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धनतेरस पूजा विधि




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शुभ मुहूर्त में 13 दीपक जलाकर तिजोरी में कुबेर की पूजा करनी चाहिए। देव कुबेर का ध्यान करते हुए, भगवान कुबेर को पुष्प चढ़ाएं। ध्यान करें। कहें, कि हे श्रेष्ठ विमान पर विराजमान रहने वाले, गरूडमणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा व वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृत शरीर वाले,
भगवान शिव के प्रिय मित्र देव कुबेर का मैं ध्यान करता हूं। धूप, दीप, नैवैद्य से पूजा करें।
इस मंत्र का जाप करें
च्यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।
धनतेरस के शुभ दिन से मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय किए जाने चाहिए। इसके लिए धनतेरस विशेष तंत्र पूजन का विधान शास्त्रों में मिलता है।

सामग्री :

दक्षिणावर्ती शंख, केसर, गंगाजल का पात्र, धूप अगरबत्ती, दीपक, लाल वस्त्र।
मंत्र :

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कुबेराय मम गृह स्थिरो ह्रीं ॐ नमः।

विधि : सबसे पहले सामने लक्ष्मी जी का चित्र रखें तथा उनके सामने लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर दक्षिणावर्ती शंख रख दें। उस पर केसर से स्वास्तिक बना लें तथा कुमकुम से तिलक कर दें।
बाद में स्फटिक की माला से मंत्र की 7 माला करें। तीन दिन तक ऐसा निरंतर करें। इतने से ही मंत्र-साधना सिद्ध हो जाती है।
मंत्र जप पूरा होने के पश्चात् लाल वस्त्र में शंख को बांधकर घर में रख दें। जब तक वह शंख घर में रहेगा, तब तक घर में निरंतर उन्नति होती रहेगी।

प्रदोषकाल : सायं 5.41 से 8.15 तक
वृषभकाल : सायं 6.25 से 8.20 तक
सूर्यास्त के बाद के दो घंटे की अवधि को प्रदोषकाल के नाम से जाना जाता है। प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ माना जाता है। देव वैद्य धन्वंतरी के साथ-साथ देवी लक्ष्मी जी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परंपरा है तथा कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है। धनतेरस को पूजा करने के उपरांत घर के मुख्यद्वार पर दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाकर रखा जाता है जो पूरी रात जले, इस दीपक में कुछ पैसे-कौड़ी डाले जाते हैं। स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रदोषकाल में घर के दरवाजे पर यमराज के लिए दीप देने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। दीपदान के समय इस मंत्र का जाप करते रहना चाहिए:
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात सूर्यज: प्रीयतामिति॥

धनतेरस पर सफाई के लिए नई झाडू और सूपड़ा खरीदकर उसकी पूजा की जाती है।
इस दिन वैदिक देवता यमराज की पूजा की जाती है। वर्ष में केवल इसी दिन मृत्यु के देवता की पूजा की जाती है।

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