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द्वितीय नवरात्र – मां ब्रह्मचारिणी


 मार्कंडेय पुराण के अनुसार आदिशक्ति मां दुर्गा के द्वितीय रूप का नाम है ब्रह्मचारिणी
ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या चारिणी यानी आचरण करने वाली
" वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म वेद, तत्व और तप तथा ब्रह्म, तप का आचरण करने वाली भगवती  जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया | इन्द्रिय संयम बढ़ाती हैं ब्रह्मचारिणी

 साधक एवं योगी इस दिन अपने मन को भगवती के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं| कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं।

पौराणिक कथानुसार भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए देवी ने घोर तपस्या की थी। देव ऋषि नारद ने पर्वतराज हिमालय की प्रार्थना पर उनकी पुत्री बालिका पार्वती की जन्म पत्रिका शोधी और उनका भाग्य बताते हुये कहा कि इस कन्या का विवाह तो त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से होगा, ये सुन कर देवी पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने कि इच्छा से कठोर तप करना शुरू कर दियाइस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
 इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।  माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।  देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है।
महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती के तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है |
देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें |
वस्तुतः माँ के इस ब्रह्मचारिणी रूप को समस्त विद्याओं की जननी माना गया है। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। सच्चिदानंदमय ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति कराना आदि विद्याओं की ज्ञाता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता है। अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्न विद्या देकर विजयी बनाती है।
अत: जो भी विद्यार्थी चाहते है कि उनकी बुद्धि का विकास हो और पढाई में सफ़लता मिले उन्हे देवी के इस रुप की आराधना पूर्ण श्रद्धा के साथ अवश्य करनी चाहिए साथ ही उपाय भी करे.

* बुद्धि विकास एवं विद्या प्राप्ति के लिये विशेष उपाय :

- अपने सिर से पैर तक एक धागा नाप कर तोड़ लें, उसमे
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारुपेण संस्तिथा
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम: !! "
पढ़ते हुए 54 गांठे लगाइए, इसे माता को समर्पित कर के नवमी तक रोज़ इस धागे का जप करे | नवमी के दिन धागा जलप्रवाह कर दे |
 औषधि
  इनकी औषधि ब्राह्मी है. इसे मस्तिष्क को उर्वर करने वाली दिव्य औषधि माना गया है | मां ब्रह्मचारिणी की आराधना और ब्राह्मी के सेवन से साधक का मस्तिष्क प्रखर बनता हैब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली, स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है।
ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।

बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए मंत्रः
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति संशय॥

देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिन्यै नम ||

ब्रहाचारिणी’ माँ पार्वती वह स्वरुप है जिसने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा -हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने रहे हैं |
इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
अहं ब्रह्मस्वरूपिणी’- तपस्वियों का तप हूं मैं।
जप में अजपा शक्ति हूं।
यदि मंत्र जाप में निरन्तर असफलता ही हाथ लगती हो।
एकाग्रता की कमी रहती हो।
ब्रह्महत्या जैसे भयंकर पाप-शाप पीछा ही छोड़ते हों।
जन्म पत्री में चाण्डाल योग या कालसर्प, पितृ दोष हो,
तो माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करके सभी दोष दूर हो जाते हैं।
विशेषकर विवाह के बाद पति-पत्नी में रोज क्लेश, अपमान वैचारिक मतभेद हो। परस्पर नफरत घृणा का घर पर प्रभाव हो।
बच्चे माता-पिता का रोज अपमान करते हों, तो इन दुष्प्रभावों को दूर कर प्रेम शांति स्थापित करने के लिये माँ ब्रह्मचारिणी’ की उपासना शीघ्र फल देती है।

 देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एक विशेष फूल) कमल काफी पसंद है उनकी माला पहनायें. प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें और घी कपूर मिलाकर देवी की आरती करें |
अंत में क्षमा प्रार्थना करें
आवाहनं जानामि जानामि वसर्जनं,
पूजां चैव जानामि क्षमस्व परमेश्वरी ||


मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने का मंत्र
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।


अर्थ: हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

आज किये जाने वाले विशेष उपाय

1.        उपवास/व्रत में आज दूध-दही जरूर खाएं
2.        अच्छे की स्वास्थ्य और धन संबंधी कामनाओं की पूर्ति के लिए नवरात्रि के दूसरे दिन कन्याओं को मीठे फलों का दान करें। सांसारिक कामना के लिए लाल अथवा पीला और वैराग्य की प्राप्ति के लिए केला या श्रीफल हो सकता है। इसके बाद कन्याओं का पूजन करें।
3.        नवरात्र के दूसरे दिन विद्यार्थियों को पीले या सफेद वस्त्रं पहनकर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना जरूर करना चाहिए| इसके साथ 8 वर्ष से कम उम्र की कन्यााओं को भोजन जरूर कराए, इससे मां की विशेष कृपा होती है |
4.        इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हे अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं। 
5.        दीर्घायु के लिए पूजन करके भगवती जगदम्बा को चीनी का भोग लगावे और ब्राह्मण को दे दें, ये करने से मनुष्य दीर्घायु होता है|
6.        सुबह  माँ को दो सेब अर्पित करके शाम को प्रसाद के रूप मैं ग्रहण करें बांटें तथा खीर (मखाना) का भोग माँ को अर्पित करें |
7.        द्वितीया को रेशम चोटी अर्पित किया जाता है|
8.        ब्राह्मी बूटी पर या देवी  सर्वभूतेषु विद्यारुपेण संस्तिथा नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:” १०८ बार  पढ़ें और ब्राह्मी बच्चो को खिला दें  दिन लगातार ऐसा करने से बालक मेधावी हो जाता  है |
9.        द्वितीया तिथि के दिन राहू ग्रह की शान्ति पूजा की जाती है. राहू बीज मंत्र - ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं : राहवे नम: |
10.        माता ब्रह्माचारिणी को चमेली ,गुढ़ल का फूल और कमल बेहद प्रिय है. इन फूलों की माला माता को इस दिन पहनाई जाती है.
11.        आज के दिन केशरिया, पीच हल्का पीला रंग रंग का वस्त्र धारण करें |


1 comment:

  1. very good information. thank you for sharing

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Lunar Eclipse 2017