कल्याणी प्रददाति वै रविसुता राशेश्चतुर्थाष्टमे।
ढैय्या का मतलब होता है ढाई वर्ष। वैसे तो शनिदेव प्रत्येक राशि में ही ढाई वर्ष रहते हैं। परन्तु ढैय्या का विचार चंद्र राशि से केवल चतुर्थ और अष्टम भाव से ही किया जाता है|
जब शनिदेव चंद्र लग्न (जन्म राशि) के अनुसार चतुर्थ व अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो जातक को ढैय्या देते हैं। शनि का प्रभाव जन्म कुण्डली में शनि की स्थिति एवं दशान्तर्दशा पर निर्भर करता है। शनि का अशुभ प्रभाव जातक की जन्म कुण्डली एवं नवांश कुण्डली में शनि की अशुभकारी स्थिति से होता है। ज्योतिष के सामान्य सिद्घान्तों के अनुसार शनि जब अपनी उच्चा राशि, मित्र राशि या अपने नवांश में एवं वर्गोत्तम होने की स्थिति में शुभफल देता है। शनि जन्म कुण्डली के शनि से 3, 6, 10, 11 भावो में भी शुभफल देता है। जन्म कुण्डली के
चन्द्रमा से भी शनि 3, 6, 11 भाव में अशुभ फल नहीं देता है। जिस ग्रह के साथ शनि का संबंध सम रहता है उसकी राशि से गोचर करने के समय भी अशुभ फल नहीं देता है।
चन्द्रमा से भी शनि 3, 6, 11 भाव में अशुभ फल नहीं देता है। जिस ग्रह के साथ शनि का संबंध सम रहता है उसकी राशि से गोचर करने के समय भी अशुभ फल नहीं देता है।
शनिदेव प्रत्येक भाव में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अनुसार फल देते हैं।
चतुर्थ और अष्टम भाव मोक्ष के भाव हैं। ज्योतिष का नियम है कि शनिदेव जिस भाव से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए गोचर करे, उसी के अनुरूप व्यक्ति को कार्य करना चाहिए। जो व्यक्ति ढैय्या में तीर्थ यात्रा, समुद्र स्नान और धर्म के कार्य दान-पुण्य इत्यादि करते हैं, उन्हें ढैय्या में भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। लेकिन जो उस अवधि में इन कामों से दूर रहते हैं, उन्हें अपने ही पूर्वकृत अशुभ कर्मों के फलस्वरूप शारीरिक-मानसिक परेशानी और कारोबार में हानि होती है।
चतुर्थ और अष्टम भाव मोक्ष के भाव हैं। ज्योतिष का नियम है कि शनिदेव जिस भाव से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए गोचर करे, उसी के अनुरूप व्यक्ति को कार्य करना चाहिए। जो व्यक्ति ढैय्या में तीर्थ यात्रा, समुद्र स्नान और धर्म के कार्य दान-पुण्य इत्यादि करते हैं, उन्हें ढैय्या में भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। लेकिन जो उस अवधि में इन कामों से दूर रहते हैं, उन्हें अपने ही पूर्वकृत अशुभ कर्मों के फलस्वरूप शारीरिक-मानसिक परेशानी और कारोबार में हानि होती है।
चतुर्थ भाव की ढैय्या :
शनि जन्म कालीन चंद्र से चतुर्थ में जाए तो कंटक शनि होता है।शनि की लघु कल्याणी ढैय्या के नाम से भी जाना जाता है| चतुर्थ भाव से शनिदेव छठे भाव को, दशम भाव को तथा लग्न को देखते हैं। अर्थात् जब शनिदेव चतुर्थ भाव से गोचर करते हैं तो जातक के निजकृत पूर्व के अशुभ कर्मों के फलस्वरूप उसके भौतिक सुखों यानी मकान व वाहन आदि में परेशानी पैदा होती है जिसका संकेत कुण्डली में शनिदेव की स्थिति दिया करती है। जिसकी वजह से उसके कारोबार में फर्क पड़ता है। उसकी परेशानी बढ़ जाती है। परेशानियों के बढ़ने से जातक को शारीरिक कष्ट की भी प्राप्ति होती है। अर्थात् चतुर्थ भाव की ढैय्या में मकान खरीदना या बेचना नहीं चाहिए। साथ ही अपने व्यवसाय में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति अधिकतर शांत रहते हैं और धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों को चतुर्थ ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी पैदा नहीं होती है। और जो व्यक्ति नया कार्य करते हैं, उन्हें परेशानी पैदा होती है।
अष्टम भाव की ढैय्या:
जब शनिदेव जन्मकुंडली में चंद्र से अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो ढैय्या देते हैं, अष्टम ढैय्या चतुर्थ की ढैय्या से ज्यादा अशुभ फलों का संकेत देती है।अष्टम भाव आयु या मृत्यु का भाव माना गया है|
अष्टम ढैय्या जातक से नया कार्य शुरू कराकर बीच में ही धोखा दे जाती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि अष्टम भाव से शनिदेव तीसरी दृष्टि से दशम भाव को सप्तम दृष्टि से द्वितीय भाव को और दशम दृष्टि से पंचम भाव को देखते हैं। अष्टम ढैय्या सबसे पहले कारोबार में परेशानी पैदा करती है। जिसकी वजह से जातक के निजी कुटुंब और धन पर बुरा असर पड़ता हैं तथा धन की वजह से जातक के संतान के ऊपर भी कुप्रभाव पड़ता है। अत: जातक को अष्टम ढैय्या में कोई भी नया कार्य, यानी बैंक आदि से कर्ज या जमीन-जायदाद का खरीदना-बेचना या पिता की संपत्ति को बांटना नुकसानदायक होता है। अत: इस ढैय्या के दौरान ये कार्य नहीं करने चाहिए। अष्टम ढैय्या में जो व्यक्ति धार्मिक कार्य, समुद्र स्नान व तीर्थ यात्रा आदि करता है और ईमानदारी पूर्वक, निश्छल-सहृदय, सादा जीवन जीता है, तो उस व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है।याद रहे कि प्रतिकूल परिस्तिथियों के पीछे भी जातक के पूर्वकृत अशुभ कर्म ही रहते हैं।
ढैय्या किसको और कब
ढैय्या में व्यक्ति को धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि ढैय्या में व्यक्ति को अपने सगे संबंधियों की भी मदद कम से कम मिलती है। इसलिए स्वयं सभी कार्य करने पड़ते हैं।
प्रात:काल चिड़ियों को दाना डालें,
आँगन या छत पर उनके लिए पानी रखें।
आटा शक्कर का मिश्रण बना कर चींटियों को डालें
प्रतिदिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि से निवृत होकर सूर्यदेव को प्रतिदिन जल दें।
बुरे कार्यों से बचें।
ढैय्या में सफलता प्राप्त होगी।
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