काल गणना
लोकानामन्तकृत्कालः कालोन्यः कल्नात्मकः |
स द्विधा स्थूल सुक्ष्मत्वान्मूर्त श्चामूर्त उच्यते ||
अर्थात – एक प्रकार का काल संसार का नाश करता है और दूसरे प्रकार का कलानात्मक है अर्थात जाना जा सकता है |
सौर मास, चन्द्र मास, नाक्षत्रमास और सावन मास– ये ही मास के चार भेद हैं ।
ते मासाश्चकुंर्वधाश्चकिन्द्रसौरसावननाक्षत्भिदात् है मतस --- चान्द, सौर, सावन, नजर ये चार प्रकार के मास होते हैं ।
सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है । सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय
ही सौरमास है । (सूर्य मंडल का केंद्र जिस समय एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस समय दूसरी राशि की संक्रांति होती है | एक संक्रांति से दूसरी संक्राति के समय को सौर मास कहते हैं | 12 राशियों के हिसाब से 12 ही सौर मास होते हैं | ) यह मास प्रायः तीस-एकतीस दिन का होता है । कभी कभी उनतीस और बत्तीस दिन का भी होता है । एक सूर्य-संक्रांति से दूसरी सूर्य-संक्रांति तक का सारा समय जो लगभग 30 या 31 दिनो का होता है। विशेष–सौर गणना के अनुसार कार्तिक, माघ, फागुन और चैत्र 30-30 दिनों के, मार्ग शीर्ष और पौष 29 -29 दिनों के, आषाढ़ 32 दिनों का और शेष सब मास 31 -31 दिनों के होते हैं
लोकानामन्तकृत्कालः कालोन्यः कल्नात्मकः |
स द्विधा स्थूल सुक्ष्मत्वान्मूर्त श्चामूर्त उच्यते ||
अर्थात – एक प्रकार का काल संसार का नाश करता है और दूसरे प्रकार का कलानात्मक है अर्थात जाना जा सकता है |
सौर मास, चन्द्र मास, नाक्षत्रमास और सावन मास– ये ही मास के चार भेद हैं ।
ते मासाश्चकुंर्वधाश्चकिन्द्रसौरसावननाक्षत्भिदात् है मतस --- चान्द, सौर, सावन, नजर ये चार प्रकार के मास होते हैं ।
सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है । सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय
ही सौरमास है । (सूर्य मंडल का केंद्र जिस समय एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस समय दूसरी राशि की संक्रांति होती है | एक संक्रांति से दूसरी संक्राति के समय को सौर मास कहते हैं | 12 राशियों के हिसाब से 12 ही सौर मास होते हैं | ) यह मास प्रायः तीस-एकतीस दिन का होता है । कभी कभी उनतीस और बत्तीस दिन का भी होता है । एक सूर्य-संक्रांति से दूसरी सूर्य-संक्रांति तक का सारा समय जो लगभग 30 या 31 दिनो का होता है। विशेष–सौर गणना के अनुसार कार्तिक, माघ, फागुन और चैत्र 30-30 दिनों के, मार्ग शीर्ष और पौष 29 -29 दिनों के, आषाढ़ 32 दिनों का और शेष सब मास 31 -31 दिनों के होते हैं
चन्द्रमा की ह्र्वास वृद्धि वाले दो पक्षों का जो एक मास होता है, वही चन्द्र मास है । यह दो प्रकार का होता है – शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला ‘जमांत’ मास मुख्य चंद्रमास है ।
कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है । यह तिथि की ह्र्वास वृद्धि के अनुसार 29, 28, 27 एवं 30 दिनों का भी हो जाता है ।
सूर्य जब पृथ्वी के पास होता है (जनवरी के प्रारंभ में ) तब उसकी कोणीय गति तीव्र होती है और जब पृथ्वी से दूर होता है (जुलाई के आरम्भ में) तब इसकी कोणीय गति मंद होती है | जब कोणीय गति तीव्र होती है तब वह एक राशि शीघ्र पार कर लेता है और सौर मास छोटा होता है, इसके विपरीत जब कोणीय गति मंद होती है तब सौर मास बड़ा होता है |
सौर मास का औसत मान = 30.44 औसत सौर दिन
जितने दिनों में चंद्रमा अश्वनी से लेकर रेवती के नक्षत्रों में विचरण करता है, वह काल नक्षत्रमास कहलाता है । यह लगभग 27 दिनों का होता है ।
सावन मास तीस दिनों का होता है ।
