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बसंत पंचमी - माँ सरस्वती का आशीर्वाद पाने का अद्भुत पर्व - अंजु आनंद

#बसंत_पंचमी_2016 माघ मास शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को ज्ञान,  बुद्धि, विवेक और यश प्रदान करने वाली वीणा वादिनी, विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती का उद्भव हुआ था, माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का दिन ऋतुराज वसंत के आगमन का प्रथम दिवस माना गया है। इसी दिन श्री अर्थात विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है।  वसंत का तात्पर्य है हर्षोल्लास से परिपूर्ण होना। कहा जाता है कि इस ऋतु में भगवान श्री कृष्ण स्वयं भूलोक पर प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने स्वयं को वसंत माना है। 
माँ सरस्वती ‘सरसः अवती’, अर्थात् एक गति में ज्ञान देने वाली अर्थात् गतिमति । निष्क्रिय ब्रह्मा का सक्रिय रूप; इसीलिए उन्हें ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’, तीनों को गति देने वाली शक्ति कहते हैं ।
’बसंते ब्राह्मणमुपनीयत” अर्थात वेद पुराण, धार्मिक कार्य, अध्ययन के लिये बसंत पंचमी सर्वश्रेष्ठ है।


बसंत पंचमी के पर्व से ही 'बसंत ऋतु' का आगमन होता है। इस समय पंचतत्व - जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। शांत, ठंडी, मंद वायु, शीत लहर का स्थान ले लेती है तथा सब को नव प्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। पत्रपटल तथा पुष्प खिल उठते हैं।
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।
12 फ़रवरी 2016 शनिवार को कई सालों बाद बसंत पंचमी के दिन पंचमहायोग का संयोग बन रहा है। ज्योतिषचार्या अंजु आनंद के अनुसार इस दिन ध्वज योग, साध्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृतसिद्धि योग और रवि योग एकसाथ आ रहे हैं। 
इस बार चतुर्थी युक्त पंचमी होने से और पंचमहायोग के संयोग में मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करना साधकों के लिए विशेष फलदायी साबित होगा। 
सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त चंडीगढ़ के समय अनुसार सुबह 09 बजकर 16 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक है। पंचमी तिथि प्रातः 9.16 से लगेगी, इसलिए इसके बाद ही पूजा करना श्रेष्ठ रहेगा। प्रातः काल समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के पश्चात मां सरस्वती की आराधना का प्रण लेना चाहिए। इसके बाद दिन के समय यानी पूर्वाह्नकाल में स्नान आदि के बाद भगवान गणेश जी का ध्यान करना चाहिए। स्कंद पुराण के अनुसार सफेद पुष्प, चन्दन, श्वेत वस्त्रादि से देवी सरस्वती जी की पूजा करनी चाहिए। सरस्वती जी की पूजा के लिए अष्टाक्षर मूल मंत्र "श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा" श्रेष्ठतम और परम उपयोगी है
सरस्वती की कृपा पाने के लिए विद्यार्थियों को यथासम्भव इस मंत्र का जप करना चाहिए 
* 'सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:, वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने, विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।‘

माँ सरस्वती की पूजा से मंदबुद्धि भी प्रकांड विद्वान बन सकता है कालिदास इनके काली रूप की आराधना करके महाकवि बन गए। 
माँ सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं। 

इसीलिए सरस्वती पूजा प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अनिवार्य है।  
 आज के दिन विद्यार्थियों को सरस्वती के इन 12 नामों का उच्चारण शुभ फलदायी होगा 
1.भारती 2.सरस्वती 3.शारदा 4.हंसवाहिनी 5.जगती 6.वागीश्वरी 7.कुमुदी 8.ब्रह्मचारी 9.बुद्धिदात्री 10.वरदायिनी 11.चंद्रकाति 12.भुवनेश्वरी। 
एक किंवदन्ती के अनुसार इस दिन ब्रह्मा जी ने सृ्ष्टि की रचना की थी |
देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत,  काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द व शक्ति की प्राप्ति जीव को हुई थी। सरस्वती को प्रकृति की देवी की उपाधि भी प्राप्त है। 
वैसे सायन कुंभ में सूर्य आने पर वसंत शुरू होता है। इस दिन से वसंत राग, वसंत के प्यार भरे गीत, राग-रागिनियां गाने की शुरुआत होती है। इस दिन सात रागों में से पंचम स्वर (वसंत राग) में गायन, कामदेव, उनकी पत्नी रति और वसंत की पूजा की जाती है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम ने माता शबरी के झूठे बैर खाये थे |

