इस कारण माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अर्क, अचला सप्तमी, सूर्य रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी और भानु सप्तमी आदि के विभिन्न नाम से जाना जाता है | अगर यह सप्तमी रविवार के दिन आती हो तो इसे अचला भानु सप्तमी भी कहा जाता है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान सूर्य ने इसी दिन सारे जगत को अपने प्रकाश से अलौकित किया था। इसीलिए इस सप्तमी को सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन जो भी व्यक्ति सूर्यदेव की उपासना करता है वह सदा निरोगी रहता है | सात जन्म के पाप को दूर करने के लिए रथारूढ़ सूर्यनारायण की पूजा, जिसे रथ सप्तमी भी कहा जाता है, भी इसी दिन की जाती है।
इस व्रत के महत्व के विषय में भविष्य पुराण में कहा गया है कि यह व्रत सौभाग्य, रुप और संतान सुख प्रदान करने वाला है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीप दान करना उत्तम फलदायी माना गया है। प्रातः काल किसी अन्य के जलाशय में स्नान करने से पूर्व स्नान किया जाय तो यह बड़ा ही पुण्यदायी होता है। भविष्य पुराण में इस संदर्भ में एक कथा है कि एक गणिका ने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था। इसे जब अपने अंत समय का ख्याल आया तो वशिष्ठ मुनि के पास गयी। गणिका ने मुनि से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा। इसके उत्तर में मुनि ने कहा कि, माघ मास की सप्तमी अचला सप्तमी है।
इस दिन किसी अन्य के जल में स्नान करके जल को चल बनाने से पूर्व स्नान किया जाए और सूर्य को दीप दान करें तो महान पुण्य प्राप्त होता है। गणिका ने मुनि के बताए विधि के अनुसार माघी सप्तमी का व्रत किया जिससे शरीर त्याग करने के बाद उसे इन्द्र की अप्सराओं का प्रधान बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
चंद्रिका में विष्णु का वचन है कि-
माघशुक्ल सप्तमी तो सूर्य ग्रहण के तुल्य है। अरुणोदय बेला में उसमें स्नान करने से महान् फल मिलता है। यदि 2 दिन अरुणोदय हो, तो पहला दिन लेना चाहिए। स्नान के विषय में यह स्मरण रहे कि जो माघ स्नान करते हों, वे इसी दिन अरुणोदय (पूर्व दिशा की प्रातःकालीन लालिमा) होने पर और भानु सप्तमी निमित्त स्नान करने वालों को सूर्योदय के बाद स्नान करना चाहिए।
माघ शुक्ल सप्तमी में यदि ‘प्रयाग’ में लाभ हो, तो करोड़ों सूर्य ग्रहण के बराबर है। उसमें स्नान एवं अर्घ्य दान करने से आयु, आरोग्यता एवं संपत्ति का लाभ प्राप्त होता है। स्नान करने से पहले आक के 7 पत्तों और बेर के 7 पत्तों को, कसुंभा की बत्ती वाले तिल तैलपूर्ण दीपक में रख कर, उसको सिर पर रखें और, सूर्य का ध्यान कर के, गन्ने से जल को हिला कर, दीपक को प्रवाह में बहा दें।
दिवोदास के मतानुसार दीपक के बदले आक के 7 पत्ते सिर पर रख कर, ईख से जल को हिलाएं और
‘नमस्ते रूद्ररूपाय रसानां पतये नमः। वरूणाय नमस्तेऽस्तु।’
पढ़ कर दीपक को बहा दें
और
‘यद् यज्जन्मकृतं पापं यच्च जन्मान्तरार्जितम्।
मनोवाक्कायजं यच्च ज्ञांताज्ञाते च ये पुनः।।
इति सप्तदिधं पापं स्नानांते सप्तसप्तिके।
सप्तव्याधि-समाकीर्णं हर भास्करि सप्तामि।।’
इनका जप कर के, केशव और सूर्य को देख कर, पादोदक (गंगा जल, अथवा चरणामृत) को जल में डाल कर, स्नान करें, तो क्षण भर में पाप दूर हो जाते हैं।
इसके बाद, अघ्र्य में जल, गंध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, 7 अर्क पत्र और 7 बदरी पत्र रख कर,
‘सप्तसप्तिवह प्रीत सप्तलोक प्रदीपन।
सप्तम्या सहितो देव गृहणाध्र्यं दिवा कर।।
से सूर्य को और
‘जननी सर्वलोकानां सप्तमी सप्तसप्ति के।
सप्तव्याहति के देवि नमस्ते सूर्यमंडले।।’
से सप्तमी को अघ्र्य दें।
इसी दिन, तालक दान के निमित्त, नित्य नियम से निवृत्त हो कर, चंदन से अष्ट दल लिखें। पूर्वादि क्रम से उसके आठों कोणों पर शिव, शिवा, रवि, भानु, वैवस्वत, भास्कर, सहस्त्र किरण और सर्वात्मा, इनका यथाक्रम स्थापन और षोडशोपचार पूजन कर के, ताम्रादि के पात्र में कांचन कर्णाभरण (कंडल) घी, गुड़ और तिल रख कर, लाल वस्त्र से ढक कर, गंध पुष्पादि से पूजन कर के,
आदित्यस्य प्रसादेन प्रातः स्नानफलेन च।
दुष्र्टदुर्भाग्य दुःखघ्नं मया दत्तं तु तालकम्।।’
से ब्राह्मण को दें और भानु सप्तमी के निमित्त प्रातः स्नानादि से निवृत्त हो कर, समीप सूर्य मंदिर हो, तो सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान के सम्मुख बैठें, अथवा सुवर्णादि की छोटी मूर्ति हो, तो, उसे अष्ट दल कमल के मध्य में स्थापित कर,
‘मम अखिलकामना सिद्धर्येथ सूर्यनारायणप्रीतये च सूर्यपूजनं करिष्ये।’
से संकल्प कर के, ‘ॐसूर्याय नमः’ इस नाम मंत्र, अथवा पुरुष सूक्तादि से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें। ऋतु काल के पत्र, पुष्प, फल, खीर, मालपुआ, दाल-भात, या दध्योदनादि का नैवेद्य निवेदन करें और भगवान को, सर्वांगपूर्ण रथ में विराजमान कर के, गायन-वादन से और स्वजन परिजनादि को साथ ले कर, नगर भ्रमण करवा कर, यथास्थान स्थापित करें तथा, ब्राह्मणों को खीर आदि का भोजन करवा कर, दिनास्त से पहले स्वयं एक बार भोजन करें।
उस दिन तैल और लवण न खावें।
अंजु आनंद
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