1

भीष्म अष्टमी व्रत -पितृ्दोष से मुक्ति और गुणवान संतान एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए

#भीष्म_अष्टमी_व्रत-
#पितृ्दोष_से मुक्ति और गुणवान संतान एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए

माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि भीष्म अष्टमी के रूप में मनाई जाती है | इस दिन महाभारत के पौराणिक पात्र भीष्म पितामह को अपनी इच्छा अनुसार मृ्त्यु प्राप्त हुई थी। धर्म शास्त्रों के अनुसार भीष्म पितामह ने बाणो की शय्या पर लेट कर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी ताकि वह अपने प्राणो को उत्तरायण में त्याग सकें। महाभारत में वर्णन है कि भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान था।
संतान की कामना पूर्ति तथा पितृ्दोष से मुक्ति के लिए भीष्म अष्टमी व्रत करना चाहिए 
इस दिन भीष्म के नाम से पूजन और कुश, तिल, जल से  तर्पण करने से वीर और सत्यवादी संतान की प्राप्ति होती है।  तेजस्वी आत्मा संतान के रूप में आती है





शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्।
संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।

महाभारत के अनुसार जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्ष भर (संवत्सर) के पाप नष्ट हो जाते हैं |


भीष्म अष्टमी को भीष्म श्राद्ध के रूप में जाना जाता है | 
माना जाता है कि भीष्म अष्टमी के दिन भीष्म पितामह की स्मृति के निमित्त जो श्रद्धालु कुश, तिल, जल के साथ श्राद्ध, तर्पण करता है, उसे संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है और पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को करने से पितृ्दोष से मुक्ति मिलती है और संतान की कामना भी पूरी होती है|

भीष्म अष्टमी को अगर भीष्म के नाम से सूर्य को अर्घ्य दिया जाये तो संतान हीन को संतान मिल सकती है

माघे मासि सिताष्टम्यां सतिलं भीष्मतर्पणम्।
श्राद्धं च ये नरा: कुर्युस्ते स्यु: सन्ततिभागिन:।। (हेमाद्रि)


आज के दिन निम्न मन्त्र से सूर्यदेव को तथा भीष्म पितामह को अर्घ्य दें  

"वसूनामवताराय शंतनोरात्मजाय च अर्घ्यं ददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणे"

इस मन्त्र से सूर्यदेव को अर्घ्य देने से आरोग्य की तथा भीष्म पितामह को अर्घ्य देने से गुणवान सन्तान की प्राप्ति होती है

भीष्म अष्टमी के दिन सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर स्नान करना चाहिए। यदि नदी या सरोवर पर न जा पाएं तो घर पर ही विधिपूर्वक स्नानकर भीष्म पितामह के निमित्त हाथ में तिल, जल आदि लेकर अपसव्य (जनेऊ का कंधा बदलकर) तथा दक्षिणाभिमुख होकर निम्नलिखित मंत्रों से तर्पण करना चाहिए-


वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।

भीष्म: शान्तनवो वीर: सत्यवादी जितेन्द्रिय:।
आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रोचितां क्रियाम्।।

इसके बाद पुन: सव्य होकर निम्न मंत्र से गंगापुत्र भीष्म को अध्र्य देना चाहिए-

वसूनामवताराय शन्तरोरात्मजाय च।


No comments:

Post a Comment

We appreciate your comments.

Lunar Eclipse 2017