‘सर्वर्तुपरिवर्त्तस्तु
स्मृतः संवत्सरो बुधैः’ (क्षीरस्वामी कृत अमरकोश) ।
भारतीय मनीषा ने
सभी ऋतुओं के एक पूरे चक्र को संवत्सर के नाम से अभिहित किया है, अर्थात् किसी ऋतु से आरम्भ कर पुनः उसी ऋतु की आवृति तक का
समय एक संवत्सर होता है
‘संवसन्ति ऋतवः
अस्मिन् संवत्सरः’(क्षीरस्वामी कृत अमरकोश,कालवर्ग,20)।
सम +वस्ति +ऋतवः
भाव -अच्छी ऋतु जिसमें है ,उस काल गणना के प्रमाण को
संवत्सर कहते हैं
"रितुभिहि संवत्सरः शक्प्नोती स्थातुम”
दूसरे अर्थों में संवत्सर के अन्दर सभी ऋतुओं
का निवास होता है
निरुक्त ने तो
सभी प्राणियों की आयु की गणना इन्हीं संवत्सरों के द्वारा होने के कारण कहा है कि
जिसमें सभी प्राणियों का वास हो, समय के उस विभाग को संवत्सर
कहते हैं—
‘संवत्सरः
संवसन्ते अस्मिन् भूतानि’ (निरुक्त, अ.4, पा.4, खं.27)
चैत्रे मासि
जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि।
शुक्लपक्षे
समग्रं तु तदा सूर्योदये सति।।’ (ब्रह्मपुराण)
अर्थात्
ब्रह्माजी ने चैत्रमास के शुक्लपक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय होने पर संसार की
सृष्टि की।
“कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा ।
रेवत्यां योग-विष्कुम्भे दिवा द्वादश-नाड़िका: ।।
मत्स्यरूपकुमार्यांच अवतीर्णो हरि: स्वयम् ।।
इसी दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र में
विष्कुम्भ योग में दिन के समय भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था।
इस बार वर्ष 2016 में
विक्रम संवत 2073 का
शुभारम्भ 08 अप्रैल, सन् 2016 को
चैत्र मास के
शुक्ल पक्ष, अश्विनी नक्षत्र वैधृति योग में होगा। सूर्य मीन तथा चन्द्र मेष राशि में होंगे।
इसी दिन से शक्ति की आराधना के पर्व नवरात्र की शुरुआत भी मानी जाती है। हिंदू संस्कृति के अनुसार नव संवत्सर पर कलश स्थापना कर नौ दिन का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ कर नवमीं के दिन हवन कर मां भगवती से सुख-शांति तथा कल्याण की प्रार्थना की जाती है। जिसमें सभी लोग सात्विक भोजन व्रत उपवास, फलाहार कर नए भगवा झंडे तोरण द्वार पर बांधकर हर्षोल्लास से मनाते हैं। इन्हीं दिनों तामसी भोजन, मांस मदिरा का त्याग भी कर देते हैं।
इस दिन से दुर्गा सप्तशती या रामायण का नौ-दिवसीय पाठ आरंभ करें। सभी जीव मात्र तथा प्रकृति के लिए मंगल कामना करें।
चैत्र में आने वाले नवरात्र में अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा का विशेष प्रावधान माना गया है। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है।
संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रात: काल स्नान आदि के द्वारा शुद्ध होकर घर को स्वच्छ सुशोभित करना चाहिए तथा अपने से बड़ों का गुरु, माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेना चाहिए। और हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर
“ॐ भूर्भुव: स्व: संवत्सर- अधिपति आवाहयामि पूजयामि च “
इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए तत्पश्चात संवत्सर फल का श्रवण करना चाहिए। इसके बाद काली मिर्च, नीम की पत्ती, मिश्री, अजवाइन व जीरा का चूर्ण बनाकर खाना चाहिए।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा एक स्वयं सिद्ध अमृत तिथि है एवं इस
दिन यदि शुद्ध चित से किसी भी कार्य की शुरुआत
की जाए एवं संकल्प किया जाए तो वह अवश्य सिद्ध होता है ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ब्राह्मण या ज्योतिषी को बुलाकर नव
संवत्सर का फल सुनना चाहिए, नव
संवत्सर का फल सुनने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ
रही है ।
यश्चेव शुक्ल
प्रतिपदा धीमान श्रुणोति वर्षीय फल पवित्रम भवेद
धनाढ्यो
बहुसश्य भोगो जाह्यश पीडां तनुजाम, च वार्षिकीम ||
अर्थात जो व्यक्ति चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को इस पवित्र वर्ष फल को श्रृद्धा से
सुनता है तो धन धान्य से युक्त होता है ।
तिलक का गमन, सौम्य का आगमन2073 सवंत्सर का नाम सौम्य होगा, नाम के अनुरूप उसकी प्रवृत्ति भी सौम्य रहेगी। सौम्य संवत के अधिष्ठाता भगवान शंकर हैं ज्योतिषाचार्या अंजु आनंद के अनुसार सौम्य संवत में जन साधारण के लिए सुख सुविधाएं बढ़ेंगी। आम जनता और राजा दोनों को राहत मिलेगी। राजनीति में महिलाओं का वर्चस्व बढ़ेगा।
संवत का आगमन शुक्रवार के दिन होने से राजा पद शुक्र देव को मिलेगा और इसके
साथ ही निर्धारित होगा सम्पूर्ण मंत्रिमंडल जो इस वर्ष के राजा शुक्र के साथ मिल
कर कार्य करेगा
अंजु आनन्द
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