कुंडली में विवाह का विचार मुख्यत: सातवें भाव, सप्तमेश, लग्नेश, शुक्र एवं गुरु की स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है। कन्या की कुंडली में गुरु की
स्थिति प्रमुख रूप से विचारणीय होती है क्योंकि उनके लिए गुरु पति का स्थायी कारक
है। लग्नेश का सप्तमेश एवं पंचमेश के साथ संबंध भी विवाह को प्रभावित करता है।
विवाह संबंधी प्रश्नों में लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली और नवमांश कुंडली
तीनों से ही विचार करना चाहिए। जन्म कुंडली में कुछ ऐसे योग होते हैं, जो जातिका के विवाह में विलंब का कारण बनते हैं।
प्रमुख कारण जन्म कुंडली में शुक्र
वैवाहिक सुख से संबंधित है। वहीं महिलाओं के लिए गुरु पति, पुत्र तथा धन का प्रतिनिधि ग्रह है। अत: पति सुख के लिए महिलाओं की कुंडली में गुरु की स्थिति विचारणीय
है।
स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव में शनि या चौथे भाव में
मंगल आठ अंश तक हो तो विवाह में बाधा आती है। इसी प्रकार स्त्री कुंडली में सप्तम
भाव के स्वामी के साथ शनि बैठा हो तो विवाह अधिक आयु में होता है। सातवें भाव में
शनि हो और कोई पापी ग्रह उसे देखता हो तो उसका विवाह काफी मुश्किल से होता है।
शनि, सूर्य, राहु, 12वें भाव का स्वामी (द्वादशेश) तथा राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी - ये पांच ग्रह विच्छेदात्मक प्रवृति के होते हैं। इनमें से
किन्हीं दो या अधिक ग्रहों की युति या दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के जिस भाव स्वामी
से होता है तो उसे हानि पहुंचाते हैं। अत: सप्तम भाव या उसके स्वामी को
इन ग्रहों द्वारा प्रभावित करने पर विवाह में विलंब हो सकता है तथा दाम्पत्य जीवन
में कटुता आती है। सप्तम भाव, सप्तमेश और द्वितीय भाव पर क्रूर
ग्रहों का प्रभाव वैवाहिक जीवन में क्लेश उत्पन्न करता है।
शुक्र की नेष्ट स्थिति हो, वह सप्तमेश होकर पाप प्रभाव में हो, नीच व शत्रु नवांश का या षष्ठांश में हो तो विवाह में विलंब
तथा दांपत्य सुख में बाधा आती है।
राहु-केतु सप्तम भाव में हों व उसकी
क्रूर ग्रहों से युति हो या उस पर पाप दृष्टि हो, तो विवाह में विलंब होता है
तथा दांपत्य तनाव पूर्ण होता हैं। दोष भी होते हैं कारण घर-परिवार में
किसी तांत्रिक प्रयोग के कारण अथवा स्वयं की कुंडली में ग्रह दोष, पितृ दोष आदि के कारण संतान के विवाह में अनावश्यक विलंब
होता है तथा घर में सम्पन्नता नहीं आ पाती है। ऐसी स्थिति में पितृ दोष आदि की
शांति करा लेनी चाहिए। विवाह में बाधक ग्रहों की शांति, जप आदि कराने से विवाह शीघ्र होता है।
कन्या की कुंडली में विवाह में
विलंब के कुछ प्रमुख योग इस प्रकार हो सकते हैं। विवाह से संबंधित सातवें भाव का
स्वामी शुभ युक्त न होकर 6, 8, 12वें भाव में हो और नीच या अस्त हो, तो जातक के विवाह में विलंब हो सकता है।
यदि 6, 8, 12वें भाव का स्वामी सप्तम भाव में विराजमान हो, उस पर किसी ग्रह की शुभ दृष्टि न हो या किसी ग्रह से
उसका शुभ योग न हो, तो विवाह मे विलंब तथा वैवाहिक सुख में बाधा आती है।
लग्न में सूर्य बैठा हो और शनि स्वाग्रही (मकर या कुंभ
राशि में) होकर सप्तम भाव में विराजमान हो तो विवाह विलंब से होता है।
सप्तमेश वक्री हो व शनि की दृष्टि सप्तमेश व सप्तम भाव पर
पड़ती हो तो विवाह में विलंब होता है।
सप्तम भाव व सप्तमेश पाप कर्त्तरी
योग में हों तो विवाह विलंब से होता है।
उपाय
सर्व प्रथम विवाह में बाधक ग्रहों की पहचान कर उस ग्रह से
संबंधित व्रत, दान, जप आदि करने चाहिएं।
पितृ शांति कराएं।
पति के कारक ग्रह गुरु के व्रत विशेष लाभकारी होते हैं।
इस दिन हल्दी मिश्रित जल केले को चढ़ाएं, घी का दीपक जलाएं तथा गुरु मंत्र
ॐ
ऐं क्लीं बृहस्पतये नम: का जप करें।
वीरवार को पके केले स्वयं नहीं खाएं। इनका दान करें।
विवाह योग्य कन्या को मकान के वायव्य दिशा में सोना चाहिए।
इसके अलावा अपनी राशि के अनुसार उपाय करें, शीघ्र विवाह के अवसर प्राप्त होंगे।
-शीघ्र वर प्राप्ति के लिए मंत्र साधना
ॐ लीं विश्वासुर्नाम गन्धर्व:। कन्यानामधिपति: लभामि।
देवदत्तो कन्यां सुरूपां सालकारां तस्मै विश्वासवै स्वाहा।।
वीरवार को किसी शुभ योग में इस मंत्र
का फीरोजा की माला से पाँच माला जप करें। यह क्रिया ग्यारह वीरवार करें, उत्तम वर व घर शीघ्र मिलेगा।
-ॐ ह्नीं कुमाराय नम: स्वाहा।
सात सोमवार तक नियमित रूप से पारद शिव लिंग के सम्मुख इस मंत्र की 21 माला का जप सोमवार को करें।
योग्य वर के साथ शीघ्र विवाह के योग बनेंगे।
ॐ बहि प्रेयसी स्वाहा। महाविद्या भुवनेश्वरी यंत्र के सम्मुख इस मंत्र का सवा लाख जप करें, उत्तम वर से शीघ्र विवाह के योग बनेंगे।
कात्यायिनी महामाये महायोगिनीधीश्वरी।
नन्द-गोपसुतं देवि! पतिं में कुरु ते नम: ।।
मां पार्वती के चित्र के सामने, पूजा करने के बाद इस मंत्र की ग्यारह माला का जप करें। यह क्रिया 21 दिनों तक नियमित रूप से करें।
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