तंत्रशास्त्र में माघ शुक्ल पंचमी अर्थात वसंत पंचमी को लक्ष्मी-उपासना हेतु अतिशुभ बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि विष्णुप्रिया लक्ष्मी वसंत पंचमी के दिन प्रसन्न-मुद्रा में होती है। पूरे वर्ष में यही एक ऐसा दिन होता है, जब ये दोनों देवियां माँ सरस्वती एवं माँ लक्ष्मी आपसी वैर भुलाकर लोक कल्याणार्थ एकचित्त होती हैं। इन दोनों देवियों की प्रिय तिथि होने के कारण वसंत पंचमी इनके मिलन का महापर्व बन गई है। अत: इस दिन दोनों के पूजन से विद्या के साथ सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। 
बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यतः विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को हमारे पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। 
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजा युक्त व आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है।
स्कंद पुराण में सरस्वती जटा-जुटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कही गई हैं। 
श्रीमद्भगवद्गीतामें श्रीकृष्ण ने दसवें अध्याय के ३५वें श्लोक में वसंत ऋतु को अपनी विभूति बताया है। उन्होंने कहा है कि वसंत ऋतु मैं ही हूं।

रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौभ्य व शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है। संपूर्ण संस्कृति की देवी के रूप में दूध के समान श्वेत रंग वाली सरस्वती के रूप को अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। 
सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है। कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हज़ार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा- स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम। यानी मैं कई वर्षों तक सोता रहूँ, यही मेरी इच्छा है।
सरस्वती देवी के इसी रूप एवं सौंदर्य का एक प्रसंग मत्स्यपुराण में भी आया है, जो लोकपूजित पितामह ब्रह्मा के चतुर्मुख होने का कारण भी दर्शाता है। जब ब्रह्मा जी ने जगत की सृष्टि करने की इच्छा से हृदय में सावित्री का ध्यान करके तप प्रारंभ किया, उस समय उनका निष्पाप शरीर दो भागों में विभक्त हो गया। इसमें आधा भाग स्त्री और आधा भाग पुरुष रूप हो गया। वह स्त्री सरस्वती, ‘शतरूपा’ नाम से विख्यात हुई। वही सावित्री, गायत्री और ब्रह्माणी भी कही जाती है। इस प्रकार अपने शरीर से उत्पन्न सावित्री को देखकर ब्रह्मा जी मुग्ध हो उठे और यों कहने लगे- "कैसा सौंदर्यशाली रूप है, कैसा मनोहर रूप है"। तदनतर सुंदरी सावित्री ने ब्रह्मा की प्रदक्षिणा की, इसी सावित्री के रूप का अवलोकन करने की इच्छा होने के कारण ब्रह्मा के मुख के दाहिने पार्श्र्व में एक नूतन मुख प्रकट हो गया पुनः विस्मय युक्त एवं फड़कते हुए होठों वाला तीसरा मुख पीछे की ओर उद्भूत हुआ तथा उनके बाईं ओर कामदेव के बाणों से व्यथित एक मुख का आविर्भाव हुआ। अतः स्पष्ट है कि ऐसी शुभ, पवित्र तथा सौंदर्यशाली देवी अति धवल रूप सरस्वती देवी की उपासना भी तभी पूर्णतया फलीभूत हो सकती है, जब उसके लिए स्वयं ईश्वर तथा प्रकृति ऐसा पवित्र एवं शांत वातावरण निर्मित करें, जबकि हम अपने मन को पूर्णतया निर्मल एवं शांत बनाकर पूर्ण रूपेण देवी की उपासना में लीन कर दें एवं नैसर्गिक पवित्र वातावरण में रहकर मन, वचन एवं कर्म से पूर्ण निष्ठा एवं भक्ति से शारदा देवी की उपासना करें एवं उनकी कृपा दृष्टि के पूर्ण अधिकारी बन जाएं।
दो से दस वर्ष की कन्याओं को पीले मीठे चावल खिलाएं और उनका पूजन करें 
पीले फूलों से शिवलिंग पूजन करें
अंजु आनंद


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