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जन्माष्टमी मनाने का समय निर्धारण


स्मार्त अनुयायियों के लिये हिन्दू ग्रन्थ धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु में, जन्माष्टमी के दिन को निर्धारित करने के लिये स्पष्ट नियम हैं।
वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं और वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। वैष्णव नियमों के अनुसार हिन्दू कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है।
सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट
होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है) यह तिथि दो प्रकार की है

    बिना रोहिणी नक्षत्र की 
         तथा
    रोहिणी नक्षत्र वाली।

18 प्रकार की तिथियाँ हैं, जिनमें 8 शुद्धा तिथियाँ, 8 विद्धा तथा 2 अन्य हैं (जिनमें एक अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र वाली तथा दूसरी रोहिणी से युक्त नवमी, बुध या मंगल को)(निर्णयामृत)
रोहिण्या मध्यरात्रे तु यदा कृष्णाष्टमी भवेत् 

जयन्ती नाम स प्रोक्ता सर्वपापप्रणाशनी ||
 यदि 'जयन्ती' (रोहिणीयुक्त अष्टमी) एक दिन वाली है, तो उसी दिन उपवास करना चाहिए,(तिथितत्व )

यदि जयन्ती हो तो रोहिणी युक्त अष्टमी को होना चाहिए, यदि रोहिणी से युक्त दो दिन हों तो उपवास दूसरे दिन ही किया जाता है,
यदि रोहिणी नक्षत्र हो तो उपवास अर्धरात्रि में अवस्थित अष्टमी को होना चाहिए या यदि अष्टमी अर्धरात्रि में दो दिन वाली हो या यदि वह अर्धरात्रि में हो तो उपवास दूसरे दिन किया जाना चाहिए।
यदि जयन्ती बुध या मंगल को हो तो उपवास महापुण्यकारी होता है और करोड़ों व्रतों से श्रेष्ठ माना जाता है जो व्यक्ति बुध या मंगल से युक्त जयन्ती पर उपवास करता है, वह जन्म-मरण से सदा के लिए छुटकारा पा लेता है।'

यदा स्वल्पापि सूर्योदये$ष्टमी सा च रोहणी युक्ता 
उपरि सकला बुधवारेण सोमवारेण वा युता भवति त
दा सम्पूर्णामयष्टमी परित्यज्य सैव स्वल्पाप्युपोष्या !! निर्णयामृत||

शाष्त्रों में कहा गया है कि यदि अष्टमी रोहणीयुक्त न हों तो वह जन्माष्टमी कहलाएगी और यदि अष्टमी रोहिणी युक्त हों तो वह जयंती कहलाएगी |
लेकिन सप्तमी वध्य अष्टमी वर्जित कही गई है |
अतः सूर्योदय के समय अल्पकाल भी अष्टमी तिथि होने पर रोहणी नक्षत्र में ही भगवान का प्राकट्य महोत्सव शुभ है|


कृष्ण जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त

भगवान श्रीकृष्ण का ५२४१ वां जन्मोत्सव
निशिता पूजा का समय = २४:०५+ से २४:४८+
अवधि = ० घण्टे ४३ मिनट
मध्यरात्रि का क्षण = २४:२६+
अगले दिन का पारणा समय = ०६:०६ के बाद
पारणा के दिन अष्टमी तिथि का समाप्ति समय = ०६:०६
रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी

*वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी = १८/अगस्त/२०१४
वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारणा समय = ०५:५५ (सूर्योदय के बाद)
पारणा के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी
रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी

अष्टमी तिथि प्रारम्भ = १७/अगस्त/२०१४ को ०५:५५ बजे
अष्टमी तिथि समाप्त = १८/अगस्त/२०१४ को ०६:०६ बजे

जन्माष्टमी का दिन तय करने के लिये, स्मार्त धर्म द्वारा अनुगमन किये जाने वाले नियम अधिक जटिल होते हैं। इन नियमों में निशिता काल को, जो कि हिन्दू अर्धरात्रि का समय है, को प्राथमिकता दी जाती है। जिस दिन अष्टमी तिथि निशिता काल के समय व्याप्त होती है, उस दिन को प्राथमिकता दी जाती है। इन नियमों में रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने के लिये कुछ और नियम जोड़े जाते हैं। 
जन्माष्टमी के दिन का अन्तिम निर्धारण निशीथ काल के समय, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के शुभ संयोजन, के आधार पर किया जाता है। स्मार्त नियमों के अनुसार हिन्दू कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है।
अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है।
प्रायः उत्तर भारत में श्रद्धालु स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी का भेद नहीं करते और दोनों सम्प्रदाय जन्माष्टमी एक ही दिन मनाते हैं।
सूर्य: सोमो यम: सन्ध्ये भूतान्यह: क्षपा।
पवनो दिक्पतिर्भूमिराकाशं खचरामरा:

ब्राह्मं शासनमास्थाय कल्पध्वमिह सन्निधिम्।। (तिथितत्त्व (पृ 45) एवं समयमयूख (पृ0 52))

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