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धनतेरस और कुबेर पूजन




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दीपावली के पावन पांच पर्वों में धनवन्तरी, यम, लक्ष्मी, और कुबेर का पूजन किया जाता है।
वयं यक्षाम: का मंत्र देने वाले यक्षराज कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। उनकी राजधानी हिमालय क्षेत्र के अलकापुरी में स्थित है। यक्ष समुदाय जलस्रोतों और धन संपत्ति का संरक्षक है। विश्रवस्‌ ऋषि और उनकी पत्नी इलविला के पुत्र कुबेर की पत्नी हारिति है। भारत में हर पूजा से पहले दिक्पालों की पूजा का विधान है जिसमें उत्तर के दिक्पाल होने के कारण कुबेर की पूजा भी होती है। गहन तपस्या के बाद मरुद्गणों ने उन्हें यक्षों का अध्यक्ष बनाया और पुष्पक विमान भेंट किया।
निधिपति कुबेर के गण यक्ष हैं
जो कि संस्कृत साहित्य में मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली, ज्ञान की परीक्षा लेते हुए, निर्मम प्राणी हैं। जैन साहित्य में इन्हें शासनदेव व शासनदेवी भी कहा गया है। महाभारत के यक्षप्रश्न की याद तो हम सब को है। कुबेर की सम्मिलित प्रजा का नाम पुण्यजन है जिसमें यक्ष तथा रक्ष दोनों ही शामिल हैं।
महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भारद्वाज जी की कन्या इळविळा का पाणि ग्रहण किया। उसी से कुबेर की उत्पत्ति हुई। इसलिये उनका पूरा नाम कुबेर वैश्रवण है। विश्रवा की दूसरी पत्नी, दैत्यराज माली की पुत्री कैकसी केरावण, कुंभकर्ण और विभीषण हुए जो कुवेर के सौतेले भाई थे। विश्रवा की पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। रावण ने अपनी मां और नाना से प्रेरणा पाकर कुबेर का पुष्पक विमान और उनकी स्वर्णनगरी लंकापुरी तथा समस्त संपत्ति पर कब्जा करने के हिंसक प्रयास किए। 

रावण के अत्याचारों से चिंतित कुबेर ने जब अपने एक दूत को रावण के पास क्रूरता त्यागने के संदेश के साथ भेजा तो रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को मार-काटकर अपने सेवक राक्षसों को खिला दिया। यह घटनाक्रम जानकर कुबेर को दुख हुआ। अंततः यक्षों और राक्षसों में युद्ध हुआ। बलवान परंतु सरल यक्ष, मायावी, नृशंस राक्षसों के आगे टिक न सके, राक्षस विजयी हुए। रावण ने माया से कुबेर को घायल करके उनका पुष्पक विमान ले लिया। कुबेर अपने पितामह पुलत्स्य के पास गये। पितामह की सलाह पर कुबेर ने गौतमी के तट पर शिवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ। कुछ जनश्रुतियों के अनुसार कुबेर का एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: वे एकाक्षीपिंगल भी कहलाए। तपस्थली का वह स्थल कुबेरतीर्थ और धनदतीर्थ नाम से विख्यात है।
धनार्थियों के लिए कुबेर पूजा का विशेष महत्व है। परंपरा के अनुसार लक्ष्मी जी चंचला हैं, कभी भी कृपा बरसा देती हैं। लेकिन कुबेर संसार की समस्त संपदा के रक्षक हैं। उनकी अनिच्छा होते ही धन-संपदा अपना स्थान बदल लेती है। समस्त धन के संरक्षक कुबेर की मर्जी न हो तो लक्ष्मी चली जाती हैं। दीपावली पर बहीखाता पूजन के साथ कुबेर पूजन, तुला पूजन तथा दीपमाला पूजन का भी रिवाज है।
महाराज कुबेर के कुछ मंत्र:
आह्वान मंत्र:
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वर्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।। 
कुबेर मंत्र:
ॐ कुबेराय नम: 
कुबेर मंत्र:
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
अष्टाक्षर कुबेर मंत्र:
ॐ वैश्रवणाय स्वाहा। 
षोडशाक्षर कुबेर मंत्र:
ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम: 

पंच्चात्रिशदक्षर कुबेर मंत्र –
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।
कुबेर, कनकधारा और श्री यंत्र तीनों त्रिगुणात्मक शक्ति के पुंज हैं। यदि तीनों की एक साथ पूजा की जाए तो १०० गुणा फल प्राप्त होता है। अष्ट सिद्धी और नवनिधी के दाता कुबैर एक अन्य मान्यता के अनुसार वैवस्वत मंन्वंतर में महर्षि पुलस्त्य के याहं विश्रण नामक पुत्र हुआ। विश्रण के केशनी और इलविला दो पटरानियां थीं।
केशनी के गर्भ से रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा चार सन्तानें हुई।
इहविला जो कि भारद्वाज ऋषि की पुत्री थी। उसके केवल एक पुत्र पैदा हुआ। जिसका नाम कुबेर रखा गया। कुबेर रावण का सौतेला भाई था।
 