यह किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर तीसवें दिन समाप्त हो जाता है । प्रायः व्यापार और व्यवहार आदि में इसका उपयोग होता है । इसके भी सौर और चन्द्र ये दो भेद हैं ।
सौर सावन मास सौर मास की किसी भी तिथि को प्रारंभ होकर तीसवें दिन पूर्ण होता है ।
चन्द्र सावन मास, चंद्रमा की किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर उसके तीसवें दिन समाप्त माना जाता है ।
अधिक मास
पुरातन काल से ही भारत में ‘सौर वर्ष’ तथा ‘चन्द्र वर्ष’ प्रचलित हैं। इनमें एक का ऋग्वेद तथा दूसरे का अथर्ववेद में भी वर्णन आया है। सौर वर्ष से ऋतुओं का ज्ञान होता है।
चन्द्र तिथियों, मासों से हमारे अधिकतर पर्व व त्यौहार मनाये जाते हैं। इस कारण हमारे पूर्वजों ने इन दोनों का समन्वय कर एक वर्ष बनाया जिसे चंद्र-सौर वर्ष कहते हैं। मगर हर दो या तीन वर्षों में एक मास बढ़ा दिया जाता है, जिसे ‘मलमास’, ‘पुरूषोत्तममास’ या ‘अधिकमास’ कहते हैं, उस चन्द्र वर्ष में 13 चन्द्रमास होते हैं।
दोनों वर्षों (चन्द्र व सौर वर्ष) का समन्वय करने के लिये नियम बनाया गया कि जब एक सौर मास में दो बार अमावस्या का अन्त होता हो, तब उस मास के नाम के दो चन्द्र मास हो जाते हैं और वह चंद्र-सौर वर्ष 13 चंद्रमास का हो जाता है।
सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना संक्रान्ति कहलाता है। इसे ‘सौर मास’ (Solar Month) कहते हैं। राशियाँ 12 है, अतः सौर वर्ष में भी 12 मास होते हैं, जिसका मान 365.2422 दिन है। चंद्र वर्ष 354.372 दिन का होता है। इनमें लगभग 11 दिन का अन्तर है। सामान्यतया 32 मास 16 दिन 4 घड़ी बीतने पर एक मास का अन्तर आ जाता है। इस प्रकार जब दो पक्ष में संक्रान्ति नहीं होती तो उसे अधिक मास कहते हैं। एक ही नाम के दो मासों के बीच का माह (2 पक्ष) शुद्ध होता है। पहला कृष्ण पक्ष तथा अन्तिम शुक्ल पक्ष ’अधिक। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद तथा आश्विन अधिमास हो सकते हैं।
अधिक मास
पुरातन काल से ही भारत में ‘सौर वर्ष’ तथा ‘चन्द्र वर्ष’ प्रचलित हैं। इनमें एक का ऋग्वेद तथा दूसरे का अथर्ववेद में भी वर्णन आया है। सौर वर्ष से ऋतुओं का ज्ञान होता है।
चन्द्र तिथियों, मासों से हमारे अधिकतर पर्व व त्यौहार मनाये जाते हैं। इस कारण हमारे पूर्वजों ने इन दोनों का समन्वय कर एक वर्ष बनाया जिसे चंद्र-सौर वर्ष कहते हैं। मगर हर दो या तीन वर्षों में एक मास बढ़ा दिया जाता है, जिसे ‘मलमास’, ‘पुरूषोत्तममास’ या ‘अधिकमास’ कहते हैं, उस चन्द्र वर्ष में 13 चन्द्रमास होते हैं।
दोनों वर्षों (चन्द्र व सौर वर्ष) का समन्वय करने के लिये नियम बनाया गया कि जब एक सौर मास में दो बार अमावस्या का अन्त होता हो, तब उस मास के नाम के दो चन्द्र मास हो जाते हैं और वह चंद्र-सौर वर्ष 13 चंद्रमास का हो जाता है।
सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना संक्रान्ति कहलाता है। इसे ‘सौर मास’ (Solar Month) कहते हैं। राशियाँ 12 है, अतः सौर वर्ष में भी 12 मास होते हैं, जिसका मान 365.2422 दिन है। चंद्र वर्ष 354.372 दिन का होता है। इनमें लगभग 11 दिन का अन्तर है। सामान्यतया 32 मास 16 दिन 4 घड़ी बीतने पर एक मास का अन्तर आ जाता है। इस प्रकार जब दो पक्ष में संक्रान्ति नहीं होती तो उसे अधिक मास कहते हैं। एक ही नाम के दो मासों के बीच का माह (2 पक्ष) शुद्ध होता है। पहला कृष्ण पक्ष तथा अन्तिम शुक्ल पक्ष ’अधिक। वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद तथा आश्विन अधिमास हो सकते हैं।
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