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सप्तश्लोकी दुर्गा

 नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है। 
नवरात्र में पूजा के अवसर पर दुर्गासप्तशती का पाठ करने से देवी प्रसन्न होती हैं. सप्तशती का पाठ करने पर उसका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है. श्रीदुर्गा सप्तशती, भगवती दुर्गा का ही स्वरूप है. इस पुस्तक का पाठ करने से पूर्व इस मंत्र द्वारा पंचोपचारपूजन करें-  

नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम:
नम: प्रकृत्यैभद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥


यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ करने में असमर्थ हों तो सप्तश्लोकी दुर्गा को पढें. इन सात श्लोकों में सप्तशती का संपूर्ण सार समाहित होता है.

अथ सप्तश्लोकी दुर्गा

शिव उवाच : देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी कलौ कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥ देव्युवाच : श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट्साधनम् मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते विनियोग : अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गाप्रीत्यथं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः । 

ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः
स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणे
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा
तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति

सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण ॥



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