बसंत पंचमी 2015

प्राचीन काल
से आज
तक इस
दिन माता
सरस्वती का
पूजन-अर्चन
किया जाता
है। यह
त्रिशक्ति में
एक माता
शारदा के
आराधना के
लिए विशिष्ट
दिवस के
रूप में
शास्त्रों में
वर्णित है।
कई प्रामाणिक विद्वानों का
यह भी
मानना है
कि जो
छात्र पढ़ने
में कमज़ोर
हों या
जिनकी पढ़ने
में रूचि
नहीं हो,
ऐसे विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप
से माँ
सरस्वती का
पूजन करना
चाहिए। देववाणी
संस्कृत भाषा
में निबद्ध
शास्त्रीय ग्रंथों
का दान
संकल्प पूर्वक
विद्वान ब्रह्मणों को देना
चाहिए। बसंत
पंचमी के
दिन सरस्वती
पूजन और
व्रत करने
से वाणी
मधुर होती
है, स्मरण
शक्ति तीव्र
होती है,
प्राणियों को
सौभाग्य प्राप्त
होता है,
विद्या में
कुशलता प्राप्त
होती है।
आज के
ही दिन
बालकों को
प्रथम अक्षर
के रूप
मे माँ
सरस्वती का
बीज मन्त्र
"ऐं" उनकी
जिह्वा पर
केसर की
स्याही से
लिखकर और
इसी मन्त्र
का पाठ
कराकर विद्यारम्भ कराया जाता है। आज भी गुरुकुलों मे यह परंपरा विद्यमान है
जीवन के
प्रत्येक कार्य
का संचालन
बुद्धि, विवेक
और ज्ञान
के आधार
पर ही
होता है।
इसलिए विद्या
बुद्धि की
अधिष्ठात्री देवी
मां सरस्वती
के जन्मोत्सव पर्व पर
किसी भी
कार्य की
शुरूआत कि
जाए तो
वह अतिशुभ
एवं सफल
रहेगा।इस दिन
को शास्त्रो में अबूझ
मुहूर्त बताया
है।
बसंत पंचमी
का जहां
धार्मिक महत्व
है वहीं
विद्यार्थी के
लिये सरस्वती
आह्वान, युवाओं
के लिये
सैरसपाटा, मौज
मस्ती का
बेमिसाल मौसम
प्राप्त है।
साधना के
तो कई
प्रकार हैं
लेकिन मनुष्य
से लेकर
पशु-पक्षी
तक इस
बसंती बेला
का लुत्फ
उठाते देखे
गये हैं।
इस दिन
स्वतः अहसास
होता है
प्रकृति में
परिवर्तन आ
गया है।वसंत
का आगमन
उल्लास और
उमंग लाता
है। वातावरण
में विशेष
स्फूर्ति दिखने
लगती है
चरक संहिताकार का कथन
है कि
इस ऋतु
अर्थात् बसंत
ऋतु में,
स्त्रियों तथा
बनों, जंगल,
प्राकृतिक प्रेम,
सौंदर्य आदि
का सेवन
करना चाहिए
| बसंत ऋतु
के प्रमुख
देवी व
देवता कामदेव
व रति को
भी माना
गया है
और अधि
देवता श्री
कृष्ण हैं
अतः बसंत
पंचमी के
दिन काम
देव व
रति की
पूजा का
भी विधान
है। बसंत
ऋतु मे प्रकृति
मे एक
आकर्षण उत्पन्न
होता है
जो की
कामदेव का
ही एक
स्वरुप है।
भारतीय दर्शन
शास्त्र ने
काम को
भी देव
मानकर पूजा
की है
क्योंकि काम
के वगैर
जीवन गतिहीन
व नीरस है
काम नहीं
तो सृष्टि
नहीं। लेकिन
काम देव
हैं शैतान
नहीं, काम
मर्यादित होना
चाहिए, शास्त्र
सम्मत होना
चाहिए उन्मुक्त और अश्लील
नहीं। इसी
के नियंतरण
और रूपांतरण की व्यवस्था का नाम
है गृहस्थाश्रम। मर्यादा और
शास्त्र आज्ञा
से जीवन
जीना ही
बसंत पंचमी
का उदघोष
है।
राशि के
अनुसार विद्यार्थी को किस
प्रकार मां
सरस्वती का
पूजन करना
चाहिए।
मेष और
वृश्चिक राशि
के छात्रों
को लाल
पुष्प विशेषत:
गुड़हल, लाल
कनेर, लाल
गैंदे आदि
से मां
सरस्वती की
आराधना करनी
चाहिए।
वृष और
तुला राशि
वाले छात्रों
को श्वेत
पुष्पों से
मां सरस्वती
का पूजन
करना चाहिए।
मिथुन और
कन्या राशि
वाले छात्रों
को कमल
पुष्पों से
आराधना करनी
चाहिए।
कर्क राशि
वाले श्वेत
कमल या
अन्य श्वेत
पुष्प से,
जबकि सिंह
राशि के
लोग जवाकुसुम (लाल गुड़हल)
से आराधना
करके लाभ
पा सकते
हैं।
धनु और
मीन के
लोग पीले
पुष्प से
मां सरस्वती
की आराधना
करें।
मकर और
कुंभ राशि
के छात्रों
को नीले
पुष्पों से
मां सरस्वती
की आराधना
करनी चाहिए।
आपके लिए
कुछ ख़ास
मन्त्र दिए
जा रहे
हैं जिनके
जाप से
आप सभी
अत्यधिक लाभान्वित
होंगे.
जपने की
बिधि: माँ
सरस्वती के
चित्र के
सामने जहाँ
तक संभव
हो पीले
वस्त्र पहन
कर बैठें
,उन्हें पीले
चन्दन का
तिलक लगायें
और निम्न
मे से
किसी भी
मन्त्र का
जाप अपनी
श्रद्धा के
अनुसार 1,3,5,1,7 अथवा
11 माला का जाप
करें
मन्त्र 1: ऐं
मन्त्र 2: नील
सरस्वती स्तोत्र
का पाठ
करें
मन्त्र 3: ॐ वद
वद वाग्वादिनी स्वाहा
मन्त्र 4: सरस्वती चालीसा का
रोज प्रातः
पाठ करें
मन्त्र 5: विद्या
प्राप्ति के
लिए गणेश
जी के
बीज मन्त्र
ॐ गं गणपतये नमः का
भी जाप
किया सकता
है।
बसंत पंचमी
के दिन
वाग्देवी सरस्वती
जी को
पीला भोग
लगाया जाता
है और
घरों में
भोजन भी
पीला ही
बनाया जाता
है। इस
दिन विशेषकर
मीठा चावल
बनाया जाता
है।
मां सरस्वती
की कृपा
से ही
विद्या, बुद्धि,
वाणी और
ज्ञान की
प्राप्ति होती
है। देवी
कृपा से
ही कवि
कालिदास ने
यश और
ख्याति अर्जित
की थी।
वाल्मीकि, वसिष्ठ,
विश्वामित्र, शौनक
और व्यास
जैसे महान
ऋषि देवी-साधना
से ही
कृतार्थ हुए
थे। अत:
हमें भी
मां सरस्वती
की कृपा
प्राप्ति का
प्रयास करना
चाहिए।
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