नवरात्र के नौ दिन ब्रह्माण्ड
की आदि – त्रिगुणात्मकता के उत्सव का अवसर
है। हमारा जीवन तीन गुणों से संचालित होता
है, नवरात्र
के पहले तीन दिन तमो गुण के हैं, अगले
तीन दिन रजो गुण के हैं तथा अंतिम तीन दिन सतोगुण के हैं। हमारी चेतना तमो गुण और
रजो गुण से पार आकर अंतिम तीन दिनों में सतोगुण मे पुष्पित होती है। जब भी सतोगुण जीवन
को शासित
करता है, विजय अनुगमन करती है।
नवरात्र
शब्द में संख्या और काल का भी अद्भुत सम्मिश्रण है।
श्री
मार्कंडेय पुराण के अनुसार मां दुर्गा के नौ ((नव))
स्वरुप हैं। जिनमें प्रथम शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तृतीय चंद्रघंटा, चतुर्थ कूष्मांडा, पंचम सकंदमाता, छठा कात्यायनी,
सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी, नौंवा सिद्धिदात्री है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्म्रणव महात्मना।।
सृष्टि
की संचालिका
कही जाने
वाली आदिशक्ति
की नौ कलाएं (विभूतियां) 'नवदुर्गा' कहलाती
हैं। और नवरात्र को आद्याशक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ पर्वकाल
माना गया है।
देवीभागवत
में 'नवकुमारियों' को
'नवदुर्गा' का साक्षात्
प्रतिनिधि बताया
गया है। उसके अनुसार, नवदुर्गा-स्वरूपा
नवकुमारियां भगवती
के नवरूपों
की प्रत्यक्ष
जीवंत मूर्तियां
हैं।
भगवान
शंकर माता
पार्वती के पूछने पर कहते हैं
'नवशक्तिभि: संयुक्तम् नवरात्रं तदुच्यते।
एकैव देव-देवेशि नवधा परितिष्ठता॥' ( शक्तिसंगम )
अर्थात
नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है।
स्त्री
हो या पुरुष, सबको
नवरात्र करना चाहिये । यदि कारणवश स्वयं न कर सकें तो प्रतिनिधि ( पति – पत्नी, ज्येष्ठ पुत्र,
सहोदर या ब्राह्मण ) द्वारा
करायें । कन्या-पूजा के बिना भगवती
महाशक्ति कभी प्रसन्न नहीं
होती इसीलिए
भक्त प्राय:
नवरात्र के नौ दिन तक कन्याओं
का पूजन
करते हैं,
जो नित्य
कन्या-पूजन नहीं
कर पाते,
वे अष्टमी
अथवा नवमी
में कुमारिका
(कंजक )-पूजन
करते हैं।
चैत्र
में आने वाले नवरात्र
में अपने
कुल देवी-देवताओं की पूजा का विशेष प्रावधान
माना गया है। वैसे
दोनों ही नवरात्र मनाए
जाते हैं।
फिर भी इस नवरात्र
को कुल देवी-देवताओं के पूजन की दृष्टि से विशेष मानते
हैं।
चैत्र के नवरात्र में शक्ति की उपासना तो प्रसिद्ध ही हैं, साथ
ही शक्तिधर की उपासना भी की जाती है । उदाहरणार्थ एक ओर देवीभागवत कालिकापुराण, मार्कण्डेयपुराण, नवार्णमन्त्न के पुरश्चरण और दुर्गापाठकी शतसहस्त्रायुतचण्डी आदि होते
हैं तो दूसरी ओर श्रीमद्भागवत, अध्यात्मरामायण, वाल्मीकीय रामायण, तुलसीकृत रामायण, राममन्त्न – पुरश्चरण एक – तीन – पाँच
– सात दिनकी
या नवाह्लिक
