र के उपासकों ने अनुभव किया कि झंझावात के पश्चात जगत को जीवन प्रदान करने वाला शीतल जल बरसता है और उसके पश्चात एक गम्भीर शान्ति और आनन्द का वातावरण निर्मित हो जाता है। अतः रुद्र का ही दूसरा सौम्य रूप शिव जनमानस में स्थिर हो गया।
वर्षा के पूर्व झंझावात के रूप में होती थी। रुद्र के उपासकों ने अनुभव किया कि झंझावात के पश्चात जगत को जीवन प्रदान करने वाला शीतल जल बरसता है और उसके पश्चात एक गम्भीर शान्ति और आनन्द का वातावरण निर्मित हो जाता है। अतः रुद्र का ही दूसरा सौम्य रूप शिव जनमानस में स्थिर हो गया।
बारह
रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ
और महादेव कहलाए।
हिंदुओं के देवताओं की त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु
और महेश में शिव विद्यमान हैं और उन्हें विनाश का देवता भी माना जाता है।
शिव के तीन नाम शम्भु,
शंकर और शिव प्रसिद्ध हुए। इन्हीं नामों से उनकी प्रार्थना
होने लगी। इनकी पत्नी का नाम है पार्वती जिन्हें दुर्गा भी कहा जाता है। शिव का
निवास कैलाश पर्वत पर माना गया है। इनके पुत्रों का नाम है कार्तिकेय और गणेश और
पुत्री का नाम है वनमाला जिन्हें ओखा भी कहा जाता था। शिव त्रिमूर्ति में से तीसरे
हैं जिनका विशिष्ट कार्य संहार करना है
शैव वह धार्मिक सम्प्रदाय
हैं जो शिव को ही ईश्वर मानकर आराधना करता है। शिव का शाब्दिक अर्थ है 'शुभ', 'कल्याण', 'मंगल',
श्रेयस्कर' आदि, यद्यपि
शिव का कार्य संहार करना है।
शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों
के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित हैं-
1. महाकाल
2. तारा
3. भुवनेश
4. षोडश
5. भैरव
6. छिन्नमस्तक गिरिजा
7. धूम्रवान
8. बगलामुखी
9. मातंग और
10. कमल
नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार
तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।
शिव के अन्य 11 अवतार :
1. कपाली
2. पिंगल
3. भीम
4. विरुपाक्ष
4. विलोहित
6. शास्ता
7. अजपाद
8. आपिर्बुध्य
9. शम्भू
10.चण्ड तथा
11. भव का उल्लेख मिलता
है।
इन अवतारों के अलावा शिव के अंशावतार
दुर्वासा
महेश
वृषभ
पिप्पलाद
वैश्यानाथ
द्विजेश्वर
हंसरूप
अवधूतेश्वर
भिक्षुवर्य
सुरेश्वर
ब्रह्मचारी
सुनटनतर्क
द्विज
अश्वत्थामा
किरात और
नतेश्वर
आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।
लेकिन सबसे चर्चित और खास तो
हनुमान और भैरव को ही शिव का खास अवतार माना गया है।
शैव ग्रंथ :
वेद का श्वेताश्वतरा उपनिषद
शिव पुराण और
तिरुमुराई
शैव तीर्थ :
बारह ज्योतिर्लिंगों में खास
काशी
बनारस
केदारनाथ
सोमनाथ
रामेश्वरम
चिदम्बरम
अमरनाथ और
कैलाश मानसरोवर
शैव संस्कार :
1. शैव संप्रदाय के लोग
एकेश्वरवादी होते हैं। वे शिवलिंग की पूजा ही करते हैं।
2. इसके संन्यासी जटा
रखते हैं।
3. इसमें सिर तो मुंडाते
हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते।
4. इनके अनुष्ठान रात्रि
में होते हैं।
5. इनके अपने तांत्रिक
मंत्र होते हैं।
6. ये निर्वस्त्र भी रहते
हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं।
7. शैव चंद्र पर आधारित
व्रत उपवास करते हैं।
8. शैव संप्रदाय में समाधि
देने की परंपरा है।
9. शैव मंदिर को शिवालय
कहते हैं, जहां सिर्फ शिवलिंग होता है।
10. ये भभूति तिलक आड़ा
लगाते हैं।
शैव साधु-संत :
शैव साधुओं को नाथ, नागा,
अघोरी, अवधूत, बाबा,
ओघड़, योगी, सिद्ध आदि कहा
जाता है। शैव संतों में नागा साधु और दसनामी संप्रदाय के साधुओं की ही प्रभुता है।
संन्यासी संप्रदाय से जुड़े साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन
नागाओं का जीवन है।
शैव संतों में गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ,
सांईंनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज,
चौरंगीनाथ, गोगादेव, शंकराचार्य,
गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि,
जालन्ध्रीपाव आदि हजारों संत हैं, जो जगप्रसिद्ध
हैं।
शैव संप्रदाय के उप संप्रदाय : शैव में शाक्त,
नाथ, दसनामी, नाग आदि उप
संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के 4 संप्रदाय बतलाए गए हैं- शैव,
पाशुपत, कालदमन और कापालिक।
कश्मीरी शैव संप्रदाय : कश्मीर को
शैव संप्रदाय का गढ़ माना गया है। वसुगुप्त ने 9वीं शताब्दी के
उतरार्ध में कश्मीरी शैव संप्रदाय का गठन किया। इससे पूर्व यहां बौद्ध और नाथ संप्रदाय
के कई मठ थे।
वसुगुप्त के दो शिष्य थे कल्लट और सोमानंद। इन
दोनों ने ही शैव दर्शन की नई नींव रखी। लेकिन अब इस संप्रदाय को मानने वाले कम ही मिलेंगे।
वीरशैव संप्रदाय : वीरशैव एक
ऐसी परंपरा है जिसमें भक्त शिव परंपरा से बंधा हो। यह दक्षिण भारत में बहुत लोकप्रिय
हुई है। यह वेदों पर आधारित धर्म है। यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा शैव मत है,
पर इसके ज्यादादातर उपासक कर्नाटक में हैं।
भारत के दक्षिण राज्यों महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश,
केरल और तमिलनाडु के अलावा यह संप्रदाय अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर, पंजाब,
हरियाणा में बहुत ही फला और फैला। इस संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते
हैं।
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