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प्रथम नवरात्र - मां शैलपुत्री




देवीभागवत में 'नवकुमारियों' को 'नवदुर्गा' का साक्षात् प्रतिनिधि बताया गया है। देवी के नौ रूपों में क्रमश: प्रथम शैलपुत्री (देवी पार्वती), दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चतुर्थ कूष्मांडा, पांचवीं स्कंदमाता, छठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी व और नवमी में सिद्धिदात्री का ध्यान करके पूजा अर्चना की जाती है।

नवरात्र का प्रथम दिन माँ दुर्गा का पहला स्वरूप मां शैलपुत्री ,


मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। शैलराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था । पार्वती और हेमवती भी इन्हीं के नाम हैं। उपनिषद की एक कथा के अनुसार माँ शैलपुत्री ने ही हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व भंजन किया था।
भगवती का वाहन वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल, और बायें हाथ में कमल सुशोभित है। वाहन वृषभ होने के कारण यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं।
 मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इनकी साधना और पूजा से साधकों के समस्त दुर्गुणों, अज्ञान और पापों का नाश होता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके।
शैलपुत्री के पूजन करने से 'मूलाधार चक्र' जाग्रत होता है। जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है। इनकी साधना और पूजा से साधकों के समस्त दुर्गुणों, अज्ञान और पापों का नाश होता है।
कथा
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं दिया । सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।
अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'
शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।
सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।
परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि में भस्म कर दिया।  वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं।
पूजन विधि
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।नवरात्र के पहले दिन घटस्थापन यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें। इस कलश को लगातार नौ दिन तक एक ही स्थान पर रखें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
 नवरात्रि के पहले दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है।  स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।
माँ का भोग
इस दिन उपवास करने के बाद माता के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और व्रती निरोगी रहता है. भोग लगाने के बाद घी को ब्रह्मण को दान करें
सुबह माँ के चरणो में अनार अर्पित करें और शाम में प्रसाद (आशीर्वाद) के रूप में स्वीकार करें
माँ को आँवला अर्पित करें
उपासना मंत्र :
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।  --
अर्थात् मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृष पर आरूढ़ होने वाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा जी की मैं वंदना करता हूं. इस प्रकार ध्यान करते हुए शैलपुत्री देवी के मंत्र ऊंऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊं शैलपुत्री देव्यै नम:’ का नित्य एक माला जाप करने से हर प्रकार की शुभता प्राप्त होती है.
माता को चमेली पुष्प अति  प्रिय हैं  इसलिए आज के दिन छोटी कन्याओं को चमेली के फूल के साथ कोई एक श्रृंगार सामग्री भेंट देना शुभ होता है।
मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए श्वेत फूल अर्पित करें।
भौतिक कामनाओं कि पूर्ति के लिए लाल पुष्प देकर इन्हें खुश करें।
आज के दिन सफेद व लाल रंग का प्रयोग व वस्त्र शुभ माने गए हैं।
आज  कुट्टू के  आटे से बनी वस्तु    उपवास/व्रत में जरूर खाएं
आज के दिन किये जाने वाले विशेष उपाय
1.जमीन ज्यादाद संबधी वाधाओं को दूर करने के लिए लौंग और कपूर में गुड और खीर मिलाकर मां दुर्गा को आहुति दें |
2. जमीन ज्यादाद और वाहन का सुख पाने के किए नौ दिन हर रोज किसी गरीब बूढी महिला या नेत्रहीन को भोजन करायें, और वस्त्र इत्यादि दान में दें | 
3. अगर आप मकान बनाना चाहते हैं तो एक लाल कपड़े में छ: चुटकी कुमकुम, : लौंग, नौ बिंदिया, नौ मुट्ठी साफ़ मिट्टी और छ: कौड़ियाँ लपेट कर नदी में आज ही विसर्जित कर दें | भगवती की कृपा से आपको जल्द ही अपना मकान मिलेगा |
4. मकान पाने के लिए कन्याओं को दूध, केसर और सुंगध से बनी चीज खिलाएं |
5. सूर्य आपकी जन्मकुंडली में प्रतिकूल फल प्रदान कर रहे हैं उसके निवारण के लिए नौ दिन हर रोज सुबह-शाम मां शैलपुत्री के मंत्र का ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम: जाप करना कल्याणकारी रहेगा।
 उपासना-मंत्र
वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्। 
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।। 


ध्यान
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

स्तोत्र
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम॥

कवच
ओमकार में शिरपातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकाररूपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकाररूपातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्काररूपातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।


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