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Sharad Purnima and kheer

शास्त्रों में शरद ऋतु को अमृत संयोग ऋतु भी कहा जाता है हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमाकोजागरी पूर्णिमा, कुबेर पूर्णिमा या रास पूर्णिमा (पूरे वर्ष में केवल शरद पूर्णिमा को, वृन्दावन के श्री बांके बिहारी मंदिर में प्रभु के हाथों में मुरली शोभायमान होती है) भी कहते हैं | ज्‍योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। वही सोम चन्द्र किरणें धरती में छिटक कर अन्न-वनस्पति आदि में औषधीय गुणों को सींचती है।


चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषकशक्ति एवं शांतिरूपी अमृत की वर्षा करता है। की रात्रि चंद्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं अत: उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। उसका शरीर पुष्ट होता है। भगवान ने भी कहा है -

पुष्णमि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।। 

'रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।' (गीताः15.13) 

चन्द्रमा की किरणों से पुष्ट खीर पित्तशामक, शीतल, सात्त्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है। इससे चित्त को शांति मिलती है और साथ ही पित्तजनित समस्त रोगों का प्रकोप भी शांत होता है

इस दिन चावल, दूध और मिश्री की खीर बनायें सम्भव हो तो बनाते समय उसमें कुछ समय के लिए थोड़ा सोना या चाँदी मिला दें तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे। खीर को कम से कम 2 घंटे के लिए चन्द्रमा के प्रकाश में रख दें और इसके भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करें कि 'हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढायें ।' फिर वह खीर खा लें ।  शिथिल हो गयी इन्द्रियाँ भी पुष्ट हो जाती हैं  गर्भवती महिलायें शरदपूर्णिमा की रात चन्द्रमा की किरणें में बैठे तो गर्भ पुष्ट होता है ।

श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्द में रास पंचाध्यायी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इसी शरद पूर्णिमा को यमुना पुलिन में गोपिकाओं के साथ महारास के बारे में बताया गया है। भगवत के रास पंचाध्यायी के 5 अध्याय भगवान के पांच प्राण है। गोपी गीत भगवान का ह्रदय हैं इसलिए जितना हो सके गोपी गीत का पाठ करो चंद्रमा की अमृतरूपी किरणों के नीचे बैठ कर या लेट कर। इन पांच गीतों के पाठ से ह्रदय के रोग दूर होते हैं। मनीषियों का मानना है कि जो श्रद्धालु इस दिन चन्द्रदर्शन कर महारास का स्वाध्याय, पाठ, श्रवण एवं दर्शन करते हैं उन्हें हृदय रोग नहीं होता साथ ही जिन्हें हृदय रोग की संभावना हो गई हो उन्हें रोग से छुटकारा मिल जाता है। 

रास पंचाध्यायी का आखिरी श्लोक इस बात की पुष्टि भी करता है।

विक्रीडितं व्रतवधुशिरिदं विष्णों: श्रद्धान्वितोऽनुुणुयादथवर्णयेघः
भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं हृद्रोगमाश्वहिनोत्यचिरेण धीरः

इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करके हवन करना चाहिए इस रात 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना सेहत की दृष्टि से अति उत्तम है। एक आध मिनट आंखें पटपटाना यानी झपकाना चाहिए। 
कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना चाहिए, ज्यादा भी करें तो कोई नुकसान नहीं। इससे 32 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा।  
चांद के सामने छत पर या मैदान में ऐसा आसन बिछाना चाहिए जो विद्युत का कुचालक हो।  चन्द्रमा की तरफ देखते-देखते अगर मन हो तो आप लेट भी सकते हैं।
श्वासोच्छवास के साथ भगवान का नाम और शांति को भीतर भरते जाएं। 
ऐसा करते-करते आप विश्रान्ति योग में चले जाए तो सबसे अच्छा होगा। 
जिन्हें नेत्रज्योति बढ़ानी हो, वे शरद पूनम की रात को सुई में धागा पिरोने की कोशिश करें। नेत्रज्‍योति बढ़ाने के लिये दशहरे से शरदपूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चंद्रमा के आगे त्राटक (पलकें झपकाये बिना एकटक देखना) करें ।
 इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त 64 कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है।


चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है, जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है। मान्यता है कि इस खीर के सेवन से अस्थमा रोगी रोगमुक्त होता है। इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है।

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