अंजु आनंद ज्योतिष आचार्या (Astro Windows Researches)
वर्ष 2015 में राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त
श्रावण मास की पूर्णिमा
के दिन मनाया जाने वाला रक्षा बन्धन का पर्व एक ऐसा पर्व है जिसकी प्रतीक्षा हर कोई
बड़ी उत्कण्ठा के साथ करता है | श्रावण मास की पूर्णिमा को प्रातः स्नानादि से निवृत्त
होकर बहनें भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भाई बहन एक दूसरे को मिठाई
खिलते हैं | इस दिन बहनें अपने भाई के दाहिने
हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर उसकी दीर्घायु की कामना करती हैं | जिसके बदले में भाई उनकी
रक्षा का वचन देता है | रक्षा बंधन भाई बहन के अटूट प्यार का पर्व श्रावण पूर्णिमा
के दिन भद्रारहित काल में मनाने की परम्परा है। परन्तु पूर्णिमा तिथि के पूर्व-अर्ध
भाग में भद्रा व्याप्त रहती है। यधपि भद्राकाल में रक्षाबन्धन करना शुभ नहीं माना जाता
है, परन्तु शास्त्रवचनानुसार आवश्यक परिस्थितिवश भद्रा मुख को छोड़कर शेषभाग में विशेषकर
(भद्रापुच्छ) काल में रक्षाबन्धन कार्य करना
शुभ होगा । भद्रा सुबह या शाम पड़ जाए
तो इस काल में राखी नहीं बांधी जाती। मान्यता है कि रावण ने अपनी बहन सूर्पनखा से भद्रा
के दौरान राखी बंधवाई थी इसलिए एक साल के भीतर ही उसका अंत हो गया। इसलिए भद्रा में
राखी नहीं बांधनी चाहिए। रक्षा-बन्धन के विषय में संक्रान्ति दिन एवं ग्रहणपूर्व काल
का विचार नहीं किया जाता है।
इस दिन यजुर्वेदी द्विजों
का उपाकर्म होता है | ऋग्वेदीय उपाकर्म ( नवीन आरम्भ ) श्रावण पूर्णिमा से एक दिन पहले
सम्पन्न किया जाता है जबकि सामवेदीय उपाकर्म
श्रावण अमावस्या के दूसरे दिन प्रतिपदा तिथि में किया जाता है | उपाकर्म का शाब्दिक
अर्थ है “नवीन आरम्भ” | इसीलिए इस पर्व का एक नाम उपक्रमण
भी है |
उत्सर्जन, स्नान विधि,
ऋषि तर्पण आदि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है | ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि
त्यौहार माना जाता है। वृत्तिवान् ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर
दक्षिणा लेते है प्राचीन काल में इसी दिन से वेदों का अध्ययन आरम्भ करने की प्रथा थी
| गये वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत
की भाँति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भाँति नया जीवन प्रारम्भ करने की
प्रतिज्ञा ली जाती है। इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों के लिये वेद का अध्ययन
प्रारम्भ करते हैं।
क्योंकि यह पर्व श्रावण
मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसलिये इसे
*उत्तरांचल में इसे श्रावणी
*महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा
*राजस्थान में रामराखी
और चूड़ाराखी
*तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र
और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं।
वर्ष 2015 में राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त
सभी हिन्दू ग्रन्थ और
पुराण, विशेषतः व्रतराज, भद्रा समाप्त होने के पश्चात रक्षा बन्धन विधि करने की
सलाह देते हैं।वर्ष 2015 में रक्षा बंधन का त्यौहार 29 अगस्त को घनिष्ठा नक्षत्र
में मनाया जायेगा धनिष्ठा नक्षत्र 28 अगस्त को शाम 6.07 बजे से 29 को दोपहर 3.31 बजे
तक रहेगा | इस बार पर्व के लिए खास माने जाने वाला श्रवण नक्षत्र एक दिन पहले 28 अगस्त
को ही शाम 6.06 बजे समाप्त हो जाएगा।
पूर्णिमा तिथि 29 अगस्त
2015 को 03:35 बजे प्रारम्भ होगी और 30 अगस्त
2015 को 00:05 बजे समाप्त होगी |
रक्षा बन्धन अनुष्ठान
का समय 13:50 से 21:01 रहेगा
रक्षा बन्धन के लिये
अपराह्न का मुहूर्त 13:50 से 16:13 रहेगा |
रक्षा बन्धन के लिये
प्रदोष काल का मुहूर्त 17:46 से 21:01 रहेगा
भद्रा पूँछ का समय 10:25
से 11:16, भद्रा मुख 11:16 से 12:59 होगा और भद्रा 13:50 पर समाप्त होगी
इस बार 12 वर्ष बाद राखी
का त्योहार गुरु आदित्य योग में मनेगा। इस दिन गुरु व सूर्य सिंह राशि में गोचरस्थ
रहेंगे। श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर जब धनिष्ठा नक्षत्र का संयोग बनता है, तो
विशेष धनकारी माना जाता है। इस दृष्टि से इस दिन बहनों को उपहार में दी गई स्वर्ण व
रजत की वस्तुएं ऐश्वर्य व शुभ-समृद्धि देने वाली मानी गई है। इस अवसर पर तथा अन्य भी
पूजा विधानों में इसीलिए रक्षासूत्र बाँधते समय राजा बलि की ही कथा से सम्बद्ध एक मन्त्र
का उच्चारण किया जाता है जो इस प्रकार है
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो
महाबलः, तेन त्वां निबध्नामि रक्षे माचल माचल |”
श्लोक का भावार्थ यह है कि जिस रक्षासूत्र से महान
शक्तिहशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बाँध
रहा हूँ जिससे तुम्हारी रक्षा होगी और तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।"
एक बार भगवान कृष्ण के
हाथ में चोट लगने से रक्त बहने लगा था तो द्रोपदी ने अपनी साडी फाडकर उनके हाथ में
बाँध दी थी । इसी बन्धन से ऋणी श्रीकृष्ण ने दुःशासन द्वारा चीर हरण करने पर द्रोपदी
की लाज बचायी थी ।
अमरनाथ की यात्रा का शुभारंभ गुरुपूर्णिमा के दिन
होकर रक्षाबंधन के दिन यह यात्रा संपूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहाँ का हिमानी
शिवलिंग भी पूरा होता है ।
किस
राशि के जातक किस रंग की राखी एवं तिलक से मनाएं त्यौहार
मेष--
लाल रंग की डोरी वाली राखी
वृषभ
-- चांदी या सिल्वर रंग की राखी
मिथुन--
हरे धागे या हरे रंग की राखी
कर्क---सफेद
या क्रीम रंग के धागों से बनी मोतियों वाली राखी
सिंह---गोल्डन
या पीले या नारंगी रंग की राखी
कन्या---हरे
रंग की राखी और चांदी या सफेद रंग का धागा अथवा रक्षासूत्र
तुला---फिरोजी
या सफेद या क्रीम रंग की राखी
वृश्चिक--वृश्चिक
राशि वाले भाइयों के लिए लाल या गुलाबी रंग की चमकीली राखी अथवा रक्षासूत्र
धनु---पीताम्बरी
या पीले रंग की रेशमी धागों से बनी राखी
मकर---नीले
रंग की मोतियों वाली राखी
कुम्भ---आसमानी
या नीले रंग की डोरी से बनी राखी
मीन---लाल
या पीले या सन्तरी रंग की राखी
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