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Shravan Mas

क्यों है श्रावण मास भगवान भोलेनाथ का प्रिय मास
अंजु आनंद

हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पाँचवाँ महीना, सावन मास भगवान भोले नाथ का प्रिय माह है | श्रावण मास में मनाये जाने वाले त्योहारों में 'हरियाली तीज', 'रक्षाबन्धन', 'नागपंचमी' आदि प्रमुख त्यौहार  हैं। 'श्रावण पूर्णिमा' को दक्षिण भारत में 'नारियली पूर्णिमा'', मध्य भारत में 'कजरी पूनम', उत्तर भारत में रक्षाबंधन' और गुजरात में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है।
'श्रावण' यानी सावन माह में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियाँ तथा विशेष तौर से कुंवारी युवतियाँ भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं।
सावन महीने में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं, तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार "जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योग शक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।
सावन मास में ही भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
एक अन्य कथा के अनुसार सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा की और उस विष को लेकर हिमाच्छादित हिमालय की पर्वत श्रृंखला में अपने निवास स्थान कैलाश को चले गए, लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। विष की उग्रता को कम करने के लिए भगवान शिव ने अपने सिर पर शीतल अमृतमयी जल किन्तु उग्रधारा वाली नदी गंगा एवं अत्यंत ठंडी तासीर वाले हिमांशु अर्थात चन्द्रमा को धारण किया जिससे उन्हें शीतलता प्राप्त हुई। चूँकि भगवान शिव ने समस्त चर - अचर प्राणियों की रक्षा के लिए अपने को तप्त कर दिया था, अतः उनके प्रति आस्था, भक्ति और कृतज्ञता प्रकट करने हेतु हम आज भी भगवान शिव का शीतलता प्रदान करने वाली चीजों से अभिषेक करते हैं। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। 'शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं।
संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः
अर्थात्‌ जो जल समस्त जगत्‌ के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन्‌ उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए। 
एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
जहाँ अन्य दिनों में शिववास का मुहूर्त देख रुद्राभिषेक किया जाता है वहीं श्रावण में प्रत्येक दिन 'रुद्राभिषेक' किया जा सकता है | भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं। अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रूप में चढा़या जाता है।
भगवान शिव को बिल्व पत्र भी अत्यंत प्रिय है, बिल्व पत्र के बारे में कहा गया है -
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रम च त्रियायुधम्,
त्रिजन्म पाप संहारम एकबिल्वम शिवार्पणम।
कहा जाता है कि 'आक' का एक फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से सोने के दान के बराबर फल मिलता है। हज़ार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों को चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्व पत्र से दान का पुण्य मिल जाता है। हज़ार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी होते हैं। हज़ार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हज़ार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हज़ार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हज़ार शमी के पत्तों के बराकर एक नीलकमल, हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हज़ार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।
श्रावण मास में सोमवार के व्रत का विशेष महात्यम है
शास्त्रानुसार सोमवार के व्रत तीन तरह के होते हैं।
सावन सोमवार यानी सावन मास में पड़ने वाले समस्त सोमवार पर व्रत कर भगवान शिव और देवी पार्वती की आराधना करना,
सोलह सोमवार - सावन मास के पहले सोमवार से संकल्प ले कर लगातार सोलह सोमवार उपवास करना
और सोम प्रदोष - मास में दो बार आने वाली प्रदोष तिथि भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है यह तिथि अगर सोमवार को आजाये तो सोम प्रदोष कहलाती है सोमप्रदोष का भी शास्त्रों में विशेष महात्म्य वर्णित है
श्रावण में किये जाने वाले सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे प्रहर तक अर्थात संध्याकाळ, गोधुली बेला तक किया जाता है उसके उपरांत सविधि शिव - पार्वती पूजन पश्चात सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले साधक को दिन में एक समय ही भोजन करना चाहिए।
निम्न मंत्र से संकल्प लेकर
'मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये'
शिव का ध्यान मंत्र -
'ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌॥
ध्यान के पश्चात पूजा के मंत्र -
'ऊँ नमः शिवाय' से शिवजी का तथा 'ऊँ नमः शिवायै' से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें।

पूजन के पश्चात व्रत कथा अवश्य सुनें। तत्पश्चात सपरिवार आरती कर प्रसाद वितरण करें। इसकें बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

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