अखण्ड रामनामधव्नि आदि किये जाते हैं । यही कारण है कि ये ’ देवी – नवरात्र
’ और ’ राम
– नवरात्र ’ नामोंसे
प्रसिद्ध हैं ।
नवदुर्गा-स्वरूपा
नवकुमारियां भगवती
के नवरूपों
की प्रत्यक्ष
जीवंत मूर्तियां
हैं।
मंत्रमहोदधि के 18वें तरंग में वर्णन है कि पूजन
के लिए दो से दस वर्ष
की अवस्था
वाली कन्याओं
का चयन करना चाहिए | इस ग्रंथ में कहा गया है कि एक वर्ष की कन्या की पूजा से प्रसन्नता नहीं
होगी। इसी प्रकार ग्यारह वर्ष से ऊपर वाली कन्याओं के लिए भी पूजा ग्रहण वर्जित
कहा गया है। शास्त्र कहते हैं कि जो कन्याओं की पूजा करता है, उसी के परिवार में देवी-देवता प्रसन्न होकर संतान के रूप में जन्म लेते
हैं।
·
दो वर्ष की कन्या 'कुमारिका' कही
जाती है,
जिसके पूजन
से धन-आयु-बल की वृद्धि होती
है।
·
तीन वर्ष की कन्या 'त्रिमूर्ति' की
पूजा से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता
है।
·
चार वर्ष की कन्या 'कल्याणी' के
पूजन से सुख मिलता
है।
·
पांच
वर्ष की कन्या 'रोहिणी' की
पूजा से स्वास्थ्य-लाभ होता
है।
·
छ:
वर्ष की कन्या 'कालिका' के
पूजन से शत्रुओं का शमन होता
है।
·
सात वर्ष की कन्या 'चण्डिका' की
पूजा से संपन्नता एवं ऐश्वर्य मिलता
है।
·
आठ वर्ष की कन्या 'शांभवी' के
पूजन से दुख-दरिद्रता का नाश होता
है।
·
नौ वर्ष की कन्या 'दुर्गा' की
पूजा से कठिन कार्य
भी सिद्ध
हो जाते
हैं।
·
दस वर्ष की कन्या 'सुभद्रा' के
पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती
है।
ज्नानार्णाव रुद्रयामालातंत्र
के अनुसार
·
एक वर्ष की आयु वाली
बालिका संध्या,
·
दो वर्ष वाली
सरस्वती
·
तीन वर्ष वाली
त्रिधामूर्ति,
·
चार
वर्ष वाली कालिका
·
पांच
वर्ष वाली सुभगा
·
छह
वर्ष वाली उमा
·
सात
वर्ष वाली मालिनी
·
आठ
वर्ष वाली कुब्जा
·
नौ
वर्ष वाली कन्या कालसंदर्भा,
·
दस
वर्ष वाली अपराजिता और
·
ग्यारह
वर्ष वाली रुदाणी है।
·
बारह
वर्ष वाली बालिका भैरवी
·
तेरह
वर्ष वाली महालक्ष्मी
·
चौदह
वर्ष वाली पीठनायिका,
·
पंद्रह
वर्ष वाली क्षेत्रज्ञा
·
सोलह
वर्ष वाली अंबिका
नवरात्र मैं ये प्रयोग देगा अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी ।
पारिभद्रस्य पत्राणि कोमलानि विशेषत:।
सुपुष्पाणि समानीय चूर्णंकृत्वा विधानत:
।
मरीचिं लवणं हिंगु जीरणेण संयुतम्।
अजमोदयुतं कुत्वा भक्षयेद्रोगशान्तये ।
"चैत्र नवरात्रि पर नीम के कोमल पत्ते,
पुष्प, काली मिर्च,
नमक, हींग,
जीरा मिश्री और अजवाइन मिलाकर मिक्सी में
पीसकर इसकी लुगदी तैयार की जाती है। इस लुगदी को कपड़े में रखकर पानी में छाना
जाता है। छाना हुआ पानी गाढ़ा या पतला कर प्रातः खाली पेट एक कप से एक गिलास तक
सेवन करना चाहिए।
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