कुबेर ने शिव और ब्रह्मा को उपासना की जिससे उसको अनेक वरदान प्राप्त हुए। कुबेर स्वभाव से शान्त और गम्भीर था। उसने विश्वकर्मा के सहयोग से सुवर्णमयी लंका का निर्माण किया जिसको रावण ने ले ली थी और कुबेर के पास पुष्पक विमान था जो कि सात मंजिल का था तथा वह चालक की इच्छानुसार चलता था उसे भी रावण ने कुबेर से छीन लिया था। राम उसी पुष्पक विमान में बैठकर लंका विजय के बाद अयोध्या आए और वह विमान कुबेर को वापस दिया।
शिव पुराण के अनुसार यक्षराज कुबेर अलकावती नगरी के राजा थे।
ब्रह्माण पुराण' के अनुसार मेरु पर्वत की चेरी मंदर पर चैत्ररथ एक दिव्य बगीचा है वहां पर कुबेर आराम करते हैं। जिस जगह पर कुबेर ने तपस्या की वह स्थल नर्मदा नदी एवं कावेरी का संगम स्थल था। यह तीर्थ आज भी कुबेर तीर्थ के नाम से पूजा जाता है। कुबेर ने शिव की तपस्या की उस पर शिव ने प्रसन्न होकर वर मागने को कहा। कुबेर ने कहा है भगवान मुझे ऐसा स्थान दिखाओ, जिस पर शासन एवं आधिपत्य अक्षुण्ण बना रहे तथा कोई कितना भी शक्तिशाली हो मेरा प्रभुत्व छीन नहीं सकता। भगवान शिव ने कुबेर को उत्तर दिशा का स्वामी बना दिया और कहा कि अब से जो भी उत्तर दिशा में तुमको नमस्कार करके जायेगा उसका कार्य तत्काल सम्पन्न होगा। तब से कुबरे उत्तर दिशा का स्वामी होकर शक्तिशाली लोकपाल के रूप में प्रतिष्ठित हो गया तब से उत्तर दिशा का नाम कौबेरी हो गया। कुबेर उत्तर दिशा का स्वामी बनने के बाद भी तपस्या करते रहे। तब शिव ने पुनः प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तब कुबेर ने कहा कि भगवान मुझे आप ऐसी अक्षय एवं विस्तृत सम्पत्ति दीजिए, जिसको मुझसे कोई छीन नहीं सके। इतना ही नहीं मैं जिस पर कृपा करूं वह अथाह सम्पत्ति का स्वामी बन जाय। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर कहा - जा आज से तू समस्त देवताओं, दानवों मानवों की अक्षय सम्पत्ति एवं नव निधियों अष्ट सिद्धियों का स्वामी बन जा। जो भी विधि विधान से तेरी पूजा करेगा, तेरी कृपा से वह अक्षय सम्पत्ति का स्वामी बनेगा। तब से कुबेर धनाधिपति, यक्षाधिपति, धनेश, निधिनाथ, शिवसखा, देवताओं के कोषाध्यक्ष, धनाध्यक्ष होकर संसार के समस्त चर-अचर सम्पत्तियों के स्वामी बन गया। पदम् पुराण के अनुसार गंधमादन पर्वत पर गिरिहार में इनका विशेष प्रकोष्ठ है जहां से यह अक्षय सम्पत्ति का संचालन करते हैं। तीन अक्षय सम्पत्ति का मात्र सोलहवां हिस्सा ही इन्होंने भूतल वासियों को वितरित किया। हमें कुबेर की अनेक प्रचीन प्रतिमायें मिली हैं। जिसे देखने पर पता चला कि कुबेर के एक हाथ में गदा, दूसरे हाथ में रूपयों की थैली है। किसी मूर्ति के एक हाथ में मदिरा का पात्र है। कुषाणकालीन मूर्तियों में अपनी पत्नि के साथ धन की थैली पर बैठे दिखाए गए इनका उदर विशाल है। रंग काला एवं कद नाटा तथा दिखने में कुरूप है। कुबेर को मिष्ठान और मदिरा प्रिय है। कुबेर के सोलह स्वरूप हैः-  
कुबेर . त्र्यम्बक सुख . यक्षराज . गुह्मकेश्वर . धनद .राज राज . धनाधिप . किन्नदेश . वैश्रवण १०. पौलस्त्य ११. नरवाहन १२. सक्ष १३. एकपिंग १४. ऐलविल १५. श्रीद १६. पुण्यजनेश्वर।
कुबेर के पूजन से जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता है। ऐसा माना जाता है कि जहां धन प्राप्ति हेतु अन्य प्रयत्न उपासनाएं विफल हो जाती ळैं। वहां कुबेर की उपासना शीघ्र फलदायी है। धन तेरस को कुबेर की पूजा का दिन माना जाता है। इस दिन कुबेर यंत्र का कुबेर की पूजा का दिन माना जाता है उस दिन कुबेर यंत्र का निर्माण कर पूजन करें। इसके पश्चात् सवा लाख कुबेर मंत्र के जाप करें।
मन्त्र :
ऊं यक्षराज कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्यपत्यै।
धन धान्य समृद्धि में देहि दापय स्वाहा
षोढशाक्षर कुबेरमन्त्र श्री ह्नीं श्रीं ह्नीं क्लीं वित्तश्रवराय नमः किसी एक मंत्र के जाप कर जाप का दसवां भाग हवन करें। शिव रात्रि धन त्रयोदशी एवं विशिष्ट अवसर पर दस हजार लाख कुबेर जाप करने से मन्त्र सिद्ध प्राप्त हो जाता है।



2 comments:

  1. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
    धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥


    ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥



    ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

    कुबेर के इन मंत्रों का सरलार्थ बताने का कष्ट करें

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