माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमीपर्यंत नवरात्रि के 9 दिनों तक साधक गुप्त साधना करते हैं | गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन गुप्त नवरात्रि में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं जानकार साधकजन तांत्रिक क्रियाएँ, शाक्त साधनाएँ, शैव साधनाएँ, योगिनी, भैरवी, महाकाल और पंचमकार आदि से जुड़ी तंत्र साधनाएं सम्पन्न करते हैं व सफल होने पर गुप्त एवं दुर्लभ सिद्धियाँ पाते हैं।
आषाढ़
मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है, वहीं माघ मास की गुप्त
नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार
माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है।
शुक्ल
पक्ष की पंचमी को ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। इन्हीं कारणों से माघ मास की
नवरात्रि में सनातन, वैदिक रीति के अनुसार देवी साधना करने का विधान निश्चित किया
गया है।माघी नवरात्र में पंचमी तिथि सर्वप्रमुख मानी जाती है। इसे 'श्रीपंचमी', 'वसंत पंचमी' और 'सरस्वती महोत्सव' के नाम से कहा जाता है।
प्राचीन काल से आज तक इस दिन माता सरस्वती का पूजन-अर्चन किया जाता है। यह
त्रिशक्ति में एक माता शारदा के आराधना के लिए विशिष्ट दिवस के रूप में शास्त्रों
में वर्णित है। कई प्रामाणिक विद्वानों का यह भी मानना है कि जो छात्र पढ़ने में
कमज़ोर हों या जिनकी पढ़ने में रूचि नहीं हो, ऐसे विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप
से माँ सरस्वती का पूजन करना चाहिए। देववाणी संस्कृत भाषा में निबद्ध शास्त्रीय ग्रंथों का दान संकल्प पूर्वक विद्वान ब्राह्मणों को देना चाहिए।
नवरात्र
में देवी साधक और भक्त 'ऊं ऐं हीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे नम:' मंत्र जाप करें।
मां काली के उपासक 'ऊं ऐं महाकालाये नम:' मंत्र का जाप करें।
व्यापारी लोग 'ऊं हीं
महालक्ष्मये नम:' मंत्र का जाप करें।
विद्यार्थी 'ऊं क्लीं महासरस्वतये नम:' मंत्र
जपें।
प्रतिपदा यानी गुप्त
नवरात्रि के पहले दिन (21 जनवरी, बुधवार) माता को घी का भोग लगाएं तथा उसका दान
करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी होता है।
द्वितीया तिथि (22 जनवरी, गुरुवार) को माता को शक्कर का भोग लगाएं तथा
उसका दान करें। इससे साधक को दीर्घायु प्राप्त होती है।
तृतीया तिथि (23 जनवरी, शुक्रवार) को माता को दूध चढ़ाएं तथा इसका दान
करें। ऐसा करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है।
चतुर्थी तिथि (24 जनवरी, शनिवार) को मालपूआ चढ़ाकर दान करें। इससे सभी
प्रकार की समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है।
- इस बार
पंचमी तथा षष्ठी तिथि एक ही दिन (25 जनवरी, रविवार) है। इसलिए इस दिन माता दुर्गा
को सयुंक्त रूप से केले तथा शहद का भोग लगाएं। केले का भोग लगाने से परिवार में
सुख-शांति रहती हैं, वहीं शहद चढ़ाने से धन संबंधी समस्याओं का निराकरण होता है।
भोग लगाने के बाद इन दोनों वस्तुओं को गरीबों में बांट दें।
सप्तमी
तिथि (26 जनवरी, सोमवार) को माता को गुड़ की वस्तुओं का भोग लगाएं तथा दान भी
करें। इससे दरिद्रता का नाश होता है।
अष्टमी तिथि (27 जनवरी, मंगलवार) को
नारियल का भोग लगाएं तथा नारियल का दान भी करें। इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति
होती है।
नवमी
तिथि (28 जनवरी, बुधवार) को माता को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं व
यथाशक्ति गरीबों में दान करें। इससे लोक-परलोक में आनंद व वैभव मिलता है।
देवी
भागवत (स्कंध 11, अध्याय 12) में लिखा है कि विभिन्न प्रकार के रसों से देवी
दुर्गा का अभिषेक किया जाए तो माता अति प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं
पूरी करती हैं।
1- देवी भागवत के अनुसार वेद पाठ के साथ यदि
कर्पूर, अगरु (सुगंधित वनस्पति), केसर, कस्तूरी व कमल के जल से देवी दुर्गा को
स्नान करवाया जाए तो सभी प्रकार के पापों का नाश हो जाता है तथा साधक को थोड़े
प्रयासों से ही सफलता मिलती है। ये उपाय बहुत ही चमत्कारी है।
2- देवी भागवत के अनुसार यदि माता दुर्गा को दूध
से स्नान करवाया जाए तो व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-समृद्धि का स्वामी बनता है।
3- द्राक्षा
(दाख) के रस से यदि माता जगदंबिका को स्नान करवाया जाए तो भक्तों पर देवी की कृपा
बनी रहती है।
4- माता
जगदंबिका को आम अथवा गन्ने के रस से स्नान करवाया जाए तो लक्ष्मी और सरस्वती ऐसे
भक्त का घर छोड़कर कभी नहीं जातीं। वहां नित्य ही संपत्ति और विद्या का वास रहता है।
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