कार्तिक
शुक्ल नवमी अक्षय नवमी भी कहलाती है। पद्म पुराण के अनुसार के अनुसार इस दिन
द्वापर युग का आरंभ हुआ था।
पुराणों के अनुसार अक्षय नवमी पर जो भी पुण्य किया जाता है उसका फल कई जन्मों तक समाप्त नहीं होता। इस दिन दान, पूजा,
भक्ति, सेवा जहां तक संभव हो व अपनी सामर्थ्य अनुसार अवश्य करें। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से
अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार अक्षय नवमी पर जो भी पुण्य किया जाता है उसका फल कई जन्मों तक समाप्त नहीं होता। इस दिन दान, पूजा,
भक्ति, सेवा जहां तक संभव हो व अपनी सामर्थ्य अनुसार अवश्य करें। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से
अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
इस दिन
विशेषकर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है,
इसलिए इसे आंवला नवमी भी कहा जाता हैं।
इस दिन आंवले के वृक्ष
की पूजा-अर्चना कर दान-पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान-पुण्य
कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।
की पूजा-अर्चना कर दान-पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान-पुण्य
कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।
आंवले
के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। पौराणिक मान्यताओं के
अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से
लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इसलिए इस की पूजा करने का विशेष महत्व है।
स्कन्दपुराण के अनुसार आंवला पूजन से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है।
पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।
लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इसलिए इस की पूजा करने का विशेष महत्व है।
स्कन्दपुराण के अनुसार आंवला पूजन से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है।
पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।
आंवले
के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके
"ॐ धात्र्यै नम:" मंत्र
का यथासम्भव जप करें
साथ ही पुत्र रत्न की
प्राप्ति हेतु इस नवमी पूजन का विशेष महत्व है।
कार्तिक
शुक्ल नवमी को 'धात्री नवमी'
(आँवला नवमी), आरोग्य
नवमी और 'कूष्माण्ड नवमी'
भी कहते है। आंवला नवमी के
दिन सुबह नहाने के पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नेगेटिव ऊर्जा होगी वह
समाप्त हो जाएगी। सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ौतरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें।
दिन सुबह नहाने के पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नेगेटिव ऊर्जा होगी वह
समाप्त हो जाएगी। सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ौतरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें।
आयुर्वेद
ग्रंथों के अनुसार आँवला कब्जकारक, मूत्रल, रक्त शोधक,
पाचक, रूचिवर्धक तथा अतिसार, प्रमेह, दाह, पीलिया,
अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्त्राव, बवासीर, कब्ज, अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, वीर्य क्षीणता, रक्त प्रदर नाशक तथा
आयुवर्धक है।
अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्त्राव, बवासीर, कब्ज, अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, वीर्य क्षीणता, रक्त प्रदर नाशक तथा
आयुवर्धक है।
प्राचीन
काल से ही हमारे ऋषि मुनियों ने आवला को औषधीय रूप में प्रयोग किया परन्तु आंवले
का धार्मिक रूप से भी
महत्वपूर्ण माना जाता है। जो निम्न प्रकार से है-
महत्वपूर्ण माना जाता है। जो निम्न प्रकार से है-
1- यदि कोई आंवले का एक वृक्ष लगाता है तो उस व्यक्ति को
एक राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है।
2- यदि कोई महिला शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन आंवले के
पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करती है तो वह जीवन पर्यन्त
सौभाग्यशाली बनी रहती है।
सौभाग्यशाली बनी रहती है।
3- अक्षय नवमी के दिन जो भी व्यक्ति आंवले के पेड़ के
नीचे बैठकर भोजन करता है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
होती है एंव दीर्घायु लाभ मिलता है।
होती है एंव दीर्घायु लाभ मिलता है।
4- आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राहमणों को मीठा भोजन कराकर
दान दिया जाय तो उस जातक की अनेक समस्यायें दूर
होती तथा कार्यों में सफलता प्राप्त होती है
होती तथा कार्यों में सफलता प्राप्त होती है
अस्वीकरण - इस
आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे
मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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